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Showing posts from January, 2021

आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस कैसे समाज में कैसे हलचल फैलाएगी

  आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस कैसे समाज में कैसे हलचल फैलाएगी आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस यानि कृत्रिम बुद्धि विकसित व विकासशील देशों के समाजों में हलचल फैला सकती है। कहीं पर इसके प्रभाव बुरे हो सकते हैं तो कहीं पर अच्छे। अब जब टैस्ला की ड्राइवर के बिना चलने वाली गाड़ियां सड़कों पर दौड़ने लगीं हैं तो दुनियाभर के करोड़ों कार ड्राइवरों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। नई नौकरियों के अवसर भी प्रदान होंगे लेकिन ये नौकरियां आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस के माहिर लोगों के लिए ही होंगी। आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस में मशीन मानवीय फैसले लेती है। आपकी क्या विचारधारा है, आप क्या खाते हैं, आपको क्या पसंद है, आपका चेहरा, आपकी हर गतिविधी, आपकी उंगलियों के निशान आदि सारा कुछ एक मशीन में जमा हो जाता है। एक ऐसी मशीन जो कभी भूलती नहीं वह आपकी सारे जीवन का डाटा अपने पास रखती है। कभी आपने जाना है कि आपको हर चीज ई-मेल, फिंगर सैंसर, फेस सैंसर, इनफोरमेशन आदि फ्री में उपल्बध करवाने वाले सर्च ईंजन जैसे गूगल, याहू, माईक्रोसोफ्ट कैसे खरबों के मालिक हैं। सोचिए की फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल पर किसी हद तक आश्रित हो चुके हैं। आप नेट पर

अंग्रेजों का देश गुलाम (उपनिवेश) क्यों नहीं बनाया जा सका

  अंग्रेजों का देश  गुलाम  (उपनिवेश) क्यों नहीं बनाया जा सका हिटलर ने दूसरे विश्व युद्द तक लगभग पूरे यूरोप को अपना गुलाम बना लिया था लेकिन व इंग्लैंड को अपना गुलाम नहीं बना सका और फिर मित्र देशों के साथ मिलकर इंग्लैंड ने हिल्टर को हरा दिया। अंग्रेजों ने भारत, अफ्रीका, हांगकांग जैसे देशों को अपना उपनिवेश बनाया और वहां 200 सालों तक शासन किया। इस दौरान उसने गुलामों का नरसंहार किया, उनपर अमानवीय अत्याचार किए लेकिन किसी अंग्रेज ने यह नहीं कहा कि हम इन लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं। किसी ने नहीं कहा कि हम अंग्रेज धोखेबाज, तेज दीमाग, अंहकारी, निरंकुश, अत्याचारी रहे, गुलामों पर अपना धर्म, संस्कृति, भाषा थोपी और किसी भी अंग्रेज ने आज तक अपने किए का कोई पश्चाताप नहीं किया। यदि दुनिया में किसी भी कौम को यदि पिशाच कहा जा सकता है तो वह अंग्रेज ही हैं। हम यह नहीं कह रहे कि यदि अंग्रेजों के पूर्वजों ने यह काम किए तो हमें उनकी संतानों से आज बदला लेना चाहिए लेकिन हमें उन्हें यह जरूर याद दिलाना चाहिए कि उनके पूर्वजों ने गुलामों के साथ कैसा व्यवहार किया था। वर्तमान में उनकी संतानों के व्यवहार में बदलाव हु

श्राद्ध कर्म को कैसे नष्ट किया जाए

 श्राद्ध कर्म को कैसे नष्ट किया जाए हिन्दुओं में अपने पूर्वजों के लिए सम्मान व उनको याद रखने का एक कर्म श्राद्ध कर्म है। इससे वे अपने पुरोहितों से जुड़े रहते हैं। इस प्रकार उनका यजमानों से धर्म आदि के बारे में संवाद भी होता रहता है। इस संवाद व परम्परा को तोड़ना बहुत ही जरूरी है। इस परम्परा से हिन्दू आपस में भावनात्मक व धार्मिक तौर पर जुड़े भी रहते हैं। श्राद्ध परम्परा में अपने पूर्वजों का नाम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। इससे लोग अपने पूर्वजों से जुड़े रहते हैं और उन्हें पता रहता है कि उनकी जड़ें व इतिहास क्या है। इन्ही जड़ों को खत्म करना जरूरी है। इसके लिए हमें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए इनमें भस्मासुर पैदा किए जाएं जो वामपंथी नजरिए वाले स्वर्ण वर्ग से ही हों। बस दुष्प्रचार जारी रखें कि ब्राह्मणों को खिलाने से कुछ नहीं होता, मरे हुओं को कुछ नहीं मिलता, जीते जी मां-बाप की सेवा न करो मरने के बाद करने से क्या लाभ ऐसा कुप्रचार जारी रखने से यह परम्परा अब नष्ट ही हो चुकी है। एब्राहमिक संस्कृति तभी हावी हो सकती है जब हिन्दू संस्कृति को टुकड़ों में नष्ट कर दिया जाए। इतन

हिन्दू सनातन पद्धति किस प्रकार की संस्कृति है?

  हिन्दू सनातन पद्धति किस प्रकार की संस्कृति है? हिन्दू सनातन संस्कृति को समझने के लिए गहरे अध्ययन व आस्था की जरूरत है। यदि आस्था, आदर नहीं है तो कोई भी हिन्दू सनातन संस्कृति को नहीं समझ सकता। अरबी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता, मिशनरी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता व वामपंथी इसे नहीं समझ सकते। यह एक ऐसी संस्कृति है जिसमें अन्न को परमेश्वर का दर्जा दिया गया है जो इसपर थूकने का तो कभी सपने में भी नहीं सोच सकता, इस धरती को मां का दर्जा प्राप्त है। इस संस्कृति की इतनी महानता है कि नारियों को कोई भोग वस्तु या बांदी नहीं देवियों का दर्जा प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है कि जहां नारियों की पूजा होती है वहीं देवता वास करते हैं। अपनी पूजा में पशुओं, निशाचरों, जलचरों, नभचरों यहां तक कि पाषाणों को भी शामिल किया गया है। एक ऐसी संस्कृति है जहां श्वान को पांव नहीं लगाया जाता, जहां गाय को मां कहा जाता है और उसे बचाने के लिए हिन्दुओं ने जान तक न्यौछावर की है। यहां मीराबाई भी है जो भगवान कृष्ण की मूर्ति के बिना एक पल भी नहीं रहती और जोगिन बन जाती है। दूब  (घास) को भी पूजा में शामिल किया जाता है। गाय के गोबर से भगवान