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Showing posts from May, 2020

विदेश यात्रा कब होगी, कैसी रहेगी?

विदेश यात्रा कब होगी, कैसी रहेगी छोटी, लम्बी या विदेश यात्राओं के लिए तीसरा, नौंवा व बाहरवां भाव जांचा जाता है। इन भावों के स्वामी ग्रहों की स्थिति जांची जाती है। यात्रा के कारक ग्रह केतु,शुक्र, चंद्र के बारे में भी विचार किया जाता है।  1. यदि लग्न का स्वामी 12वें भाव में हो को विदेशों में अथवा विदेश में घर बनाकर रहना पड़ता है। 2.यदि लग्न का स्वामी ग्रह, नवम् भाव का स्वामी ग्रह और तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बाहरवें भाव में हो तो तो भी विदेश में ही रहना पड़ता है। 3 लग्न का स्वामी, तीसरे भाव का स्वामी, नवें व 12वें का स्वामी यदि 12वें,दूसरे, तीसरे अथवा नवें भाव में हो तो भी यात्राएं बहुत होती हैं और विदेश यात्राएं होती हैं। 4. चौथे व आठवें भाव में शनि,केतु, राहू हों तो विदेश यात्राएं होती हैं। तीसरे भाव में स्वामी ग्रह तो जांचने से भी यात्राओं के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है। यदि तीसरे भाव में निम्न ग्रह स्थित हों या भाव का स्वामी ग्रह हो तो- सूर्य तीसरे भाव में स्थित हो तो जीवन में यात्राएं कम ही हों, यदि हों तो सरकारी कामों से संबंधित हों व लाभ हो। घमंड व अहंकार से हानि का डर। चंद

माया का खेल बहुत ही निराला है

माया का खेल बहुत ही निराला है माया का खेल इतना निराला है कि कोई भी इसके मोह बंधन से बच नहीं सका। वही लोग बच सके जो दूर कंदराओं में ईश्वर की भक्ति में लीन हैं। समाज में विचरण करता मानव माया के मोह में फंसा हुआ है। गरीब घरों में पैदा हुए गायक धार्मिक स्थलों में अपनी जीविका को कमाने के लिए गाते हैं। वहीं प्रचारक प्रवचन करते हैं लोग सुनते हैं लेकिन इतना धन नहीं देते कि ये लोग अपना परिवार अच्छे से पाल सकें। कुछ प्रचारक जो प्रचार माध्यमों का प्रयोग करके, विज्ञापन करके लोगों में प्रसिद्ध हो जाते हैं वे अपने माल को सही ढंग से बेच लेते हैं और करोड़ों में खेलते हैं। दूसरे लोग गांवों में बैठे अपने यजमानों के सहारे थोड़ा-थोड़ा करके पेट किसी तरह से पालते हैं क्योंकि न तो उनके पास इतना धन है कि वे अपना प्रचार बड़े स्तर पर कर सकें और न ही इनके यजमान इनको प्रोमोट करने में कोई ध्यान देते हैं।  अब इन लोगों को जब बालीवुड में काम मिलता है तो ये कलाकार रातों-रात करोड़ों में खेलने लगते हैं और अपने धार्मिक जीवन पर मिट्टी डाल कर हर तरह के गाने गाना शुरु कर देते हैं। एक गाने का इनको 50 से 60 लाख रुपए का भुगतान

रसिक हिन्दुओं को कैसे सही संदेश पहुंचाएं हिन्दू संत

रसिक हिन्दुओं को कैसे सही संदेश पहुंचाएं हिन्दू संत  रसिक हिन्दू संगीत सुनते हैं, गाते हैं और नाचते हैं। ये रस के पुजारी जहां भी इनको रस मिलता है चले जाते हैं चाहे सूफी की दरगाह ही क्यों न हो। ये इनको अपने धार्मिक कार्यक्रमों में भी बुलाते हैं। इनको दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता क्योंकि ये वे लोग हैं जिनके पास नौकरियां हैं, धन है, कारोबार हैं और ये लोग रस के लिए धन खर्च करते हैं। कहीं सूखा प्रवचन हो तो वहां आपको 4 या 5 से अधिक श्रद्दालु नहीं मिलेंगे लेकिन कहीं रंगमंच, संगीत की लहरियां, फिल्मी गानों की तर्ज पर भजन हों तो हजारों लोग सुनने को आ जाएंगे। ये लोग रस को नहीं छोड़ सकते ।  ये रसिक वैसे ही हैं जैसे लोग ब्रांडेड कपड़े पहनने वाले, महंगी शिक्षा के लिए विदेशों में बच्चों को पढा़ने के लिए भेजने वाले, सिनेमाहाल में हजारों रुपए खर्चने वाले, अपनी शादियों में बेतहाशा दिखावा करने वाले, अपने घरों को करोड़ों के महंगे फर्निचरों से सजाने वाले, महंगे होटलों में राते रंगीन करने वाले हैं । इनमें अंतर यह है कि इन्हें सबकुछ धर्म में ही चाहिए और ये हाई प्रोफाइल संतों को बनाते हैं। जो एक कार्यक्र

lal kitab remedies for baby boy- Hindi

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lal kitab remedies for baby boy- लाला किताब के अनुसार जातक की कुंडली में संतान सुख दिलाने वाला ग्रह पंचम घर का स्वामी सूर्य होता है । संतान सुख मेें चंद्र का भी प्रभाव रहता है। यदि चंद्र नेगेटिव हो जाए तो संतान नष्ट होने की आशंका रहती है। ग्रहों के योग के आधार पर लड़का या लड़की का होना निर्भर करता है।  lal kitab remedies for baby boy- संतान सुख के लिए लाल किताब के टोटके निम्नलिखित हैं- 1. घर से सदस्यों की संख्या + आने वाले मेहमानों की संख्या+ दो चार चार रोटियां अधिक बनाकर कुत्तों या अन्य जानवरों को डालें। रोटियों की संख्या कम न हो छोटी बड़ी हो सकती हैं। 2. हर रोज भोजन खाने से पहले अपनी थाली से 3 या 4 टुकड़े रोटी के कुत्ते के लिए निकाल लें। जिस जगह भोजन बने उसी जगह बैठ कर खाएं। ऐसा करने से राहु की शरारतों से बचा जा सकता है। 3. रात को सोते समय चारपाई के नीचे पानी तथा सुबह उसे ऐसी जगह डालें जहां उसका अपमान न हो। उस पानी से अपने हाथ पांव न धोएं और न ही पिएं। 4. बच्चे के जन्म से पहले माता किसी बर्तन में घी व चीनी रख कर माता के हाथ लगा दें और किसी सुरक्षित जगह रख दें। बच्चा पैदा होने के बाद

सभ्यता का विकास व सांस्कृतिक विरासत या धरोहर क्या है?

सभ्यता का विकास व सांस्कृतिक विरासत या धरोहर क्या है? सभ्यताओं का विकास कैसे हुआ, मानव सभ्य कैसे हुआ, सांस्कृतिक विरासत व धरोहर क्या हैं, आदि विचार हमारे दिमाग में कम ही आते हैं। हम अपनी दिनचर्या व दैनिक जरूरतों को पूरा करने में इतना व्यस्त रहते हैं कि इसके बारे में हम ज्यादा नहीं सोचते और न ही चर्चा करते हैं। जब सिंधू घाटी की सभ्यता के बारे में पता चला तो देखा गया कि आज से हजारों साल पहले 3 मंजिला मकान, अंडरग्राऊंड नालिया, सड़कें आदि लोगों ने बनाए, आज इस जगह की खुदाई में मिट्टी के बर्तन, औजार, शिव व गणेश की मूर्तियां, शिवलिंग, त्रिशूल आदि मिले, अब इससे भी पुरानी सभ्यता राखीघाड़ी हरियाणा में मिली। खुदाई में रथ,हथियार, मूर्तियां व कंकाल मिले। आज इंडोनेशिया, थाईलैंड में की गई खुदाई में भगवान शिव व गणेश जी की भव्य मूर्तियां मिली तो सारी दुनिया हैरान रह गई। खुदाई में एक विशाल मंदिर मिला जो मिट्टी से ढक चुका था। इन कंकालों का डीएनए टैस्ट किया गया तो ये विशुद्ध भारतीय पाया गया। इस प्रकार पिछले 70 सालों से फैलाया गया झूठ कि आर्य विदेशों से आए  थे, प्रमाण सहित धराशाही हो गया। वामपंथी अपने फैला

बालों से वशीकरण कैसे करें | Vashikaran with Hairs

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बालों से वशीकरण कैसे करें:  जैसे वशीकरण कपड़े से, निम्बू से मिठाई से, लौंग व वशीकरण मंत्रों आदि से किया जाता है वैसे ही बालों से वशीकरण करने का तरीका भी बहुत ही अचूक है । यह बालों से वशीकरण विधी बहुत ही प्राचीन है। बालों से वशीकरण तब किया जाता है जब जिसपर वशीकरण किया जाना हो आपके पास ही रहता है। किसी भी समय उसके थोड़े से बाल काटे जा सकते हैं। जब आप बाल प्राप्त कर लेते हैं तो वशीकरण मंत्रों की विधी से जिसके बाल होते हैं उसे अपने कंट्रोल में किया जा सकता है। बाल से वशीकरण की भी कई विधिया प्रचलित हैं।   1.बालों से प्रेमिका, प्रेमी, स्त्री या पुरुष वशीकरण किया जा सकता है 2.  बालों से बच्चों का वशीकरण 3. बालों से परिवार पर वशीकरण 1. बालों से प्रेमी प्रेमिका, स्त्री या पुरुष वशीकरण-बालों से वशीकरण कैसे करें | Vashikaran with Hairs प्रेमी-प्रेमिका, स्त्री या पुरुष का वशीकरण करने के लिए सबसे पहले जिसका वशीकरण करना हो उसके बाल हमें चाहिएं। जिस किसी महिला या पुरुष, प्रेमी या प्रेमिका का वशीकरण करना है, उसके बाल ले लेने चाहिएं। वशीकरण मंत्र जो इस पेज पर ऊपर दिए गए हैं, में से किसी को ले लें। रात्

लोगो, प्रतीक. चिन्ह व छवि क्या हैं?

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लोगो, प्रतीक. चिन्ह व छवि क्या हैं? इंसान व प्राणी अपनी ज्ञान इंद्रियों से ही किसी भी चीज के बारे में जानता है। वह देखता है, सुनता है, स्पर्श करता है, बोलता है। इन ज्ञान इंद्रियों के सहारे ही वह अपने जीवन में ज्ञान व अनुभव लेते हैं। इस बात को बालीवुड व बड़ी कम्पनियों वाले अच्छी तरह से भुनाते हैं और अपने माल को बेचते हैं। हम जब टाटा का लोगो देखते हैं तो आपका दीमाग टाटा कम्पनी के सारे प्रोड्क्ट्स को आपके सामने रख देता है, कोलगेट का लोगो सामने देखते हो तो आपको टूथ पेस्ट व डालडा का लोगो देखते ही वनस्पति घी के बारे में छवि दिमाग में घूम जाती है। इसी प्रकार से किसी परिचित की तस्वीर देखते हैं तो हमारे सामने उसके सारे किस्से आ जाते हैं।  टीवी पर विज्ञापन बार-बार दिखाए जाते हैं और वे हमारे अवचेतन मन में समा जाते हैं। जैसे ही हम किसी दुकान पर पहुंचते हैं तो उन उत्पादों को करीने से सजाए देखे जाने पर हम उनकी तरफ आकर्षित होते हैं और हमारा अवचेतन दिमाग उनके बारे में हमें जानकारियां देना शुरु कर देता है। बस उपभोक्ता उस सामान को खरीद लेता है। ऐसा देखा गया है कि 95 प्रतिशत उपभोक्ता उसी सामान को खरीदता

सांस्कृतिक अचम्भे अथवा कल्चरल शॉक्स क्या हैं?

सांस्कृतिक अचम्भे अथवा कल्चरल शॉक्स क्या हैं? हर देश की अपनी सांस्कृतिक पहचान है। जब एक देश का रहने वाला दूसरे देश में जाता है तो उसे वहां कुछ ऐसा अजीब सा दिखता है जो कि उनके देश में मान्य नहीं हैं तो इसे सांस्कृतिक अचम्भे या अंग्रेजी में कल्चरल शॉक्स कहा जाता है। भारत का निवासी यदि जापान में जाए तो उसे उनका पहनावा व भाषा अजीब सी लगेगी, वहां के लोग आपस में हाथ नहीं मिलाते सबसे बड़ा अचम्भा यह होता है कि यहां के लोग एक ही बाथटब में निवस्त्र होकर नहाते हैं। वहीं एक अमेरिकी जब अरब देश में आता है तो एक पुरुष के चार विवाह व दर्जनों बच्चों को देखकर हैरान हो जाता है, महिलाएं बुर्के में ढकी होती हैं तो उसे यह अचम्भा ही लगता है।  वहीं अरब देश के लोग अमेरिका या पश्चिमी देशों में जाते हैं तो वहां के खुले माहौल में स्वयं को अजीबो-गरीब स्थिति में पाते हैं। कई परिवारों के लोगों महिलाएं, पुरुषों व बच्चों को बीच पर कम कपड़ों में देखकर हैरान रह जाते हैं। भाई,बहन, बच्चे आदि सभी एक साथ बीच पर अन्य लोगों के साथ नहा रहे होते हैं। पश्तिमी देशों में विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाना आम है। वहां शादी के बिना ल

सत्य व असत्य को व्यवहारिक पटल पर कैसे जांचा जा सकता है

सत्य व असत्य को व्यवहारिक पटल पर कैसे जांचा जा सकता है सत्य व असत्य एक मानसिक स्थितियां हैं। इनको व्यवहारिक पटल पर विभिन्न कोणों से जांचा जा सकता है। एक आतंकवादी सैंकड़ों निर्दोष लोगों की हत्याएं करता है, पुलिस उसे पकड़ती है, 10 साल तक केस चलता है, इस दौरान गवाहों को खरीद लिया जाता है या डरा-धमका कर भगा दिया जाता है, लोग भी भूल जाते हैं कि कभी कोई घटना हुई थी। आतंकी को सबूतों की कमी के कारण रिहा कर दिया जाता है। इस प्रकार असत्य जीत जाता है। एक लड़की से सामूहिक बलात्कार होता है, पैसे, राजनीतिक पावर आदि के बल पर आरोपी बचा लिए जाते हैं । गरीब को न्याय नहीं मिलता। आरोपी बरी होते ही पीड़िता के परिवार पर हमला करके उन्हें खत्म कर देते हैं। मामला ठंडा पड़ जाता है। ऐसी घटनाएं सैंकड़ों हैं जिसमें असत्य जीत जाता है। एक दुकानदार अपने सामान को बेचने के लिए सौ तरह के झूठ बोलता है। आपको हैरानी होगी कि पश्चिम के किसी देश में यह नहीं पढ़ाया जाता कि सत्य की हमेशा जीत होती है क्योंकि व्यवहारिक धरातल में ऐसा कुछ नहीं है। अंग्रेजों ने जब भारत को गुलाम बनाया तो उनके शब्दकोश में सत्य व असत्य.न्याय अन्या

माता बगलामुखी शत्रु नाशिनी मां

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माता बगलामुखी शत्रु नाशिनी मां है। एक ऐसी शक्ति जो तुरंत ही बिजली की तरह असर करती है और शत्रुओं के दांत खट्टे कर देती है। शत्रुओं के लिए मां बगलामुखी एक काल की तरह है। इसके तेज से कोई भी बच नहीं सकता। माता बगलामुखी दसमहाविद्या में 8वीं महाविद्या हैं। मां पीले वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष प्रयोग होता है। बगलुमुखी स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती।  शत्रु और विरोधियों को शांत करने व तथा केस में विजय के लिए इनकी उपासना अचूक है।  baglamukhi puja शत्रुओं के नाश के लिए, युद्ध में विजय के लिए, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए ही इनकी साधना की जाती है। मां बगलामुखी की पूजा से दुश्मनों का स्तम्भन हो जाता है। वे निष्क्रिय हो जाते हैं। इनकी उपासना की जाती है। जातक को जीवन में सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। baglamukhi viniyog- विनियोग - विनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दाएं हाथ में जल लेकर                 ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः

क्या पुराण आदि हिन्दू ग्रंथ झूठे हैं?

क्या पुराण आदि हिन्दू ग्रंथ झूठे हैं इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही गहन मानवीय मनोविज्ञान से जुड़ा हुआ है। आपने देखा होगा कि फिल्मों, उपन्यासों आदि के पहले बहुत ही छोटे अक्षरों में लिखा होता है कि इस फिल्म में सभी पात्र काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत्य व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा भी लिखा मिलता है कि यह फिल्म इस उपन्यास पर आधारित है, किन्ही कारणों के चलते फिल्म के कुछ दृश्य उपन्यास से मेल नहीं खा सकते, इसके लिए फिल्म निर्माता जिम्मेदार नहीं है। ऐसा भी लिखा मिलता है कि फिल्म या उपन्यास सत्य घटनाओं पर आधारित है, निजता के लिए इसमें जगह व पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं।  कापीराइट एक्ट- आपने कापीराइट एक्ट का उल्लेख भी पड़ा होगा जिसमें लिखा होता है कि उपन्यास या फिल्म की कहानी, पात्र आदि की नकल नहीं की जा सकती आदि। आज हालीवुड बालीवुड की सैंकड़ों फिल्में काल्पनिक होती हैं लेकिन वे अरबों डालरों का व्यापार करती हैं क्योंकि करोड़ों लोग इन फिल्मों को देखते हैं। इनके पात्र बैटमैन, स्पाइडरमैन, हल्क, जेम्स बांड आदि के लोग दीवाने हैं। वे इनकी एक झलक पाने के लिए हजारों डालर उड़ा देते हैं।

मां भवानी व शिवाजी राजे का हिन्दवी राष्ट्र

मां भवानी व शिवाजी राजे का हिन्दवी राष्ट्र जंगल में अपनी ईष्टधात्री मां भवानी के बनाए गए मंदिर में रात्रि को शिवाजी राजे खड़े थे। हाथ में रक्त से सनी नंगी तलवार थी, आंखें लाल, भवानी मां के आगे शिवाजी ने अपने रक्त से तिलक किया और फिर अपने साथ खड़े सैनापति व अन्य महारथियों को भी तिलक दिया। शिवाजी की आवाज जंगल में शेर की भांति गूंज रही थी। शिवाजी मां भवानी की शेर पर चढ़ी प्रतिमा की आंखों में आंखें डालकर शपथ उठा रहे थे। जै भवानी के जय घोष से शिवाजी ने शपथ उठाई कि हे भवानी मां जब तक मेरे शरीर में रक्त की बूंद तक रहेगी मैं हिन्दवी राष्ट्र की स्थापना के लिए रणभूमि में उतरता रहूंगा। मां मुझे आशीर्वाद दे, मैं जब तुम्हारा ध्यान करता हूं तो मेरे में 100 शेरों जैसा बल आ जाता है।  बस फिर मेरी तलवार दुश्मनों को ऐसे काटती है जैसे गाजर-मूली को काटा जाता है। मेरे को पता नहीं क्या हो जाता है, बिजली सी शक्ति आ जाती है। हर-हर महादेव व जय भवानी के जयघोष रणभूमि में मराठाओं में बिजली सी शक्ति फूंक देते हैं। माता जीजाबाई और मेरे गुरु समर्थ रामदास का ही प्रताप है कि दुश्मन हमसे डरकर भागता फिरता है। जब हम धावा

अरबी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता क्या है

अरबी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता क्या है जब भी भारत की गुलामी की बात होती है तो अंग्रेजों की गुलाम की ही बात होती है लेकिन अरबी हमलावरों के शासन की बात नहीं की जाती। आज भारत में आपको अंग्रेजी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता के लोगों के बारे में तो आपको बताया जाएगा लेकिन अरबी उपनिवेशिक गुलाम मानसिकता के बारे में कोई नहीं बताएगा। यह वह मानसिकता है जो गुलाम बनाने वाले शासक की तरफ गुलामों में स्वत ही आ जाती है। आज भारत में अपकों करोड़ों लोग ऐसे मिल जाएंगे जो शुद्ध रुप से भारतीय है लेकिन उनकी मानसिकता अरबी है। वे अपने को अरबों की संतान समझते हैं, अरबी किताब पढ़ते हैं। अरबी पहनावा पहनते हैं, अरब के हिसाब से क्या खाना चाहिए व क्या नहीं खाना चाहिए इसका ध्यान रखते हैं, ये लोग विदेशी हमलावरों बाबर, टीपू, तैमूर, गजनवी आदि को अपने नायक समझते हैं। यही स्थिति पाकिस्तान, बांगलादेश के लोगों की है। इस तरह भारतीय होते हुए भी ये अरबी संस्कृति के अनुसार चलते हैं।  हिन्दुओं पर इस अरबी मानसिक गुलामी का बहुत ही ज्यादा प्रभाव रहा है। वे भी अपना जीवन यापन जाने-अनजाने में इन्हीं की तरह करने लगे हैं। वे कब की भारतीय संस्क

मृत सभ्यता व जीवित सभ्यता क्या है

मृत सभ्यता व जीवित सभ्यता क्या है जो सभ्यता कभी जीवित थी, उसके त्यौहार, धार्मिक स्थल, भाषा, रहन सहन, ग्रंथ, कलाकृतियां जीवित अवस्था में कभी थे लेकिन ये आज केवल म्यूजियम में पड़े हैं। लोग आते हैं उस सभ्यता के बारे में जानते हैं और फिर वापिस लौट जाते हैं। ग्रीस, रोमन, वेबीलोन, मिस्र आदि की महान सभ्यताएं आज से कुछ वर्ष पहले तक जीवित थीं लेकिन इन सभ्यताओं को नष्ट कर दिया गया और अब ये म्यूजियमों की शोभा ही बढ़ा रही हैं। वह सभ्यता जिसके त्यौहार, भाषा, रहन-सहन, धार्मिक ग्रंथ, धार्मिक स्थल , धार्मिक चिन्ह व प्रतीक आदि जीवित अवस्था में लोग अपनाए हुए हैं, वह सभ्यता जीवित है। हिन्दू मंंदिरों जो सैंकड़ों वर्ष तक जीवित रहे आज भी जीवित हैं क्योंकि वहां लोग वैसे ही पूजा-अर्चना करके अपनी संस्कृति को बचाए हुए हैं। आज हिन्दुओं की सभ्यता जीवित है लेकिन आज इसके कई महान मंदिरों पर पुरात्तव विभाग का कब्जा है, वहां पर हिन्दू पूजा नहीं कर सकते। एक जीती जागती महान सभ्यता को मृत घोषित कर दिया गया है। मंदिरों के प्रधान देवों की मूर्तियों को म्युजियमों में रख कर यह दर्शाया जा रहा है कि हिन्दू संस्कृति खत्म

मयांमार के बौधों ने अहिंसा का परित्याग क्यों किया

मयांमार के बौधों ने अहिंसा का परित्याग क्यों किया महाभारत के युद्ध में अर्जुन को कृष्ण न उपदेश देते तो अर्जुन पहले बौध होते जो आतताइयों के सामने हथियार उठाने से मना कर देते। आज वही महाभारत है और कृष्ण भी है, अर्जुन भी और आततायी भी। लेकिन अर्जुन का व्यवहार बदल गया है। बुध की शिक्षाएं व्यवहारिक नहीं हैं इसीलिए मयांमार के बौधोंं को अहिंसा का त्याग करके शस्त्र उठाने पड़े हैं क्योंकि कृष्ण की शिक्षाएं व्यवहारिक हैं। कृष्ण की शिक्षाएं किसी पहाड़ी की चोटी पर नहीं, पेड़ के नीचे नहीं बल्कि वहां हैं जब दुश्मन शस्त्रों से लैस आपको खत्म करने के लिए खड़ा है। आपके कनपटी पर बंधूक है और आपके दिल में बुध की शिक्षाएं, या तो आप मारो या मर जाओ एक कायर की तरह। आज भी वही परिस्थितियां हैं, बौध तो जाग गए लेकिन भारत के हिन्दू अभी भी सोए पड़े हैं।  बौध जाग गए क्योंकि एक थुराजू जगा गया, उनका संविधान जगा गया, प्रशासन जगा गया। मयांमार के बुध ने अनजाने में समझ लिया कृष्ण को और वे समय पर हथियार लेकर डट गए। कृष्ण की शिक्षाएं व्यवहारिक हैं लेकिन बौध की नहीं। यह साबित हो चुका है। 

संस्कृतियों का संरक्षण, सांस्कृतिक नरसंहार क्या है

संस्कृतियों का संरक्षण, सांस्कृतिक नरसंहार क्या है हर मानव को संस्कृति का संरक्षण करने अधिकार दिया गया है। यदि व सभ्य समाज में रह रहा है तो भी व अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है । वशर्ते वह उस देश के कानून के खिलाफ न हो या कोई आपराधिक कृत्य न हो। हर किसी को अपनी भाषा, रहन सहन, आस्था, खान-पान आदि का पालन करने का अधिकार है लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं ले लेना चाहिए कि वह दूसरे की संस्कृति को नष्ट करे। किसी दूसरे कि संस्कृति को नष्ट करना सांस्कृतिक नरसंहार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, और यह दंडनीय अपराध माना जाना चाहिए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद संस्कृतियों के टकराव के कारण मानवजाति को भयानक नुकसान उठाना पड़ा था। सभी देशों में मिलकर फैसला किया था कि किसी देश पर आक्रमण नहीं किया जाएगा, नरसंहार नहीं होगा व सांस्कृतिक नरसंहार नहीं होगा लेकिन भारी विरोध के चलते सांस्कृतिक नरसंहार को चालाकी से हटा दिया गया क्योंकि इससे किसी अब्रहामिक देश को दूसरे लोगों का धर्म परिवर्तन करने से छूट नहीं मिलती। किसी का जबरन, लालच देकर धर्मपरिवर्तन करना सांस्कृतिक नरसंहार की श्रेणी में ही माना जाएगा। द

देसी तिथियों, माह आदि को कैसे अपनाएं ?

देसी तिथियों, माह आदि को कैसे अपनाएं जब भारत का संविधान लिखा गया तो यह ब्रिटिश संविधान की प्रतिलिपी ही थी। यह अंग्रेजी में लिखा गया और देश को सैकुलर घोषित किया गया। ऐसा नहीं था कि संविधान को प्रणेताओं को हिन्दी नहीं आती थी, गुमाम मानसिकता यहां उजागर होती है कि शासकों की भाषा अंग्रेजी में देश का संविधान पेश किया गया। यह वह समय था जब भारत में गिने-चुने लोग ही अंग्रेजी को समझ सकते थे। आज देश में अंग्रेजी कलैंडर आपको हर घर में मिल जाएगा लेकिन देसी महीनों वाला कैलेंडर बहुत कम लोगों के घरों में मिलेगा, यदि मिलेगा भी तो किसी को इसकी जानकारी नहीं होती क्योंकि सारे काम अंग्रेजी तारीखों के हिसाब से होते हैं। सोमवार से शनिवार तक काम व रविवार को छुट्टी। चीनी, जापानी, कोरियाई आदि देशों के लोग अपना नववर्ष मनाते हैं लेकिन भारत के लोग अपना नववर्ष नहीं मनाते अंग्रेजों का नववर्ष मनाते हैं। इसकी वे एक दूसरे को बधाई भी देते हैं।  लेकिन गांवों में लोग चाहे अंग्रेजी तिथियों के हिसाब से चलते हों लेकिन वे अपनी फसलें देशी महीनों के हिसाब से ही बीजते व काटते हैं। किसी अनपढ़ से भी पूछ लो तो वह आपको देसी म

संवाद का धार्मिक परिपेक्ष क्या है?

संवाद का धार्मिक परिपेक्ष क्या है इंसान ने दूसरे इंसान को अपनी भावनाएं पहुंचाने के लिए इशारों का प्रयोग किया, फिर चिन्हों, ध्वनि और फिर भाषा का प्रयोग किया। यह संवाद ही है जो दो इंसानों को आपस में जोड़ता है। दर्पण के सामने खड़ा होकर सज रही नारी दर्पण से संवाद ही कर रही होती है। दर्पण उसे बताता है कि कैसे सजना है और वस्त्र चेहरा इत्यादि ठीक करने हैं। आप जब कोई किताब पढ़ रहे होते हैं या कोई टीवी पर कार्यक्रम देख रहे होते हैं तो आप एक तरह का संवाद ही कर रहे होते हैं। आपने देखा होगा कि टीवी, मोबाइल,पुस्तकें आदि से एक समय पर आकर मन भर जाता है तो आप किसी से बात करने के लिए लालायित हो जाते हैं। आपसे में बैठ कर बात कर रहे लोग एक दूसरे को अपनी समस्याएं बताते हैं और अन्य विषयों पर भी चर्चा करते हैं। आप सामने वाले को अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं लेकिन आप जानते भी हैं कि वह आपकी समस्याओं को सुलझा नहीं सकता लेकिन फिर भी आप संवाद करते हैं। जब शरीर की तकलीफ बढ़ जाती है तो आप डाक्टर को फीस देकर उसको अपनी समस्या बताते हैं और वह आपको दवाई देता है। यदि एक इंसान अकेला रहता है किसी से संवाद नही