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Showing posts from April, 2021

माता-पिता के प्रेम का धागा

  माता-पिता के प्रेम का धागा विदेश में काम करते हुए आप हर किसी को अपने विश्वास, अपने धर्म व अपनी पहचान के बारे में विस्तार से नहीं बता सकते क्योंकि वे इससे विदेशी पूरी तरह अनजान होते हैं और उनके लिए यह एक अनोखी बात भी होती है। उनके डिक्शनरी में एक किताब, एक ईश्वर व एक विचारधारा ही होती है। वे अपनी सोच के अनुसार ही निर्णय करते हैं। कैसे हजारों धर्म ग्रंथ हो सकते हैं कैसे कई ईश्वर हो सकते हैं और कैसे विभिन्न पूजा पद्धतियां हो सकती हैं।यह सब कुछ उनको असमंजस में डालने वाला होता है। हमारे लिए यह एक आम बात है और इसमें हम आसानी से जीते हैं। वे हमारे प्रति ग्लानि भाव से देखते हैं कि कैसे ये लोग इतना फंसे हुए हैं और कैसे इतना मैनेज कर लेते हैं, वे अपने माइंडसेट के अनुसार ही निर्णय लेते हैं। वैसे ही जैसे एक बच्चा पूछता है कि अंग्रेज भी तो हमारी तरह अंग्रेजी का अनुवाद हिन्दी में करते होंगे कभी तो उनको अंग्रेजी समझ आती होगी। साथ काम करते अंग्रेज सहयोगी पूछते कि ये जो तुमने कंधे पर धागा पहन रखा है इसका क्या प्रयोजन है। तो मैं बताता कि जैसे हम टाई पहनते हैं और बैल्ट लगाते हैं और समाज में जाते हैं वै

क्या धार्मिक ग्रंथों को वैज्ञानिक ग्रंथ माना जा सकता है?

 क्या धार्मिक ग्रंथों को वैज्ञानिक ग्रंथ माना जा सकता है? क्या सभी धर्मों के ग्रंथों को स्कूलों में विज्ञान की किताबों भौतिकी, रसाइन विज्ञान, जीव विज्ञान के स्थान पर पढ़ा जा सकता है, नहीं। क्या इन ग्रंथों को पढ़ कर कोई छात्र वैज्ञानिक बन सकता है, नहीं। यदि ये ग्रंथ विज्ञान की जगह नहीं ले सकते तो इनमें से विज्ञान निकालना एक तरह की नासमझी ही है।  धार्मिक ग्रंथ पूरी तरह से व्यवहारिक ग्रंथ नहीं हैं,यदि ऐसा होता तो हर डाक्टर, इंजीनियर, वकील, व्यापारी आदि इसे पढ़कर ही बनते और किसी विज्ञान की पुस्तक की जरूरत न होती। धार्मिक ग्रंथों के ज्ञाता प्रचारक तो बन सकते हैं लेकिन यदि उन्हें सरकारी नौकरी पानी है तो प्रोफेशनल कॉलेज आदि की पढ़ाई करनी ही होगी।  जब भी कोई नई वैज्ञानिक खोज होती है तो इसके गुण दोष भी साथ ही आते हैं। उसी के आधार पर खोजों को आगे मानव कल्याण के रास्ते पर लगाया जाता है। यदि किसी आसामाजिक तत्व के हाथ ऐसी खोज पड़ जाती है तो वह विनाश की करता है।  धार्मिक ग्रंथ सभ्य समाज की संरचना कर सकते हैं यदि इनमें समय-समय पर सभ्य तरीके से बदलाव होते रहें।

नई पीढ़ी व पश्चिमी जीवन का रहन सहन

  नई पीढ़ी व पश्चिमी जीवन का रहन सहन मैं तो अभी 16 साल की हुई हूं, 18 की हो जाऊंगी तो अपने फैसले स्वयं लूंगी। कोई होता कौन है जो मुझे बताए या टोटके। मैं समझदार हूं और सब कुछ जान गई हूं। मुझे समझाने की कोशिश न करो। मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना मैं समझती हूं। कानून ने मुझे अधिकार दिए हैं। आप  दकियानूसी सोच को अपने पास रखें और अपनी जाति, धर्म को चाट कर खाएं। आज दुनिया कहां कि कहां पहुंच चुकी है और आप वहीं जात पात, धर्म में ही चिपके बैठे हैं। इंसान को इंसान समझना सीखो। हर कोई इंसान है। मैं जिससे  प्यार करती हूं उसी से साथ रहूंगी लिव इन रिलेशन में । यदि आपने कुछ ज्यादा बोला तो घर छोड़कर भाग जाऊंगी। मैं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं। बच्चे ऐसी बातें आप अपने अभिभावकों से करते हैं। अभिभावक सोचने लगते हैं कि हमने क्या नहीं किया इन बच्चों के लिए। अच्छी से अच्छी परवरिश दी,कर्ज लेकर पढ़ाया, अच्छे संस्कार दिए, फिर भी कहां गलती रह गई कि बच्चे विद्रोही हो गए। माता-पिता को पौराणिक, रूढ़िवादी आदि शब्दों से संबोधित करना शुरु कर दिया। अभिभावक अपने बच्चों की खुशी के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं ले

पौराणिक जगत व संस्कृतियों का क्या संबंध है?

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  पौराणिक जगत व संस्कृतियों का क्या संबंध है? पौराणिक जगत से संस्कृतियों का गहरा संबंध है। किसी भी संस्कृति की कल्पना पौराणिक इतिहास के बिना नहीं की जा सकती। हर संस्कृति का अपना पौराणिक इतिहास है। दुनिया की हर संस्कृति में पौराणिक इतिहास है और इन संस्कृतियों के पौराणिक इतिहास के पात्र एक जैसे ही प्रतीत होते हैं। मिस्र, बेलीलोन, यूनान, रोमन, जापान, पेगेन, वीका, वूडू आदि संस्कृतियों व सभ्यताओं का मूल पौराणिक इतिहास ही है। यदि पौराणिक इतिहास न होता तो ये सभ्यताएं प्रफुल्लित ही नहीं हो पाती। आज इन सभ्यताओं के अवशेषों को देखा जाए तो सृमृद्दि की देवी, सूर्य देव, घोड़े के मुख वाला रोमन देव, सुख समृद्धि की देवी ईस्टर आदि हजारों पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां या रेखा चित्र देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सभ्यताएं कितनी उन्नत रही होंगी। इन नायकों पात्र वास्तिवक होते थे। जैसे सूर्य, जंगल, पृथ्वी, पेड़, पशु आदि पात्र वास्तविक हैं लेकिन इनसे लोग संवाद करने के लिए इनका मानवीय करण कर देते थे। जैसे जंगल से अपनत्व दिखाने के लिए उसे देवता बनाया और फिर उससे देव की तरह संवाद किया और लोक कथाएं,लोग

गोस्वामी तुलसीदास व श्री रामचरितमानस

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  गोस्वामी तुलसीदास व श्री रामचरितमानस एक समय था जब मुगलों ने अयोध्या में श्री राम का मंदिर ध्वस्त कर दिया था और उस पर बाबरी मस्जिद का निर्माण कर दिया था। यह एक ऐसा सांस्कृतिक व धार्मिक हमला था जिसमें हिन्दुओं की आस्था को नष्ट करने का कुप्रयास था। ऐसा नहीं था कि मस्जिद बनाने के लिए जगह की कमी थी लेकिन मंदिर को ध्वस्त करना जरूरी था। आस्था को तोड़ना था, श्रीराम जो भारतीय जनमानस के दिलों में बसे थे उस नायक की स्मृति को मिटाना था। एक इंसान ने एक ऐसा इतिहास रच दिया कि जन-जन तक राम की गाथा पहुंचा दी। जितना आस्था को तोड़ने का प्रयास किया गया उतनी ही आस्था और दृढ़ होती गई। गोस्वामी तुलसीदास जी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं राम कथा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मुझे ऐसा करना अच्छा लगता है। काव्य ग्रंथ श्री रामचरितमानस ने पूरे हिन्दुस्तान में आस्था की क्रांति ला दी। एक ऐसी चिंगारी उठी कि हर तरफ आस्था की आग लग गई। एक अदना सा इंसान जो दो समय की रोटी भी नहीं जुटा पाता हो उसने रामकथा लिखकर, गाकर राम नाम की अलख जगा दी। यदि गोस्वामी जी ने रामचरितमानस न लिखा होता तो एक नायक श्रीराम जनमानस के ह्दय पटल

कुम्भ मेला या गंगा स्नान क्या है, इन्हें कैसे टार्गेट किया जाता है

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कुम्भ मेला या गंगा स्नान क्या है, इन्हें कैसे टार्गेट किया जाता है कुम्भ मेला व गंगा स्नान भारतीय संस्कृति का मिलन स्थल है। विभिन्न विचारधाराओं का एक सा मिलना और फिर वापस अपने मूल स्थल पर लौट जाना। दुनिया में सबसे बड़ा मेला जहां 25 करोड़ से अधिक लोग मिलते हैं, आपस में विचार विमर्श करते हैं और स्नान करते हैं। कोई चोरी नहीं होती, कोई छेड़छाड़ की घटना नहीं, न ही कोई बीमारी फैलती है। हजारों सालों से यह राष्ट्रीय एकता का अनौखा संगम। इतने बड़े मानव समूह को देखकर पूरा विश्व दांतों तले उंगलियां दबा लेता है। कोई शैव है, वैष्णव है, निर्मला है सब एक सूत्र में यहां आकर बंध जाते है। सैकुलर सरकार, मिशनरी व वामपंथी नहीं चाहते कि हिन्दुओं की एकता हो और वे इसे टार्गेट करने का पूरा प्रयास किया जाता है। कुम्भ मेले पर टीवी पर एड चलाई जाती है जिसमें एक बेटा अपने बूढ़े बाप को मेले में छोड़कर भागता दिखाया जाता है। समाचार पत्रों में खबरें छपाई जाती हैं कि मेले में लाखों कंडोम बांटे गए हैं, इतने लोगों के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं बीमारी फैल सकती है आदि। मेले में मिशनरी सदस्य दवाई देने के नाम पर टैंट लगाक

प्रोफैशनल तरीके से ही हो सकता है समस्याओं का समाधान

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  प्रोफैशनल तरीके से ही हो सकता है समस्याओं का समाधान- जब कोई बीमार पड़ता है तो वह अच्छे से अच्छे विशेषत्र चिकित्सक के पास जाता है। वह चिकित्सक उसकी बीमारी को समझ कर उसका उपचार दवाईयों से करता है। इसी प्रकार कोई असवाद या मानसिक परेशानी से जूझ रहा होता है तो उसे अच्छेे मनोचिकित्सक व काऊंसलर की जरूरत होती है। कांऊंसलिंग से उसकी मानसिक स्थिति को समझ कर उसका उपचार  किया जाता है। ऐसे समय में कोई उसे प्रवचन दे तो उसका कोई औचित्य नहीं होता। मानसिक परेशानियों शंकाओं से जूझ रहे लोगों का प्रोफैशनल तरीके से ही उपचार हो सकता है। इधर-उधर की बातें करना केवल एक ढकोसला ही होता है।  प्रचारक न तो किसी विषय के विषेशज्ञ होते हैं और न ही इनको कोई अनुभव होता है। केवल तोते के समान रटी बातें दोहराते रहते हैं जिनका व्यवहारिक जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। समस्याएं आने पर लोग केवल विशेषज्ञों के पास जाएं तो उनकी समस्याएं हल हो जाती हैं। ये सभी लोग अपने-अपने धार्मिक ग्रंथों से ली गई बातों से लोगों को केवल समस्याएं व शंकाएं सुलझाने के आसमानी स्वपन ही दिखाते हैं।  एक युवा जिसकी नौकरी चली गई है, जो बेरोजगार है, पत

हिन्दू अन्न के बारे में क्या नजरिया रखते हैं?

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  हिन्दू अन्न के बारे में क्या नजरिया रखते हैं? हिन्दू अन्न को  परमात्मा भी कहते हैं । वे मानते हैं कि मां अन्नपूर्णा इस संसार के समस्त जीवों का भरण- पोषण करती हैं। अन्न को पवित्रता की श्रेणी में रखा जाता है। भोजन कैसा होना चाहिए, कहां करना चाहिए और कितना करना चाहिए इसके लिए हर हिन्दू बचपन से ही जागृत होता है। घरों का माहौल ही ऐसा होता है कि भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन किया जाता है। गांवों के लोग भोजन के प्रति बहुत ही सावधानी रखते हैं । वे बाहर का भोजन करने से परहेज करते हैं और घर में सात्विक भोजन करते हैं। ज्यादातर हिन्दू शाकाहारी भोजन को ही महत्व देते हैं। यही उनके अच्छे स्वास्थ्य का एक बहुत बड़ा कारण होता है। घर का माहौल ही ऐसा होता है कि परिजन हर रोज सात्विक भोजन करने व कहां भोजन नहीं करना है के बारे में बात करते रहते हैं। रसोईघर एक बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है और वहां प्रवेश करने के लिए कुछ नियमों का पालन हरेक को करना होता है। भोजन करने से पहले गौ ग्रास व कौए व कुत्ते के लिए लिए भी भोजन रखा जाता है। कहीं तो पहली रोटी गऊ को या कुत्ते के  लिए रखी जाती है। जल को ग्रहण करन

शास्त्रीय संगीत की पवित्रता कैसे नष्ट की गई

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शास्त्रीय संगीत की पवित्रता कैसे नष्ट की गई स्वामी हरिदास संगीत में रमे रहते। जब भी उन्हें ईश्वर की लगन लगती वह गाने लगते। जंगल में कुटी बनाकर राम-कृष्ण नाम धुन में लीन रहते थे। कहते हैं इनके आवाज में ऐसा जादू था कि पंछी चहकना छोड़ देते, गाय अपने आप दूध देने लगतीं, पेड़ झूलने लगते और लोग जहां होते वहीं स्थिर हो जाते। स्वामी जी की आवाज की ख्याति देश के कोने-कोनेे में पहुंच चुकी थी। मां सरस्वती के महान भक्त स्वामी हरिदास के कंठ में ऐसा जादू था कि मृत लोग भी जीवित हो जाते। स्वामी जी किसी के कहे पर नहीं गाते थे जब उनको लय उठती तभी गाते थे और उनके गायन को सुनने के लिए लोग महीनों उनकी कुटिया के आसपास रहते और जैसे ही गायन शुरु होता तो अपने जीवन को धन्य करते।  स्वामी जी के कई शिष्य बन चुके थे, इनमें एक था तानसेन। तानसेन ने अपने गुरु की सेवा करके संगीत सीखा। उसकी आवाज में भी अपने गुरु जैसा जादू था। उसकी ख्याति जब अकबर के दरबार में पहुंची तो उसने उसे अपना दरबारी गायक बना लिया । अब तानसेन जो कि ब्राह्मण था,का धर्म परिवर्तन करके उसका एक और विवाह मुसलमान कन्या से करवा दिया गया। अब वह मीया तानसेन हो

Horoscope prediction of indian idol singer Pawandeep Rajan | pawandeep ki kundly

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    Horoscope prediction of singer  Pawandeep Rajan | pawandeep ki kundly Indian Idol Winner Singer Pawandeep Rajan is about to become a great singer in the world. Born in Champawat village in   Uttarakhand, this 25-year-old young boy has taken the country by surprise with his singing. A singer who has magic in his voice. Pawandeep Rajan has established himself as a very big star singer in Bollywood. No doubt he will become the star of Indian Idol as Pawandeep Rajan is a king of Kings. No one can stop him from reaching the heights. This singer is to take possession of Bollywood soon. Pawandeep is such a talented singer that it has made the name of his village and state famous in the world. People are surprised and spellbound.  Let us study Pawandeep's inference horoscope and know what his stars say.  Name- Pawandeep Rajan date of birth- 27 july 1997 place of  birth- Chamawat (Uttrakhand) The depiction of the position of planets in the zodiac at the time and place of a person's