बंगाल में नास्तिकवाद, वामपंथ व भक्ति लहर का जोर
बंगाल में नास्तिकवाद, वामपंथ व भक्ति लहर का जोर बंगाल में जो कुछ हो रहा था उसका सारे भारत पर असर पड़ रहा था क्योंकि जो वामपंथी विचारक इन कालेजों से निकल रहे थे उनको बहुत प्रोमोट किया जा रहा था। विवेकानंद जैसे हजारों नास्तिक विचार इन कालेजों से निकल रहे थे। ये अब हर चीज ईसाई नजरिए से देखते थे। एक तरफ इन वामपंथियों का बोलबाला हो रहा था उसी तरफ बंगाल में भक्ति लहर वैष्णव लहर तेजी से जोर पकड़ रही थी और मिशनरियों को कोई निर्धारित सफलता नहीं मिल पा रही थी क्योंकि हर ग्रंथ को ईसाई वामपंथी नजरिए से लिखने के लिए उनके पास मैनपावर नहीं थी। लोगों का भक्ति में इतना लगाव था कि हर दूसरे दिन कोई न कोई भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जाता था। लोग इन मंदिरों में पूजा आर्चना करने आने लगते और चढ़ावा भी बहुत चढ़ता था। मिशनरी एक तो मंदिरों को खत्म करना चाहते थे और मूर्तियों से भी इन्हें खास चिढ़ थी क्योंकि इनके धर्म में मूर्ति पूजक नर्क की आग में जलते हैं। ये लोग नहीं जानते थे कि हिन्दुत्व क्या है और इसकी आत्मा मंदिरों, धार्मिक अनुष्ठानों, योग, मंत्र, महागाथाओं के नायकों, धार्मिक ग्रंथों में बसती है।...