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हिन्दुओं की पहचान, धार्मिक चिन्ह, धर्म ग्रंथों, त्यौहारों व मेलों को खत्म करना

हिन्दुओं की पहचान, धार्मिक चिन्ह, धर्म ग्रंथों, त्यौहारों व मेलों को खत्म करना बंगाल व मद्रास में जो कुछ हो रहा था  इसका असर पूरे उत्तर भारत में पड़ना शुरु हो गया था। प्रेजीडैंसी कालेजों के  प्राध्यापक पूरी तरह से प्रशिक्षित थे कि कैसे हिन्दू छात्रों से डील करना है। वे लैक्चर के दौरान भरी कक्षा में हिन्दुओं के देवी-देवताओं, अराध्यों का मजाक उड़ाते, उनकी धार्मिक श्र्द्धा पर ऐसे जोक करते  और ईसाई धर्म की महानता की भी बात करते। वे जो पीढ़ी पैदा कर रहे थे वैसे ही थी जैसे आजकल जेएनयू में है। इन कालेजों से पढ़े छात्र विद्रोही व हिन्दू धर्म से टूट चुके थे। वे अपने माता-पिता की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाते। बंगाल तेजी से वामपंथ व नास्तिकवाद की तरफ बढ़ रहा था। इन कालेजों में एक बात थी कि मुसलमानों के बच्चे बहुत ही कम यानि न के बराबर होते थे और प्राध्यापकों को अगाह किया जाता था कि इस्लाम के बारे में कुछ न बोलें। मिशनरियों का प्लान था कि हिन्दुओं के घरों से पहले तुलसी, स्वास्तिक, उनके देवीदेवता, धार्मिक ग्रंथ, संगीत आदि निकलवा दिए जाएं क्योंकि जब तक ये रहेंगे उनकी पहचान बनी रहेगी।...