संवाद का धार्मिक परिपेक्ष क्या है?
संवाद का धार्मिक परिपेक्ष क्या है इंसान ने दूसरे इंसान को अपनी भावनाएं पहुंचाने के लिए इशारों का प्रयोग किया, फिर चिन्हों, ध्वनि और फिर भाषा का प्रयोग किया। यह संवाद ही है जो दो इंसानों को आपस में जोड़ता है। दर्पण के सामने खड़ा होकर सज रही नारी दर्पण से संवाद ही कर रही होती है। दर्पण उसे बताता है कि कैसे सजना है और वस्त्र चेहरा इत्यादि ठीक करने हैं। आप जब कोई किताब पढ़ रहे होते हैं या कोई टीवी पर कार्यक्रम देख रहे होते हैं तो आप एक तरह का संवाद ही कर रहे होते हैं। आपने देखा होगा कि टीवी, मोबाइल,पुस्तकें आदि से एक समय पर आकर मन भर जाता है तो आप किसी से बात करने के लिए लालायित हो जाते हैं। आपसे में बैठ कर बात कर रहे लोग एक दूसरे को अपनी समस्याएं बताते हैं और अन्य विषयों पर भी चर्चा करते हैं। आप सामने वाले को अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं लेकिन आप जानते भी हैं कि वह आपकी समस्याओं को सुलझा नहीं सकता लेकिन फिर भी आप संवाद करते हैं। जब शरीर की तकलीफ बढ़ जाती है तो आप डाक्टर को फीस देकर उसको अपनी समस्या बताते हैं और वह आपको दवाई देता है। यदि एक इंसान अकेला रहता है किसी से संवाद नही...