मंदिरों में सुचारु व्यवस्था व प्रबंधन कैसा हो
मंदिरों में सुचारु व्यवस्था व प्रबंधन कैसा हो मंदिरों में अक्सर जाने वाले भक्तों शिकायतें आती रहती हैं कि वहां प्रबंध सुचारु नहीं होते और भक्तों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा जाता। इससे उनकेे मनों को ठेस पहुंचती है। मंदिरों में राजनीतिक दखअंदाजी, गुटबाजी अक्सर हावी रहती है। प्रबंधक कमेटी के लोग इतने प्रशिक्षित नहीं होते कि उन्हें नहीं पता होता कि मंदिर में आए भक्तों से किस तरह का व्यवहार करना है। अब नए मंदिरों की कमेटियों में पढ़े लिखे लोग आने से हालात कुछ सुधरने शुरू हो गए हैं। ये लोग विभिन्न मंदिरों का दौरा करते रहते हैं और तालमेल भी रखते हैं। अच्छी व्यवस्था अपनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन फिर भी ये लोग इसाइसों जैसी कम्पनी व्यवस्था लाने में अभी बहुत पीछे हैं। मंदिर के पंडित जी को इतना कम वेतन मिलता है कि इसमें उसका गुजारा होना मुश्किल होता है। यदि वह अपने तौर पर यजमानों के काम पूजा आदि न करे तो वह अपने परिवार पालन-पोषण ही न कर सके। इसलिए ये पूरी तरह से यजमानों पर ही निर्भर होते हैं। प्रंबधक कमेटी के सदस्यों का व्यवहार भी ठीक नहीं होता वे उन्हे वह आदर नहीं देते जैसा पा...