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पुराण क्या हैं और इऩके नायकों का भारतीय जनमानस पर क्या असर है

पुराण क्या हैं और इऩके नायकों का भारतीय जनमानस पर क्या असर है बच्चों के उनके दादा-दादी व माता-पिता बचपन में जिन नायकों के किस्से सुनाते थे वे सभी नायक पौराणिक ही होते थे। ये कथाएं उनके जीवन पर ऐसा प्रभाव डालती थीं कि ये नायक उनके साथ हमेशा जीवनभर के लिए हो जाते थे। एक बार जिस नायक के साथ जुड़ गए तो जुड़ गए, फिर उनके विश्वास को श्रद्धा को तोड़ना बहुत मुश्किल था। राजपूत ऱण भूमि में रण की देवी चंडी का नाम लेकर ही दुश्मनों के दांत खट्टे कर देते थे। चंडी का प्रभाव ऐसा होता था कि ये एक करंट की तरह काम करता था। इसी प्रकार आज भी फौज में जब सैनिक लड़ाई करने जाते हैं तो हर-हर महादेव आदि के जयघोष लगाते हैं और दुश्मनों को खत्म करके ही लौटते हैं। यह ताकत, ऊर्जा उन्हें इन्ही नायकों से आज भी मिलती है जो जीवन भर उनके साथ चलते हैं। पुराण ऐसे ऐतिहासिक ग्रंथ हैं जिनके नायकों के वे किस्से हैं जिन्हें जनमानस तक पहुंचाने के लिए कथाओं का रूप दिया गया है। इनमें उस समय के लोगों का जीवन, सामाजिक व्यवहार, संगीत, भाषा, कला आदि की जानकारी मिलती है। ये ऐसे सशक्त साधन हैं जिनकी कथाएं देश-विदेश में हर जगह पहुंची...

यू-टर्न थ्यूरी व पाइसन पिल्स क्या हैं

यू-टर्न थ्यूरी व पाइसन पिल्स क्या हैं जब कोई व्यक्ति जिस विचारधारा या धर्म को छोड़कर आता है और कुछ समय बाद फिर वहीं वापस चला जाता है तो उसे यू-टर्न थ्यूरी कहा जाता है। इसमें उस वयक्ति पर की गई सारी मेहनत बेकार चली जाती है। 1960-70 के दशक में अमेरिका में भारत के दर्शन का डंका बज रहा था उस भारत से कई संत वहां धर्म प्रचार को पहुंचे थे, उन्होंने अपने लाखों श्रद्धालु भी बनाए लेकिन उनकी मृत्यु के बाद 90 प्रतिशत श्रद्धालु वापिस जहां से आए थे वहीं वापस चले गए। इन संतों के बनाए गए मिशन यू-टर्न के कारण बुरी तरह से फ्लाप हो गए। इस थ्यूरी को ईसाई मिशनरियां बहुत ही अच्छी तरह से समझती हैं। जब कोई हिन्दू ईसाई होता है तो उसका यू टर्न रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के फंडे प्रयोग किए जाते हैं। सबसे पहले उसके घर से उसके धर्मिक ग्रंथ, धार्मिक चिन्ह स्वास्तिक, ओम, देवी-देवताओं के चित्र, तुलसी आदि जिससे भी उसकी पहचान थी, को बाहर कर दिया जाता है। फिर उसे मंदिर जाने से व प्रशाद तक खाने से रोक दिया जाता है। उसे डराया जाता है कि यदि इन शैतानी देवी-देवताओं की पूजा करोगे तो नर्क की आग में जलोगे।  नफरत, ड...

विश्वास व अंधविश्वास का मनोविज्ञान क्या है ?

विश्वास व अंधविश्वास का मनोविज्ञान क्या है? विश्वास व अंधविश्वास का आपस में गहरा संबंध है, विश्वास है किसी दायरे से बाहर रहना और अंधविश्वास किसी दायरे में चले जाना। जो इस दायरे के अंदर हैं वे बाहर वालों को अंदर और जो बाहर हैं वे चाहते हैं कि अंदर वाले बाहर आ जाएं। बस यह कशमकश चलती रहती है। विश्वास व अंधविश्वास दोनों कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और न ही प्रमाण है लेकिन दोनों ही स्वंय को वैज्ञानिक साबित करने का प्रयास करते हैं। एक कहता है कि वह ईेश्वर पर विश्वास करता है और दूसरा कहता है कि वह ईश्वर पर विश्वास नहीं करता, दोनों दावा अपने विश्वास को वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने का दावा पेश करते हैं जो सदियों से करते रहे हैं। हर मानव किसी न किसी विश्वास को लेकर चलता है, यह शिफ्ट भी होता रहता है। मान लो किसी को नौकर की बहुत जरूरत है वह या तो उसके बारे में उसके मुंह से सुनकर उसे रखता है या उसकी पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद रखता है , कई बार उसकी जरूरत इतनी तीव्र होती है कि वह उसे वैसे ही विश्वास पर रख लेता है क्योंकि उसके पास और कोई चारा नहीं होता। बच्चे माता-पिता पर बहुत विश्वास करते है...

मिथिहास या एपिक से क्या अभिप्राय है?

मिथिहास या एपिक से क्या अभिप्राय है किसी भी घटना का समय, डेट, सन आदि न पता हो तो उसे अब्रहमिक व वामपंथी नजरिए में मिथिक या काल्पनिक या अंग्रेजी में एपिक कहा जाता है। ऐसी घटनाओं को जिन ग्रंथों में लिखा गया होता है वे भी काल्पनिक माने जाते हैं। इन ग्रंथों आदि की सभी बातें काल्पनिक होती हैं जो किसी भी घटनाक्रम को काल्पनिक तरीके से बताती हैं। हिन्दू धर्म के वेदों सहित हर धार्मिक ग्रंथों को काल्पनिक घोषित किया गया है। जाहिर है इनके सभी पात्र भी काल्पनिक होंगे। जब आप किसी ग्रंथ को काल्पनिक घोषित कर देते हो तो आपको एक अधिकार मिल जाता है कि अपने एजैंडे के अनुसार उसकी व्याख्या कर सकते हैं। ऐसे ही जब बीआर चोपड़ा ने महाभारत सीरियल बनाया तो महाभारत ग्रंथ में लिखे गए हर पात्र को उसी अनुसार पेश करने का पूरा प्रयास किया गया। जिस प्रकार करोड़ों लोगों की धर्मिक भावनाएं हैं,उनका पूरा सम्मान किया गया। लेकिन वामपंथियों ने एकता कपूर से हमारा महाभारत धारावाहिक बनाया जिसमें द्रोपदी को टैटू और पांडव माडल्स बनाए गए।  इसे बाद देवदत्त पटनायक ने भी धार्मिक भावनाओं की धज्जियां उड़ाते हुए मेरी गीता, मेरा महा...

इतनी सदियां बीतने के बाद भी जैन समुदाय का हिन्दू धर्म से अटूट रिश्ता कैसे सुदृढ़ रहा

इतनी सदियां बीतने के बाद भी जैन समुदाय का हिन्दू धर्म से अटूट रिश्ता कैसे सुदृढ़ रहा जैन व सनातन धर्म सदियों से एक सूत्र में ही रहे। इनमें वैचारिक भिन्नता होने के बावजूद ये व्यवहारिक तौर पर हिन्दू समाज से ऐसे जुड़े रहे जैसे एक जिस्म दो जान। जैन धर्म आत्म तत्वी है और नास्तिक है वहीं सनातन धर्म ईश्वरवादी है। दोनों धर्मों के मंदिर अलग होते हैं व ईष्ट भी अलग होते हैं लेकिन इनके विवाह व अंतिम संस्कार पूरी तरह से वैदिक रीति से होते हैं। जैन समुदाय का एक कथन जीओ व जीने दो ने सारी दुनिया के एक नई दिशा दी। एक अन्य कथन कि यह मेरा अनुभव है संभवत मैं गलत भी हो सकता हूं जीवन दर्शन का एक ऐसा खुला रास्ता है कि यहां हर महानुभाव के लिए जगह है, सम्मान है। जैन समुदाय में मुनियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों आदि का योगदान रहा। ब्राह्मण मुनियों ने महान ग्रंथों की रचना की, जैन ज्योतिष आदि को लिखकर जैन धर्म को बहुत ही उत्कृष्ट बनाया। आज किसी भी मंच पर जैन मुनि कभी भी हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं, धर्म ग्रंथों आदि की आलोचना नहीं करते। जब हिन्दुओं पर अत्याचार होता है तो खुलकर इसका विरोध करते हैं। एक बा...