प्लैटलैट्स को तेजी से बढ़ा देता है गिलोय
प्लैटलैट्स को तेजी से बढ़ा देता है गिलोय
गिलोय की बूटी अमृत समान है। इसे कई रोगों के उपचार में काम लिया है। एक तरह से यह जीवनदायिनी औषधि है। जिन मरीजों को डेंगू बुखार हो और उनके प्लैटलैट्स तेजी से कम हो रहे हों तो तुरंत गिलोय की जड़ का या टहनी का रस मरीज को देने से तेजी से उसके प्लैटलैट्स बढ़ जाते हैं। गिलोय की टहनी या जड़ को उबाल लें। उसके रस को थोड़ा-थोड़ा करके मरीज को दें और फिर देखिए कि चमत्कारी ढंग से मरीज स्वस्थ होता है और उसके प्लैट्लैट्स तेजी से बढ़ते हैं। इस अमृत बेल के हजारों गुण हैं।
इसका बोटैनिकल नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है। इस के पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। इसकी एक बहुवर्षिय लता होती है। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि। बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है। आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यत: कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम्र के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं। इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं।
बेल के काण्ड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर वर्ण की होती है, जिसे हटा देने पर भीतर का हरित मांसल भाग दिखाई देने लगता है। काटने पर अन्तर्भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है। पत्ते हृदय के आकार के, खाने के पान जैसे एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ये लगभग 2 से 4 इंच तक व्यास के होते हैं। स्निग्ध होते हैं तथा इनमें 7 से 9 नाडिय़ाँ होती हैं। पत्र-डण्ठल लगभग 1 से 3 इंच लंबा होता है। फूल ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे पीले रंग के गुच्छों में आते हैं। फल भी गुच्छों में ही लगते हैं तथा छोटे मटर के आकार के होते हैं। पकने पर ये रक्त के समान लाल हो जाते हैं। बीज सफेद, चिकने, कुछ टेढ़े, मिर्च के दानों के समान होते हैं। उपयोगी अंग काण्ड है। पत्ते भी प्रयुक्त होते हैं
ताजे काण्ड की छाल हरे रंग की तथा गूदेदार होती है। उसकी बाहरी त्वचा हल्के भूरे रंग की होती है तथा पतली, कागज के पत्तों के रूप में छूटती है। स्थान-स्थान पर गांठ के समान उभार पाए जाते हैं। सूखने पर यही काण्ड पतला हो जाता है। सूखे काण्ड के छोटे-बड़े टुकड़े बाजार में पाए जाते हैं, जो बेलनाकार लगभग 1 इंच व्यास के होते हैं। इन पर से छाल काष्ठीय भाग से आसानी से पृथक् की जा सकती है। स्वाद में यह तीखी होती है, पर गंध कोई विशेष नहीं होती। पहचान के लिए एक साधारण-सा परीक्षण यह है कि इसके क्वाथ में जब आयोडीन का घोल डाला जाता है तो गहरा नीला रंग हो जाता है। यह इसमें स्टार्च की उपस्थिति का परिचायक है। सामान्यत: इसमें मिलावट कम ही होती है, पर सही पहचान अनिवार्य है। कन्द गुडूची व एक असामी प्रजाति इसकी अन्य जातियों की औषधियाँ हैं, जिनके गुण अलग-अलग होते हैं। औषधीय गुणों के आधार पर नीम के वृक्ष पर चढ़ी हुई गिलोय को सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि गिलोय की बेल जिस वृक्ष पर भी चढ़ती है वह उस वृक्ष के सारे गुण अपने अंदर समाहित कर लेती है तो नीम के वृक्ष से उतारी गई गिलोय की बेल में नीम के गुण भी शामिल हो जाते हैं अत: नीमगिलोय सर्वोत्तम होती है।
गिलोय पुराने से पुराने बुखार को उतार देती है। इसके रस को पीलिया के मरीज को देने से 3 दिन के भीतर
पीलिया खत्म हो जाता है। सुबह खाली पेट गिलोय का सेवन करने से पेट की अतिरिक्त चर्बी कम हो जाती है। इसके सेवन करने से वजन भी कम होता है। दुधारू पशुओं से अधिक दूध लेने के लिए इसके पत्ते पशुओं को खिलाने से दूध अच्छा हो जाता है। पशुओं के पेट रोग भी दूर हो जाते हैं। गिलोय के सेवन से गठिया, पेट रोग, अपच, लीवर रोग ठीक हो जाता है।
हमारे पास एक मरीज आया जिसको बुखार नहीं उतर रहा था और वह एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन 6 दिन से कर रहा था और उसके प्लैटलैट्स लगातार गिरते हुए 20 हजार तक पहुंच गए। उसे तुंरत गिलोय का रस दिया गया
तो 3 दिन में ही उसके सैल अढ़ाई लाख तक पहुंच गए और वह अच्छा खाने-पीने भी लग गया। ऐसा चमत्कारिक असर देख कर मरीज के परिजन भी हैरान रह गए। इस अमृत औषधि का सेवन करने से लाखों लोगों को नया जीवन मिला है। लोगों को चाहिए कि ऐसी बूटी को जगह-जगह पर लगाएं ताकि किसी का जीवन बच सके।
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गिलोय की बूटी अमृत समान है। इसे कई रोगों के उपचार में काम लिया है। एक तरह से यह जीवनदायिनी औषधि है। जिन मरीजों को डेंगू बुखार हो और उनके प्लैटलैट्स तेजी से कम हो रहे हों तो तुरंत गिलोय की जड़ का या टहनी का रस मरीज को देने से तेजी से उसके प्लैटलैट्स बढ़ जाते हैं। गिलोय की टहनी या जड़ को उबाल लें। उसके रस को थोड़ा-थोड़ा करके मरीज को दें और फिर देखिए कि चमत्कारी ढंग से मरीज स्वस्थ होता है और उसके प्लैट्लैट्स तेजी से बढ़ते हैं। इस अमृत बेल के हजारों गुण हैं।
इसका बोटैनिकल नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है। इस के पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। इसकी एक बहुवर्षिय लता होती है। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि। बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है। आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यत: कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम्र के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं। इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं।
बेल के काण्ड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर वर्ण की होती है, जिसे हटा देने पर भीतर का हरित मांसल भाग दिखाई देने लगता है। काटने पर अन्तर्भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है। पत्ते हृदय के आकार के, खाने के पान जैसे एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ये लगभग 2 से 4 इंच तक व्यास के होते हैं। स्निग्ध होते हैं तथा इनमें 7 से 9 नाडिय़ाँ होती हैं। पत्र-डण्ठल लगभग 1 से 3 इंच लंबा होता है। फूल ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे पीले रंग के गुच्छों में आते हैं। फल भी गुच्छों में ही लगते हैं तथा छोटे मटर के आकार के होते हैं। पकने पर ये रक्त के समान लाल हो जाते हैं। बीज सफेद, चिकने, कुछ टेढ़े, मिर्च के दानों के समान होते हैं। उपयोगी अंग काण्ड है। पत्ते भी प्रयुक्त होते हैं
ताजे काण्ड की छाल हरे रंग की तथा गूदेदार होती है। उसकी बाहरी त्वचा हल्के भूरे रंग की होती है तथा पतली, कागज के पत्तों के रूप में छूटती है। स्थान-स्थान पर गांठ के समान उभार पाए जाते हैं। सूखने पर यही काण्ड पतला हो जाता है। सूखे काण्ड के छोटे-बड़े टुकड़े बाजार में पाए जाते हैं, जो बेलनाकार लगभग 1 इंच व्यास के होते हैं। इन पर से छाल काष्ठीय भाग से आसानी से पृथक् की जा सकती है। स्वाद में यह तीखी होती है, पर गंध कोई विशेष नहीं होती। पहचान के लिए एक साधारण-सा परीक्षण यह है कि इसके क्वाथ में जब आयोडीन का घोल डाला जाता है तो गहरा नीला रंग हो जाता है। यह इसमें स्टार्च की उपस्थिति का परिचायक है। सामान्यत: इसमें मिलावट कम ही होती है, पर सही पहचान अनिवार्य है। कन्द गुडूची व एक असामी प्रजाति इसकी अन्य जातियों की औषधियाँ हैं, जिनके गुण अलग-अलग होते हैं। औषधीय गुणों के आधार पर नीम के वृक्ष पर चढ़ी हुई गिलोय को सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि गिलोय की बेल जिस वृक्ष पर भी चढ़ती है वह उस वृक्ष के सारे गुण अपने अंदर समाहित कर लेती है तो नीम के वृक्ष से उतारी गई गिलोय की बेल में नीम के गुण भी शामिल हो जाते हैं अत: नीमगिलोय सर्वोत्तम होती है।
गिलोय पुराने से पुराने बुखार को उतार देती है। इसके रस को पीलिया के मरीज को देने से 3 दिन के भीतर
पीलिया खत्म हो जाता है। सुबह खाली पेट गिलोय का सेवन करने से पेट की अतिरिक्त चर्बी कम हो जाती है। इसके सेवन करने से वजन भी कम होता है। दुधारू पशुओं से अधिक दूध लेने के लिए इसके पत्ते पशुओं को खिलाने से दूध अच्छा हो जाता है। पशुओं के पेट रोग भी दूर हो जाते हैं। गिलोय के सेवन से गठिया, पेट रोग, अपच, लीवर रोग ठीक हो जाता है।
हमारे पास एक मरीज आया जिसको बुखार नहीं उतर रहा था और वह एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन 6 दिन से कर रहा था और उसके प्लैटलैट्स लगातार गिरते हुए 20 हजार तक पहुंच गए। उसे तुंरत गिलोय का रस दिया गया
तो 3 दिन में ही उसके सैल अढ़ाई लाख तक पहुंच गए और वह अच्छा खाने-पीने भी लग गया। ऐसा चमत्कारिक असर देख कर मरीज के परिजन भी हैरान रह गए। इस अमृत औषधि का सेवन करने से लाखों लोगों को नया जीवन मिला है। लोगों को चाहिए कि ऐसी बूटी को जगह-जगह पर लगाएं ताकि किसी का जीवन बच सके।
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