गिरमिटिया मजदूरों ने कैसे बचाया अपना धर्म

गिरमिटिया मजदूरों ने कैसे बचाया अपना धर्म
अंग्रेजों ने भारत को जब उपीनिवेश बनाया तो उन्हें गन्ने व नील की खेती के लिए भाड़े के मजदूरों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने बिहार, यूपीआदि क्षेत्रों से मजदूरों को मारिशस, फीजी, गुआना आदि देशों में मजदूरी के लिए ले जाया गया और वे वहीं बस गए। इन मजदूरों की हालत अच्छी नहीं होती थी। एक तो अनपढ़ थे और एकमात्र मजदूरी ही इनका जीविका का माध्यम था। इनसे 16-16 घंटे काम लिया जाता था और बदले में 2 वक्त की रोटी ही दी जाती थी।

इनको एग्रीमैंट करके लाया गया था इसलिए इन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। बिहार के इलाकों से आए ये लोग अधिकतर हिन्दू थे। ये अपने साथ रामचरित मानस ग्रंथ, तुलसी की माला व आरती ही ला पाए थे। बस इसी के सहारे इन्होंने अपने धर्म को जीवित रखा। महाभारत व रामायण की गाथाओं को ये जब भी समय मिलता गाते व आपस में बैठ कर भजन गाते। ये न तो ज्यादा संस्कृत जानते थे लेकिन गायत्री मंत्र, राम-राम या ओम नम.. शिवाय मंत्र का उच्चारण करते रहते थे।

ये लोग कभी भी वापस न जा पाए और यहीं बस गए आज ये स्वयं को हिन्दू कहते हैं और इन्होंने हजारों मंदिर बना लिए हैं। आपका धर्म केवल मंत्र, भजन से भी जीवित रह सकता है केवल श्रद्धा की जरूरत होती हैं। इन गिरमिटिया मजदूरों को हमारा सलाम। 

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