महाराज दशरथ कैसे महान थे
महाराज दशरथ कैसे महान थे
वर्तमान केस नम्बर एक- तेज व्यस्त हाईवे में सड़क के किनारे चल रहे राहगिरों पर शराब में धुत्त एक अमीर युवक अपनी गाड़ी चढ़ा देता है। उन्हें गाड़ी बुरी तरह से कुचल देती है। वह वहां गाड़ी नहीं रोकता तेजी से भगा ले जाता है। यह भी नहीं देखता कि कोई बचा है या नहीं। एक दो दिन तक शोर मचता है पैसे के जोर पर मामला रफा दफा हो जाता है। जिस युवक ने गलती कि उसे जरा सा भी मलाल नहीं कि उसकी गलती ने एक परिवार उजाड़ दिया। कुछ दिनों में सब कुछ ऐसे हो जाता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोई पश्चाताप नहीं कोई सजा नहीं।
केस नम्बर दो- अपने गरीब परिवार का पेट पालने के लिए नेपाल से आई एक लड़की शादी समारोहों में नाचती है। एक रात किसी समारोह में उसका शाराबी बारातियों की तरफ से अपहरण हो जाता है। उसका रेप होता है और फिर हत्या कर दी जाती है। लाश किसी खाली प्लाट में मिलती है। कुछ नहीं होता मामला रफा दफा हो जाता है। गरीब को न्याय नहीं मिलता कोई पैरवी नहीं होती। हत्यारे बचा लिए जाते हैं कोई पश्चाताप नहीं।
केस नम्बर तीन- राजू ,मोनू व टिंकू बनकर बहरूपिए गांवों की बच्चियों को प्रेम में फंसा कर महानगर ले जाते हैं । वहां चकला घरों में बेच दिया जाता है। कोई कार्रवाई नहीं होती। बच्चियों की आबरू कोठों पर नीलाम हो जाती है। ऐसे हजारों मामले हैं।
महाराजा दशरथ की व्यथा- जंगल में गलती से तीर चल जाता है और श्रवण कुमार को लग जाता है। किसी मानव के चिल्लाने की आवाज आती है तो महाराज उसी तरफ भागते हैं। उसके पास पहुंचते हैं पश्चाताप की अग्नि में रोते हैं और क्षमा मांगते हैं। राजा थे चाहते तो वहां से चुपके से निकल जाते और किसी को कुछ नहीं बताते । कौन उनसे पूछने वाला था। नहीं मानव धर्म को नहीं छोड़ा। श्रवण के पास जाते हैं, उसके दुख को सहार नहीं पाते, उसको सहारा देते हैं और उसकी पीड़ा कम करने के लिए तीर के छाती से निकाल देते हैं। उसके कहने पर उसके अंधे माता-पिता को सच बताते हैं। उनको पानी देने का भी प्रयास करते हैं। क्या जरूरत थी श्रवण के माता पिता के पास जाने की उनके क्रोध का पात्र बनने की। लेकिन वे अपना कतर्व्य निभाते हैं और उनका श्राप भी पाते हैं।
वह पश्चाताप भी करते हैं, जीवन भर वे इसको याद करके दुखी रहते हैं कि उनसे एक निर्दोश की हत्या हुई। महाराजा दशरथ की महानता है कि वे अनजाने में की गई गलती का पश्चाताप करते हैं,दुख पाते हैं और श्राप भी लेकिन अपना मानवीय धर्म नहीं छोड़ते।
वर्तमान केस नम्बर एक- तेज व्यस्त हाईवे में सड़क के किनारे चल रहे राहगिरों पर शराब में धुत्त एक अमीर युवक अपनी गाड़ी चढ़ा देता है। उन्हें गाड़ी बुरी तरह से कुचल देती है। वह वहां गाड़ी नहीं रोकता तेजी से भगा ले जाता है। यह भी नहीं देखता कि कोई बचा है या नहीं। एक दो दिन तक शोर मचता है पैसे के जोर पर मामला रफा दफा हो जाता है। जिस युवक ने गलती कि उसे जरा सा भी मलाल नहीं कि उसकी गलती ने एक परिवार उजाड़ दिया। कुछ दिनों में सब कुछ ऐसे हो जाता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोई पश्चाताप नहीं कोई सजा नहीं।
केस नम्बर दो- अपने गरीब परिवार का पेट पालने के लिए नेपाल से आई एक लड़की शादी समारोहों में नाचती है। एक रात किसी समारोह में उसका शाराबी बारातियों की तरफ से अपहरण हो जाता है। उसका रेप होता है और फिर हत्या कर दी जाती है। लाश किसी खाली प्लाट में मिलती है। कुछ नहीं होता मामला रफा दफा हो जाता है। गरीब को न्याय नहीं मिलता कोई पैरवी नहीं होती। हत्यारे बचा लिए जाते हैं कोई पश्चाताप नहीं।
केस नम्बर तीन- राजू ,मोनू व टिंकू बनकर बहरूपिए गांवों की बच्चियों को प्रेम में फंसा कर महानगर ले जाते हैं । वहां चकला घरों में बेच दिया जाता है। कोई कार्रवाई नहीं होती। बच्चियों की आबरू कोठों पर नीलाम हो जाती है। ऐसे हजारों मामले हैं।
महाराजा दशरथ की व्यथा- जंगल में गलती से तीर चल जाता है और श्रवण कुमार को लग जाता है। किसी मानव के चिल्लाने की आवाज आती है तो महाराज उसी तरफ भागते हैं। उसके पास पहुंचते हैं पश्चाताप की अग्नि में रोते हैं और क्षमा मांगते हैं। राजा थे चाहते तो वहां से चुपके से निकल जाते और किसी को कुछ नहीं बताते । कौन उनसे पूछने वाला था। नहीं मानव धर्म को नहीं छोड़ा। श्रवण के पास जाते हैं, उसके दुख को सहार नहीं पाते, उसको सहारा देते हैं और उसकी पीड़ा कम करने के लिए तीर के छाती से निकाल देते हैं। उसके कहने पर उसके अंधे माता-पिता को सच बताते हैं। उनको पानी देने का भी प्रयास करते हैं। क्या जरूरत थी श्रवण के माता पिता के पास जाने की उनके क्रोध का पात्र बनने की। लेकिन वे अपना कतर्व्य निभाते हैं और उनका श्राप भी पाते हैं।
वह पश्चाताप भी करते हैं, जीवन भर वे इसको याद करके दुखी रहते हैं कि उनसे एक निर्दोश की हत्या हुई। महाराजा दशरथ की महानता है कि वे अनजाने में की गई गलती का पश्चाताप करते हैं,दुख पाते हैं और श्राप भी लेकिन अपना मानवीय धर्म नहीं छोड़ते।
Comments
Post a Comment