हमारी गाय का नाम था कमला
हमारी गाय का नाम था कमला
मेरे घर में एक गाय थी, नाम था कमला। रंग उसका भूरा लाल था और उसके माथे पर सफेद निशान था। उसका एक छोटी सी बछड़ी भी थी। प्यार से हम उसको कम्मो कहते तो वे हुंकार भरती हुई जवाब भी देती थी। पास जाओ तो हाथ को अपनी खुरदरी जीभ से चाटने लगती थी। पूंछ हिलाती रहती और उससे अपने शरीर पर किसी भी मक्की को बैठने नहीं देती थी।
कम्मो कीं आंखें कजराई और इतनी प्यारी थीं कि जो एक बार देख ले बस देखता ही रह जाता था। उसमें प्यार व इतना मोह था कि बस देखते ही रहो। मां ने सुबह उठना और पहली रोटी कम्मो के लिए अलग से रख देनी। कम्मो को देसी घी लगी रोटी मैं देने जाता तो वह मेरा स्वागत करती, नथुनों से तेज सांस लेती और जीभ से रोटी मुंह के अंदर खींच लेती। मैं प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरता और वह सिर हिलाती।
कम्मो हमारे परिवार का ही सदस्य थी। हम उसका दूध पीते। पिता जी जब शाम को बाहर से आते तो उसको एक बार मिल कर अंदर जरूर आते।
कम्मो का गोबर हमारे हर काम आता उससे हम उपले बनाते अपने खेत में खाद के तौर पर डालते और उसके गोमूत्र का भी दवाई के तौर पर प्रयोग करते। जब मैं पैदा हुआ था तो मेरे व मेरी मां के मुंह में गोमूत्र के छींटे डाले गए थे। सारे घर को गोबर से लीपा गया था और गोमूत्र को छिड़का गया गया था।
मैं जैसे बड़ा हुआ मुझे उसका साथ मिला। कम्मो के पास मैं जब भी जाता तो वह मुझे अपने बच्चे की तरह चाट-चाट कर गीला कर देती। मेरे को वह कभी कुछ नहीं कहती प्यार ही करती रहती। जैसे ही मेरे को देखती तो वह खुश हो जाती।
मुझे वह दिन याद है कि एक रात हमारी कम्मो को किसी जहरीले सांप ने काट दिया, उसकी वहीं मौत हो गई। हमारा सारा परिवार बहुत रोया, आसपास के लोग हमें दिलासा देने के लिए आए। यह दिन मेरे लिए बहुत ही शोक वाला था,एक पीड़ा थी जो बयान न की जा सकती थी।
आज कम्मो की बछड़ी हमारे पास है उसकी निशानी उसके जैसी ही बहुत ही प्यारी है। बस भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उसे लम्बी उम्र प्रदान करते। हम उसका बहुत ध्यान रखते हैं, प्रेम करते हैं।
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