माइंडसैट क्या है और कैसे तैयार किया जाता है?
इंसान अपनी विचारधारा, संस्कृति, पहरावा, भाषा, क्षेत्र आदि से किसी भी समय शिफ्ट हो सकता है और किसी दूसरी संस्कृति की तरफ जा सकता है। उसे ऐसा करवाने के लिए कुछ टूल्स की आवश्यकता पड़ती है। पहले तो उसके दिमाग में बार बार भरा जाता है, फिर दिखाया जाता है और इसके बाद जब उसका शरीर पढ़ाए गए के अनुसार रिएक्ट करने लगता है तो उसे तुरंत शिफ्ट करवा दिया जाता है। इसमें हिंसा, हीनता, घृणा, लालच से भी काम लिया जाता है। आतंकी एक हिंसा वाली प्रवृति की तरफ अग्रसर हैं क्योंकि उनका माइंसैट ही वैसा बनाया गया है।
जैस एक टाइपिस्ट की उंगलियां बिना देखे अपने आप दिमाग को पढ़ कर रिएक्ट करती हैं वैसे ही एजैंडे के तरह माइंड सैट तैयार किए जाते हैं। एक मुसलमान को गाय खाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन जैसे ही उसे सू्अर का गोश्त खाने का कहा जाता है तो वह हिंसक प्रतिक्रया करता है। किसी भी काम को बार-बार करते रहने से भी माइंड सेट तैयार होता है। हिन्दुओं को बताया जाए कि गाय एक सूअर, भैंसे आदि के समान ही पशु है तो वे ऐसा कभी नहीं मानेंगे। धार्मिक ग्रंथों आदि के अपमान के आरोप में लाखों लोगों को मारा जा चुका है। ऐसा ही उनको बताया जाए कि उनके ग्रंथ ईश्वरीय नहीं है तो वे नहीं मानेंगे।
जब इंसान किसी विचारधारा के अंदर तक चला जाता है तो उसके हिंसक होने की सम्भावना ज्यादा हो जाती है और वह अपराधिक घटनाएं भी करने से पीछे नहीं हटता। किसी इंसान के माइंड सैट को तोड़ने के लिए जो लोग तैयार होते हैं तो वे भी एक अन्य माइंडसैट की शिकार हो जाते हैं। ऐसा ही हाल तथाकथित धर्म प्रचारकों का भी रहा है वे दूसरों को समझाते हैं लेकिन समझ नहीं पाते वे भी किसी माइंड सैट के तहत काम कर रहे हैं।
मंदिर में मूर्तियां व बाहर लगे बुतों में क्या अंतर है- मंदिर में लगी मूर्तियां महापुरुषों की नहीं होती वे हिन्दुओं के ईश्वरों की होती हैं। उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ताकि उनमें प्राण आ जाएं। लोग उनको बार-बार देखते हैं, राम,कृष्ण आदि की मूर्तियों की पूजा करते हैं और अपने नित्य कर्म में शामिल करते हैं। जब वे अपने नायकों के प्रतिदिन दर्शन करते हैं तो उनकी कथाओं, चरित्र से भी जुड़े रहते हैं। ये मंदिर उनको नायकों से जोड़े रखते हैं। हजारों लाखों साल बीत जाने के बाद भी ये नायक भुलाए नहीं जाएंगे पीढ़ी-दर पीढ़ी जागृत रहेंगे। ग्रंथों को लोग भूल सकते हैं वे नष्ट हो सकते हैं लेकिन ये नायक फिर उन ग्रंथों को जीवित कर देंगे। आज शिव, कृष्ण, हनुमान जी की बड़ी-बड़ी मूर्तियां लगाई जाती हैं जिससे लाखों लोग उन्हें देखते हैं और उनके अंतरमन में एक छवि बन जाती है।
बुत किसी भी महापुरष या नेता का हो सकता है, लोग उसे आते जाते देखते हैं लेकिन सदिया बीत जाने पर शिलापट्ट धूमिल हो जाते हैं और फिर लोग उस बुत को तो देखते हैं लेकिन उसका नाम भी भूल जाते हैं। कई बुतों को लोग देखते हैं लेकिन उनकी कहानी को नहीं जानते। बुतों को मंदिर की मूर्तियों से नहीं जोड़ा जा सकता वैसे ही जैसे एक धर्म के ग्रंथ को दूसरे धर्म के ग्रंथ से नहीं जोड़ा जा सकता।
कृष्ण क्या हैं- कृष्ण को कोई महापुरुष मान सकते हैं तो कोई भगवान। भारत के करोड़ों हिन्दू कृष्ण को ही परमेश्वर मानते हैं, वे कृष्ण की लीलाओं से आनंदित होते हैं, वे हमेशा उसके साथ खेलते हैं नाचते हैं,अपना सुखदुख बांटते हैं। आज लाखों विदेशी लोग यीशू को छोड़कर कृष्ण को अपना परमेश्वर मान चुके हैं। कृष्ण हिन्दुओं को जीवन का आधार है। सैकुलर कांर्गेसियों को बस यही प्राबलम है कि वे इतना कृष्ण से जुड़े क्यों है,वे इसी नेरेटिव को तोड़ने के लिए षडयंत्र रचते रहते हैं और वेदों का सहारा लेकर मनघड़ंत नेरेटिव फैलाते हैं। उनका षडयंत्र ऐसा है कि वे चाहते हैं कि हिन्दू कृष्ण का जन्मोत्सव न मनाएं या ऐसे मनाएं जैसे किसी बुत पर हर साल हार डाल दिया जाता है। हमें तय करना है कि हम इन बहरूपियों के साथ हैं या उन करोड़ों हिन्दुओं के साथ जो कृष्ण को ईश्वर मानते हैं। ये लोग ऐसे प्रपंच बार-बार करते रहेंगे , कृष्ण पर प्रश्न उठाएंगे वे भी ऐसे समय पर जब हिन्दू अपने ईष्ट की अराधना के लिए मंदिरों में जुटते हैं।
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