माता वैष्णो देवी की आलौकिक कथाएं


माता वैष्णो देवी की माता वैष्णो देवी की आलौकिक कथाएंआलौकिक कथाएं
तैनू मइया जी ने आप बुलाया चढ़ जा चढ़ाइयां....
सारे बोलो जै माता दी अजे नी सुनिया जै माता दी,
सारे बोलो जै माता दी..
ऐसे जयघोष लगाते माता रानी के भक्त 
मां के दरबार में माथा टेकने के लिए जाने के लिए
कठिन चढ़ाई चढ़ते जाते हैं और माता के दरबार में हाजरियां लगाते हैं।

माता वैष्णो देवी के भक्त मां के दर्शनों के लिए हमेशा लालायित रहते हैं। दुनिया के किसी भी कोने में वे हों मां के दर्शनों के लिए जब जरूर आते हैं। सरकार भी मां के भक्तों का पूरा ख्याल रखती है। अब कटड़ा तक भक्त रेल सफर कर सकते हैं। लाखों भक्त रह रोज मां के दर्शन करने के लिए के लिए वैष्णो देवी के दरबार में आते हैं अौर मन की मुरादें पूरी करते हैं। मां के दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। मां सबकी झोलियां खुशियों से भरती है।
त्रिकूटा पर्वत पर है मां का निवास
वैष्णो देवी  सबसे पूजनीय, पवित्र और प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर त्रिकूट पहाड़ पर स्थित है।  मां  का मंदिर भव्य व सुंदर  है। मां वैष्णो देवी यहां निवास करती हैं।  यह मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे तो माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मुख्य 2 कथाएँ अधिक प्रचलित हैं। स्थान और काल में भेद की वजह से कथाओं में भी कुछ अंतर पाए जाते हैं।
अपने भक्तों की लाज रखती है भवानी मां
मां के भक्त माता वैष्णो देवी की महिमा गाते नहीं थकते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा लाज रखती हैं। माता वैष्णो देवी ने अपने एक परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई थी। मां की महिमा को लोगों ने देखा अौर मां के भक्त बन गए। मां  की महिमा का बखान साधु संत करते रहते हैं।
पहली कथा
कथा इस प्रकार है कि कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह हर समय प्रभु भक्ति में लीन रहते थे। निर्धन होने के बावजूद उनके मन में किसी तरह का लालच नहीं था। वह हर समय लोगों की सेवा में लगे रहते और प्रभु की भक्ति में लीन रहते। गांव वाले भी उनका बहुत ही अादर करते थे। उनका एक दुख था कि वे नि:संतान थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। मां उनकी भक्ति से बहुत ही प्रभावित थीं।
 मां वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गईं, पर मां वैष्णो देवी वहीं रहीं। मां ने श्रीधर से कहा कि वह गांववालों को जाकर कहे कि उसके घर भंडारे में आए।  श्रीधर  कन्या के बचन सुन कर हुआ। वह जानता था कि उसके घर में खाने का कोई सामान नहीं है पर फिर भी वह लोगों को कैसे बुलाए। फिर भी उसने दिव्य कन्या की बात को नहीं टाला।  हैरान व परेशान होने के बावजूद उसने दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया।  वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दे दिया।
मां के कहने पर दिया गांववालों को भंडारे का निमंत्रण
गांववाले श्रीधर की स्थिति से अच्छी तरह से परिचित थे कि पंडित जी तो बहुत ही गरीब हैं वे अकेले कैसे गांववासियों को भरपेट खाना खिलाएंगे।   
भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित भी थे कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए जमा हुए। तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। इस पात्र में भोजन कभी खत्म नहीं होता था। भोजन परोसते हुए  वह कन्या भैरवनाथ के पास भी गई।  भैरव नाथजी अड़ गए कि मैं तो खीर व पूरी नहीं खाऊंगा। मैं तो मांस व मदिरा ही लूंगा। मां ने उन्हें समझाया कि मांस मदिरा भंडारे में निषेध है इसलिए उन्हें ये सब नहीं मिल सकता। भंडारा केवल शाखाहार ही है।
 भैरवनाथ जी भी अपनी लीला दिखाने आए थे इसलिए वह अपनी बातपर अड़े रहे। मां ने जब भैरवनाथ  की बात नहीं  मानी तो वह मां को पकडने के लिए उनके पीछे भागा। मां ने उसी समय वायु का रूप धारण कर लिया और त्रिकूटा पर्वत की ओर  उड़ चली। भैरव भी वायु की गति से उनके पीछे उड़ने लगा।
  बाण गंगा- उधर मां के साथ लंगरवीर पवनपुत्र  मां  पवनपुत्र हनुमान भी थे। रास्ते में  हनुमानजी को प्यास लगी तो माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए।  आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है. इसके पवित्र जल को पीने या इसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं।

भैरव नाथ का किया संहार- इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर गई और वहां 9 माह तक घोर तपस्या की। भैरव नाथ उनके पीछे-पीछे यहां तक आ पहुंचा था। वहां एक साधु ने भैरवनाथ को समझाया कि जिसके पीछे तू पड़ा है वह मां जगदम्बा मां भगवती है। वह तुम्हारा संहार कर देगी। भैरव को पता था कि केवल मां ही उसे मोक्ष दिला सकती है।  माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं।यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है.
चरण पादुका-
अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया।  माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा।  माता गुफा के भीतर चली गईं। मां भैरव को प्राण दान देना चागती थी लेकिन भैरव था कि मान ही नहीं रहा था।  माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी। इसके एकदम बाद  माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। उन्होंने भैरवनाथ का सिर काट दिया। मां ने भैरवनाथ का सिर इतनी तीव्रता से काटा कि सिर  कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा। जहां पर भैरवनाथ का सिर गिरा उस स्थान को भैंरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
मां की पिंडियां-
जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर मां महाकाली (दाएं), मां महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों के  रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
 अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्कर  से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया। उन्होंने उसे कहा कि हे भैरवनाथ मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं।
मां हुईं ध्यानमग्न
इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।  पंडित श्रीधर मां के दर्शन के लिए अधीर हो गए। वह यहां मां को मिलने के लिए आ गए। मां को न पाकर वह बहुत ही निराश हो गए।  वे गुफा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से पिंडों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। उनकी भावना के देखकर  देवी प्रसन्न हुईं। वह उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। आज भी पंडित श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं। मां के दरबार में बारहों भक्तों का तांता लगा रहता है।

भगवान राम के कहने पर मां हैं त्रिकूटा पर्वत पर आसीन
एक अन्य कथा के अनुसार माता सीता के हरण के बाद भगवान राम उनकी खोज करने के लिए रामेश्वरम पहुंचे थे।
उन्होंने समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। भगावान राम को देखकर उस कन्या ने उनसे विवाह की इच्छा   जताई। भगवान ने कहा कि इस जन्म में मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैंने सीता जी को  पत्नी के रूप में स्वीकार किया है। लेकिन मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अगले जन्म में मैं  कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो। इस दौरान  श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी, त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी। मां वैष्णों देवी कब से लेकर आज तक भक्तों का दुख दूर कर रही है।
Call us: +91-98726-65620
E-Mail us: info@bhrigupandit.com
Website: http://www.bhrigupandit.com
FB: https://www.facebook.com/astrologer.bhrigu/notifications/
Pinterest: https://in.pinterest.com/bhrigupandit588/
Twitter: https://twitter.com/bhrigupandit588

Comments

astrologer bhrigu pandit

नींव, खनन, भूमि पूजन एवम शिलान्यास मूहूर्त

मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है- Gand Mool 2023

बच्चे के दांत निकलने का फल | bache ke dant niklne kaa phal