vishwakarma day | विश्वकर्मा दिवस कैसे मनाएं

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भारत में अन्य त्यौहारों की तरह ही भगवान विश्वकर्मा दिवस भी धूमधाम से मनाया जाता है। भागवान विश्वकर्मा दिवस को विश्वकर्मा डे भी कहा जाता है। सभा कारिगर दीवाली के एक दिन बाद यानि 8 नवम्बर 2018 को विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं और भंडारे लगाते हैं। वैसे विश्वकर्मा जयंति हर साल 17 सितम्बर को मनाई जाती है लेकिन दीवाली के अगले दिन दुनिया भर में रहते भगवान विश्वकर्मा  के भक्त अपने औजारों की पूजा करते हैं और विश्वकर्मा डे  मनाते हैं। इस दिन सभी मंदिरों में जमा होते हैं और भगवान विश्वकर्मा  जी की अराधना-पूजा करते हैं।
इस बार दीवाली के अगले दिन 28 अक्तूबर 2019 विश्वकर्मा दिवस मनाया जा रहा है।
यह पर्व हर साल 17 सितंबर को मनाया जाता है।  मान्‍यता है कि इसी दिन निर्माण के देवता विश्‍वकर्मा का जन्‍म हुआ था। विश्‍वकर्मा को देवताओं के वास्‍तुकार के रूप में पूजा जाता है।  उन्‍होंने  महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था। विश्‍वकर्मा पूजा के मौके पर औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा करने का विधान है।

क्यों की जाती है भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा 

भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा रह कारिगर करता है। भगवान हर कारिगर की रक्षा करते हैं और उनके इष्ट देव भी हैं। भगवान के भक्त चाहे किसी भी धर्म में चले गए हों लेकिन वे अपने ईष्ट देव को हमेशा याद रखते हैं।  विश्‍वकर्मा दिवस या विश्‍वकर्मा जयंती पर्व का हिन्‍दू धर्म में विशेष स्थान है। पौराणिक ऐतिहासिक मान्‍यता के अनुसार है इस दिन भगवान विश्‍वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्‍म लिया था। भगवान विश्‍वकर्मा को 'देवताओं का शिल्‍पकार', 'वास्‍तुशास्‍त्र का देवता', 'प्रथम इंजीनियर', 'देवताओं का इंजीनियर' और 'मशीन का देवता' कहा जाता है।

विष्‍णु पुराण में विश्‍वकर्मा को 'देव बढ़ई' कहा गया है। यही वजह है कि हिन्‍दू समाज में विश्‍वकर्मा पूजा का विशेष महत्‍व है। आज विश्व में जो विकास हो रहा है वह कारीगरों के बिना कतई सम्भव नहीं हैं। अौजारों का अविष्कार से लेकर हर मशीन, गगनचुम्बी इमारतों को देखो तो इसके पीछे महान कारिगरों की कला ही दिखाई देती है। अगर मनुष्‍य को शिल्‍प ज्ञान न हो तो वह निर्माण कार्य नहीं कर पाएगा।

कोई निर्माण नहीं होगा तो भवन और इमारतें नहीं बनेंगी, जिससे मानव सभ्‍यता का विकास रुक जाएगा। मशीनें और औज़ार न होंतो दुनिया तरक्‍की नहीं कर पाएगी।   सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक विकास के लिए श‍िल्‍प ज्ञान का होना बेहद जरूरी है। इस प्रकार शिल्‍प के देवता विश्‍वकर्मा की पूजा का महत्‍व भी बढ़ जाता है। भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा करने से व्‍यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है।

भगवान विश्‍वकर्मा की महानता
जब सृष्टि के निर्माण की बात सामने आई तो ब्रह्मा जी ने अपने औररस पुत्र भगवान विश्वकर्मा जी को प्रकट किया।  ब्रह्मा जी समझते थे कि केवल सृष्टि के निर्माण से बात नहीं बनने वाली। इसके विकास की भी बहुत ही जरूरत है। इसके लिए शिल्प, मशीन और औजारों की आवश्यकता है। इसलिए उन्होंने भगवान  विश्‍वकर्मा  को प्रकट किया। भगवान विश्‍वकर्मा को धरा के विकास का कार्य सौंपा गया।भगवान विश्‍वकर्मा जी को निर्माण का देवता भी कहा जाता है। उन्‍होंने अपने योगबल से इस धरा पर व स्वर्ग लोक में भी अनेकों भव्‍य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया।

एक पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के अत्याचार से विश्व के लोग परेशान हो गए। असुरों के आतंक से परेशान देवगणों ने सहायता की गुहार लगाई। महर्षि दधीची जी ने अपना शरीर दान दे दिया। विश्‍वकर्मा जी ने महर्षि दधीची की हड्डियों देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया। यह वज्र इतना संहारक था कि असुर हार गए । विश्वकर्मा जी ने अपने योगबल से ऐसा हथियार बनाया जिससे असुरों का संहार हुआ और देवताओं की जान बची। इसीलिए सभी देवताओं में भगवान विश्‍वकर्मा का विशेष स्‍थान है।
विश्‍वकर्मा ने रावण की लंका, कृष्‍ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्‍थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया था।उन्होंने ही लाक्षागृह का निर्माण किया था। ऐसा भी  माना जाता है कि उन्‍होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था। उन्‍होंने कई हथियार बनाए जिनमें भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्‍णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड शामिल हैं। उन्‍होंने ही दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्‍पक विमान भी बनाया।   रावण के अंत के बाद राम, लक्ष्‍मण सीता और अन्‍य साथी इसी पुष्‍पक विमान पर बैठकर अयोध्‍या लौटे थे।

कैसे मनाते हैं विश्‍वकर्मा जयंती-
विश्‍वकर्मा दिवस पर कारिगरों के बच्चे, परिजन आदि सुंदर कपड़े पहनते हैं। घरों में भगवान की पूजा करते हैं । घरों के अलावा दफ्तरों और कारखानों में इस दिवस को विशेष रूप से मनाया जाता है। जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्‍चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए वे खास तौर से इस दिन को बड़े उत्‍साह के साथ मनाते हैं। कारिगर  लोग बहुत ही प्रेम से  मशीनों, दफ्तरों और कारखानों की सफाई करवाते  है। भगवान विश्‍वकर्मा की मूर्तियों को सजाया जाता है। घरों में लोग अपनी गाड़‍ियों, कंम्‍प्‍यूटर, लैपटॉप व अन्‍य मशीनों की पूजा करते हैं।  मंदिर में विश्‍वकर्मा भगवान की मूर्ति या फोटो की विधिवत पूजा करने के बाद आरती की जाती है। इसके बाद प्रशाद वितरण किया जाता है।Image result for vishwakarma


विश्‍वकर्मा पूजा विधि 
भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है। इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठे।
पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- ‘हे विश्वकर्माजी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए’. इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।
सबसे पहले सुबह उठ कर अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें।
- मशीनों आदि की सफाई के बाद आप स्नान कर लें।
- घर के मंदिर में या फैक्टरी में बने मंदिर में बैठकर विष्‍णु जी का ध्‍यान करें और फूल अर्पित करें।
- एक कमंडल या गड़वे में पानी लेकर उसमें पुष्‍प डाल लें।
- भगवान विश्‍वकर्मा का ध्‍यान करें।
-  जमीन पर आठ पंखुड़‍ियों वाला कमल बनाएं।
-अब उस स्‍थान पर 7 प्रकार के अनाज रखें।
- अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें।
-अब अक्षत  पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्‍यान करें।
- अब सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें।
- अब भगवान विश्‍वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें।
- अंत में भगवान विश्‍वकर्मा की आरती उतारें।

विश्‍वकर्मा की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

 ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

 रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

 जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

 एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

 ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

 श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
विश्वकर्मा जयंती को लेकर मान्यताएं- सनातन धर्म में हरेक त्यौहार या व्रत हिन्दू पंचांग की तिथि के अनुसार मनाया जाता है। विश्वकर्मा जयंती को लेकर हिन्दू धर्म में कई मान्यताएं हैं। कुछ धर्मपंडितों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था, जबकि कुछ का मानना है कि भाद्रपद की अंतिम तिथि को विश्वकर्मा पूजा करना शुभ होता है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा को सूर्य के पारगमन के आधार पर तय किया जाता है। जिसके चलते हर साल 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है।लेकिन हर साल दीवाली के बाद भी भगवान का दिवस मनाया जाता है और औजारों की पूजा की जाती है। इस साल दिवाली के एक दिन बाद यानि 8 नवम्बर को भक्त उत्साह से भगवान की पूजा करते हैं। भगवान विश्वकर्मा दिवस पर हर कोई बहुत ही खुश नजर आता है। 

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