राहु व केतु ग्रह क्या होते हैं
राहु व केतु ग्रह क्या होते हैं
ज्योतिष में नव ग्रहों का ही मुख्य रोल होता है। इन ग्रहों में राहु केतु के बारे मेें आज हम बात करेंगे। इन दोनों ग्रहों को छाया ग्रह के कहा जाता है क्योंकि ये दोनों ग्रह बाकी ग्रहों की तरह ठोस नहीं हैं,ये हवा की तरह ही हैं। इन दोनों ग्रहों को पापी ग्रह भी कहा जाता है।
इन दोनों ग्रहों का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, इसीलिए ये जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसी के अनुसार अपना प्रभाव देने लगते हैं। ऐसे योग भी बनते हैं जब कुंडली में ये शुभ प्रभाव देते हैं। जातक की कुंडली में जब इनकी महादशा चल रही होती है तो जातक परेशान रहता है।
इनकी महादशा को शांत करने के लिए उचित उपाय करने पड़ते हैं। प्रभाव शुभ प्राप्त होता है। कुंडली में इन दोनों ग्रहों की स्थिति ठीक हो तो ये लाभ देते हैं और यदि ठीक न हो तो लाभ की जगह नुक्सान देते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता व असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तो अमृत निकलने पर एक असुर ने अपना रूप बदल लिया और देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत लेने का इंतजार करने लगा। इस बात का सूर्य व चंद्र को पता चल गया।
उन्होंने उसकी पहचान सभी को बता दी लेकिन इस समय तक वह अमृत ले ही रहा था कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार सिर का भाग राहू व धड़ का भाग केतु कहलाया। राहू व केतु सूर्य व चंद्र के उस समय से घोर शत्रु हो गए। इन दोनों ग्रहों के साथ जहां भी सूर्य व चंद्र होंगे जातक के लिए परेशानी का कारण ही रहेंगे। कुंडली में राहु व केतु हमेशा एक दूसरे से 7 घर दूरी पर ही रहते हैं। जब इन दोनों ग्रहों के बीच कोई ग्रह नहीं आता तो कालसर्प दोष बनता है।
राहु की वक्री दृष्टि- राहु की वक्री दृष्टि जातक के लिए संकटा पैदा कर देती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य की विवेक-बुद्धि का नाश हो जाता है। जातक गलत फैसले लेने शुरु कर देता है। राहु धोखेबाजों, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कामों, आदि का प्रतीक रहा है। इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरण की समस्याएं आती हैं।
इसी तरह से केतु बुरी शक्तियों का प्रतीक है। केतु स्वभाव से कठोर है। कुंडली में राहु-केतु ही मिलकर काल सर्पयोग का निर्माण भी करते हैं। केतु स्वभाव से यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि और अन्य मानसिक गुणों का कारक माना जाता है। अच्छी स्थिति में यह जहाँ जातक को इन्हीं क्षेत्रों में लाभ देता है तो बुरी अवस्था में यहीं हानि भी पहुंचता है।
राहु व केतु के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शांति उपाय करने चाहिए
यदि जन्म कुण्डली या वर्ष में राहु अशुभ हो तो शांति के लिए राहु के बीजमंत्र का 18000 की संख्या में जप करें।
राहु का बीज मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
घर में राहु यंत्र स्थापना करें , इससे कष्ट कम हो जाते हैं।
राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है। मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल खिलाएं। राहु की दशा होने पर कुष्ट रोग से पीड़ित व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए। राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौं रखकर सोएं और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी।
केतु ग्रह शांति उपाय
केतु की पी़ड़ा को कम करने के लिए केतु के बीजमंत्र का 17000 की संख्या में जाप करना चाहिए व दषमांष हवन भी करना चाहिए।
केतु का बीजमंत्र - ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
केतु यंत्र की घर में स्थापना भी जातक को लाभ प्रदान करती है।
केतु से पीड़ित जातक को कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है। गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है। मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए।
केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है। शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है। कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को चावल खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी। किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है।
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” यह एक ऐसा शक्तिशाली देवी मंत्र है जिसके स्मरण, जप से सारे ग्रह दोष बेअसर हो जाते हैं। यह मन्त्र सभी नौ ग्रहों की शांति में उपयोगी होता है। नित्य रोज 108 बार इस मन्त्र के जाप से सभी ग्रह शांत हो जाते हैं।
ज्योतिष में नव ग्रहों का ही मुख्य रोल होता है। इन ग्रहों में राहु केतु के बारे मेें आज हम बात करेंगे। इन दोनों ग्रहों को छाया ग्रह के कहा जाता है क्योंकि ये दोनों ग्रह बाकी ग्रहों की तरह ठोस नहीं हैं,ये हवा की तरह ही हैं। इन दोनों ग्रहों को पापी ग्रह भी कहा जाता है।
इन दोनों ग्रहों का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, इसीलिए ये जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसी के अनुसार अपना प्रभाव देने लगते हैं। ऐसे योग भी बनते हैं जब कुंडली में ये शुभ प्रभाव देते हैं। जातक की कुंडली में जब इनकी महादशा चल रही होती है तो जातक परेशान रहता है।
इनकी महादशा को शांत करने के लिए उचित उपाय करने पड़ते हैं। प्रभाव शुभ प्राप्त होता है। कुंडली में इन दोनों ग्रहों की स्थिति ठीक हो तो ये लाभ देते हैं और यदि ठीक न हो तो लाभ की जगह नुक्सान देते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता व असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तो अमृत निकलने पर एक असुर ने अपना रूप बदल लिया और देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत लेने का इंतजार करने लगा। इस बात का सूर्य व चंद्र को पता चल गया।
उन्होंने उसकी पहचान सभी को बता दी लेकिन इस समय तक वह अमृत ले ही रहा था कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार सिर का भाग राहू व धड़ का भाग केतु कहलाया। राहू व केतु सूर्य व चंद्र के उस समय से घोर शत्रु हो गए। इन दोनों ग्रहों के साथ जहां भी सूर्य व चंद्र होंगे जातक के लिए परेशानी का कारण ही रहेंगे। कुंडली में राहु व केतु हमेशा एक दूसरे से 7 घर दूरी पर ही रहते हैं। जब इन दोनों ग्रहों के बीच कोई ग्रह नहीं आता तो कालसर्प दोष बनता है।
राहु की वक्री दृष्टि- राहु की वक्री दृष्टि जातक के लिए संकटा पैदा कर देती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य की विवेक-बुद्धि का नाश हो जाता है। जातक गलत फैसले लेने शुरु कर देता है। राहु धोखेबाजों, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कामों, आदि का प्रतीक रहा है। इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरण की समस्याएं आती हैं।
इसी तरह से केतु बुरी शक्तियों का प्रतीक है। केतु स्वभाव से कठोर है। कुंडली में राहु-केतु ही मिलकर काल सर्पयोग का निर्माण भी करते हैं। केतु स्वभाव से यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि और अन्य मानसिक गुणों का कारक माना जाता है। अच्छी स्थिति में यह जहाँ जातक को इन्हीं क्षेत्रों में लाभ देता है तो बुरी अवस्था में यहीं हानि भी पहुंचता है।
राहु व केतु के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शांति उपाय करने चाहिए
यदि जन्म कुण्डली या वर्ष में राहु अशुभ हो तो शांति के लिए राहु के बीजमंत्र का 18000 की संख्या में जप करें।
राहु का बीज मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
घर में राहु यंत्र स्थापना करें , इससे कष्ट कम हो जाते हैं।
राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है। मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल खिलाएं। राहु की दशा होने पर कुष्ट रोग से पीड़ित व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए। राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौं रखकर सोएं और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी।
केतु ग्रह शांति उपाय
केतु की पी़ड़ा को कम करने के लिए केतु के बीजमंत्र का 17000 की संख्या में जाप करना चाहिए व दषमांष हवन भी करना चाहिए।
केतु का बीजमंत्र - ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
केतु यंत्र की घर में स्थापना भी जातक को लाभ प्रदान करती है।
केतु से पीड़ित जातक को कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है। गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है। मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए।
केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है। शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है। कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को चावल खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी। किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है।
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” यह एक ऐसा शक्तिशाली देवी मंत्र है जिसके स्मरण, जप से सारे ग्रह दोष बेअसर हो जाते हैं। यह मन्त्र सभी नौ ग्रहों की शांति में उपयोगी होता है। नित्य रोज 108 बार इस मन्त्र के जाप से सभी ग्रह शांत हो जाते हैं।
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