पश्चिमी व भारतीय नास्तिकवाद- एक दृष्टिकोण
पश्चिमी व भारतीय नास्तिकवाद- एक दृष्टिकोण
भारत व पश्चिम के नास्तिवाद में अंतर है। पश्चिम में जब विज्ञान की खोजों का दौर शुरु हुआ तो चर्च ने इनका जमकर विरोध करना शुरु कर दिया। यहां तक कि महान वैज्ञानिकों को सूली पर भी लटका दिया गया क्योंकि वे बाईबल के मूल सिद्धांत से परे या हटकर थे। ये नास्तिक जिस बात को विज्ञान की कसौटी पर प्रमाणित न किया जाए उसे नकार देते थे। इसमें आत्मज्ञान व अनुभव जैसी कोई बात नहीं थी। इस प्रकार वे चर्च की तरफ से शैतान घोषित कर दिए जाते थे। इसी प्रकार महिलाओं को भी चुड़ैल घोषित करते जिंदा जला दिया जाता था। इस प्रकार एक बड़ा संघर्ष 200 साल से ज्यादा तक चला और न्यूटैस्टामैंट सामने आया जिसमें विज्ञान को कुछ हद तक माना गया और वैज्ञानिकों को उचित सम्मान मिलना शुरु हुआ। जब पहली बार इंग्लैंड में रेल इंजन चलाया गया तो लोगों को भड़काया गया कि यह लोहे का शैतान है जो आपको खत्म करने के लिए लाया गया है। लोग भयभीत होकर सड़कों पर आ गए और इस इंधन पर पत्थरों आदि से हमला कर दिया कुछ महिलाएं बच्चे तो इसे देखकर बेहोश भी हो गईं।
भारतीय नास्तिकवाद- भारत में नास्तिवाद की स्थापना उसी समय हो गई थी जब आस्तिकवाद पैदा हुआ। नास्तिक ईश्वर के अस्तित्व को नकारते थे और वे अध्ययात्म यानि आत्मज्ञान को ही महत्व देते थे। यानि वे जो स्वयं अनुभव करते थे उसे ही सत्य मानते थे लेकिन वे अपने आत्मज्ञान को भी प्रमाणित नहीं कर पाते थे, इसलिए वे हरेक को कहते थे आत्मज्ञान स्वंय अनुभव करो। बुध का नास्तिकवाद भी ऐसा ही था वे आत्मज्ञान पर आधारित था। भारत में आस्तिकों व नास्तिकों में वैचारिक मतभेद तो थे लेकिन ये कभी इस प्रकार से एक दूसरे के खून के प्यासे नहीं हुए जैसे कि अब्राहमिक रिलीजनों में असहमति के लिए कोई जगह नहीं यानि काफिरों के लिए सिर्फ मौत है।
बुध व महावीर अकेले गांवों में घूमते व प्रचार करते लेकिन किसी ने कभी उनपर हमला नहीं किया,यहां तक कि उन्हें हर जगह आदर ही मिला, उनके नवीन उपयोगों को भारतीय जनमानस ने सर माथे पर लिया। बाद में उनके उपदेश व्यवहारिक न होने के कारण जनमानस फिर आस्तिकवाद की तरफ चला गया। जब पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय नास्तिकवाद को परिभाषित किया तो उन्होंने इसे पश्चिमी नजरिए से ही किया जबकि भारती नास्तिकवाद आध्यात्म व आत्मज्ञान पर आधारित है। आज आप बौध व जैन मंदिरों में उनके आध्यातमवाद की झलक देख सकते हैं कि कैसे ये दोनों धर्म नास्तिक होते हुए भी आस्तिकवाद के कितने नजदीक हैं।
भारत व पश्चिम के नास्तिवाद में अंतर है। पश्चिम में जब विज्ञान की खोजों का दौर शुरु हुआ तो चर्च ने इनका जमकर विरोध करना शुरु कर दिया। यहां तक कि महान वैज्ञानिकों को सूली पर भी लटका दिया गया क्योंकि वे बाईबल के मूल सिद्धांत से परे या हटकर थे। ये नास्तिक जिस बात को विज्ञान की कसौटी पर प्रमाणित न किया जाए उसे नकार देते थे। इसमें आत्मज्ञान व अनुभव जैसी कोई बात नहीं थी। इस प्रकार वे चर्च की तरफ से शैतान घोषित कर दिए जाते थे। इसी प्रकार महिलाओं को भी चुड़ैल घोषित करते जिंदा जला दिया जाता था। इस प्रकार एक बड़ा संघर्ष 200 साल से ज्यादा तक चला और न्यूटैस्टामैंट सामने आया जिसमें विज्ञान को कुछ हद तक माना गया और वैज्ञानिकों को उचित सम्मान मिलना शुरु हुआ। जब पहली बार इंग्लैंड में रेल इंजन चलाया गया तो लोगों को भड़काया गया कि यह लोहे का शैतान है जो आपको खत्म करने के लिए लाया गया है। लोग भयभीत होकर सड़कों पर आ गए और इस इंधन पर पत्थरों आदि से हमला कर दिया कुछ महिलाएं बच्चे तो इसे देखकर बेहोश भी हो गईं।
भारतीय नास्तिकवाद- भारत में नास्तिवाद की स्थापना उसी समय हो गई थी जब आस्तिकवाद पैदा हुआ। नास्तिक ईश्वर के अस्तित्व को नकारते थे और वे अध्ययात्म यानि आत्मज्ञान को ही महत्व देते थे। यानि वे जो स्वयं अनुभव करते थे उसे ही सत्य मानते थे लेकिन वे अपने आत्मज्ञान को भी प्रमाणित नहीं कर पाते थे, इसलिए वे हरेक को कहते थे आत्मज्ञान स्वंय अनुभव करो। बुध का नास्तिकवाद भी ऐसा ही था वे आत्मज्ञान पर आधारित था। भारत में आस्तिकों व नास्तिकों में वैचारिक मतभेद तो थे लेकिन ये कभी इस प्रकार से एक दूसरे के खून के प्यासे नहीं हुए जैसे कि अब्राहमिक रिलीजनों में असहमति के लिए कोई जगह नहीं यानि काफिरों के लिए सिर्फ मौत है।
बुध व महावीर अकेले गांवों में घूमते व प्रचार करते लेकिन किसी ने कभी उनपर हमला नहीं किया,यहां तक कि उन्हें हर जगह आदर ही मिला, उनके नवीन उपयोगों को भारतीय जनमानस ने सर माथे पर लिया। बाद में उनके उपदेश व्यवहारिक न होने के कारण जनमानस फिर आस्तिकवाद की तरफ चला गया। जब पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय नास्तिकवाद को परिभाषित किया तो उन्होंने इसे पश्चिमी नजरिए से ही किया जबकि भारती नास्तिकवाद आध्यात्म व आत्मज्ञान पर आधारित है। आज आप बौध व जैन मंदिरों में उनके आध्यातमवाद की झलक देख सकते हैं कि कैसे ये दोनों धर्म नास्तिक होते हुए भी आस्तिकवाद के कितने नजदीक हैं।
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