राजा राम मोहन राय - सति प्रथा- आईटसाइडर एंड इनसाइडर
राजा राम मोहन राय - सति प्रथा- आईटसाइडर एंड इनसाइडर
राजा राम मोहन राय के बारे में वही भारतीयों ने कहा जो अंग्रेजों ने उनके बारे में लिखा। इसके इलावा न तो कोई इनके चरित्र के बारे में कोई जानता है और न ही उसपर कोई चर्चा की गई। अंग्रेज बंगाल में काबिज हो चुके थे लेकिन वे बस पैसा कमाना चाहते थे। उनको भारतीयों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं था। उधर मिशनरियां भी भारत में खुलकर काम करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी पर दबाव बना रही थीं। उनके अनुसार भारत के लोग अंधेरे में थे और उन्हें यीशू का संदेश देकर धर्मांतरित करना था। अंग्रेज ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे कि भारत के लोग भड़क जाएं या उनके और खिलाफ हो जाएं । वे तो सिर्फ पैसा कमाने में ध्यान देना चाहते थे और मिशनरियों को कोई हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहते थे।
राजा राम मोहन राय ईस्ट इंडिया कम्पनी में काम करते थे। अंग्रेजों व मिशनरियों को ऐसे तथाकथित समाज सुधारकों की जरूरत थी जो स्वयं के धर्म व ग्रंथों का वामपंथी व मिशनरी नजरिए से काम कर सकें। मिशनरी व अंग्रेजों का उनपर पर्दे के पीछे पूरा हाथ था। वे अंग्रेजों को पत्र लिखते कि गुरुकुलों का कोई महत्व नहीं हैं, इन्हें बंद कर दिया जाए और अंग्रेजी स्कूलों का को खोला जाए।
इस प्रकार गुरुकुलों को ध्वस्त कर दिया गया। बंगाल वह पहला राज्य था गुरुकुल 10 वर्षों में ही खत्म हो गए। अंग्रेजों के कालेजों से निकले भारतीय छात्र वामपंथी व मिशनरी नजरिए वाले थे। इस प्रकार वामपंथ का वर्चस्व बंगाल में बढ़ गया।
अब मिशनरियों को काम करने के लिए रास्ता साफ हो रहा था। यूरोप में जैसे हजारों पेगेन धार्मिक महिलाओं को चुड़ैल घोषित करके मार डाला जा रहा था वहीं भारत में अपना कानून लागू करने के लिए मिशनरियों ने सती प्रथा का सहारा लिया जबकि सति प्रथा इससे काफी समय पहले ही खत्म हो चुकी थी। पूरे भारत में केवल 25 केस ही सती मामलों के दर्ज हुए थे।सती प्रथा अंग्रेजों के भारत में आने से पहले ही लगभग खत्म हो चुकी थी। हैरानी की बात यह थी जैसे ही यह कानून लागू किया गया कोई सती का केस नहीं हुआ यानि सारा कुछ एक ड्रामा था। देहज प्रथा, रेप, आगजनी, आदि के मामलों में बैन के कानून बनने पर भी ये अपराध आज भी जारी हैं।
अब मिशनरियों का रास्ता साफ हो गया था और हिन्दुओं को तोड़ने के लिए एक और संगठन खड़ा हो चुका था। इस प्रकार एक इनसाइडर जो असल में अंगेजों के साथ काम कर रहा था उसे और आऊटसाइडर की तरह उनके साथ काम कर रहा था। ऐसा करने के लिए उसे अंग्रेजों व मिशनरियों का पूरा सहयोग था। भारत में गुरुकुलों को नष्ट करवाने में राजा राम मोहन का एक बड़ा हाथ था।
बंगाल में सफलता मिल चुकी थी और अगले 200 साल की भूमि तैयार थी। इसी फंडे को अंग्रेजों व मिशनरियों ने पूरे भारत में अपनाया और यह काम आज भी जारी है। दलितवाद, पेरियारवाद, मूलनिवासीवाद आदि वाद मिशनरियों की ही देन है। ये लोग इतने शातिर हैं कि पर्दे के पीछे से काम होता है और तथाकथित वामपंथी हिन्दुओं के हर सम्प्रदाय, समाज, पंथ आदि में ऐेसे घुसकर काम करते हैं कि इनको पहचानना मुश्किल होता है।
राजा राम मोहन राय के बारे में वही भारतीयों ने कहा जो अंग्रेजों ने उनके बारे में लिखा। इसके इलावा न तो कोई इनके चरित्र के बारे में कोई जानता है और न ही उसपर कोई चर्चा की गई। अंग्रेज बंगाल में काबिज हो चुके थे लेकिन वे बस पैसा कमाना चाहते थे। उनको भारतीयों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं था। उधर मिशनरियां भी भारत में खुलकर काम करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी पर दबाव बना रही थीं। उनके अनुसार भारत के लोग अंधेरे में थे और उन्हें यीशू का संदेश देकर धर्मांतरित करना था। अंग्रेज ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे कि भारत के लोग भड़क जाएं या उनके और खिलाफ हो जाएं । वे तो सिर्फ पैसा कमाने में ध्यान देना चाहते थे और मिशनरियों को कोई हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहते थे।
राजा राम मोहन राय ईस्ट इंडिया कम्पनी में काम करते थे। अंग्रेजों व मिशनरियों को ऐसे तथाकथित समाज सुधारकों की जरूरत थी जो स्वयं के धर्म व ग्रंथों का वामपंथी व मिशनरी नजरिए से काम कर सकें। मिशनरी व अंग्रेजों का उनपर पर्दे के पीछे पूरा हाथ था। वे अंग्रेजों को पत्र लिखते कि गुरुकुलों का कोई महत्व नहीं हैं, इन्हें बंद कर दिया जाए और अंग्रेजी स्कूलों का को खोला जाए।
इस प्रकार गुरुकुलों को ध्वस्त कर दिया गया। बंगाल वह पहला राज्य था गुरुकुल 10 वर्षों में ही खत्म हो गए। अंग्रेजों के कालेजों से निकले भारतीय छात्र वामपंथी व मिशनरी नजरिए वाले थे। इस प्रकार वामपंथ का वर्चस्व बंगाल में बढ़ गया।
अब मिशनरियों को काम करने के लिए रास्ता साफ हो रहा था। यूरोप में जैसे हजारों पेगेन धार्मिक महिलाओं को चुड़ैल घोषित करके मार डाला जा रहा था वहीं भारत में अपना कानून लागू करने के लिए मिशनरियों ने सती प्रथा का सहारा लिया जबकि सति प्रथा इससे काफी समय पहले ही खत्म हो चुकी थी। पूरे भारत में केवल 25 केस ही सती मामलों के दर्ज हुए थे।सती प्रथा अंग्रेजों के भारत में आने से पहले ही लगभग खत्म हो चुकी थी। हैरानी की बात यह थी जैसे ही यह कानून लागू किया गया कोई सती का केस नहीं हुआ यानि सारा कुछ एक ड्रामा था। देहज प्रथा, रेप, आगजनी, आदि के मामलों में बैन के कानून बनने पर भी ये अपराध आज भी जारी हैं।
अब मिशनरियों का रास्ता साफ हो गया था और हिन्दुओं को तोड़ने के लिए एक और संगठन खड़ा हो चुका था। इस प्रकार एक इनसाइडर जो असल में अंगेजों के साथ काम कर रहा था उसे और आऊटसाइडर की तरह उनके साथ काम कर रहा था। ऐसा करने के लिए उसे अंग्रेजों व मिशनरियों का पूरा सहयोग था। भारत में गुरुकुलों को नष्ट करवाने में राजा राम मोहन का एक बड़ा हाथ था।
बंगाल में सफलता मिल चुकी थी और अगले 200 साल की भूमि तैयार थी। इसी फंडे को अंग्रेजों व मिशनरियों ने पूरे भारत में अपनाया और यह काम आज भी जारी है। दलितवाद, पेरियारवाद, मूलनिवासीवाद आदि वाद मिशनरियों की ही देन है। ये लोग इतने शातिर हैं कि पर्दे के पीछे से काम होता है और तथाकथित वामपंथी हिन्दुओं के हर सम्प्रदाय, समाज, पंथ आदि में ऐेसे घुसकर काम करते हैं कि इनको पहचानना मुश्किल होता है।
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