पलायन को कैसे रोका जाए
पलायन को कैसे रोका जाए
जब से मानव सभ्यता का विकास होना शुरु हुआ है, पलायन किसी न किसी रुप में होता रहा है और यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। पलायन के बहुत से कारण है। हम ज्यादा पीछे नहीं जाते बात सन 1947 से करते हैं। भारत-पाक बंटवारे के दौरान दोनों तरफ से लाखों लोगों को अपनी जान बचाने के लिए एक देश से दूसरे देश में पलायन करना पड़ा था। इसमें लाखों लोगों का नरसंहार भी हुआ था। यह एक राजनीतिक पलायन था।
बेहतर भविष्य के लिए पलायन- पंजाब से लोग बेहतर भविष्य की तलाश के लिए अमेेरिका, इंगलैंड, दुबई आदि देशों में गए और वहीं के होकर रह गए। पंजाब में कुछ गांव ऐसे हैं जहां पीछे केवल बुजुर्ग ही बचे हैं मकानों व खेतों की देखभाल करने के लिए। बिहार, यूपी आदि गरीब राज्यों से काम की तराश में लोग शहरों की तरफ पलायन करते हैं क्योंकि शहरों में रोजगार के अवसर ज्यादा होते हैं।
पहाड़ों से पलायन- पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के साधन कम होने, जीवन बहुत ही कठिन होने के कारण लोग शहरों की तरफ रुख करते हैं। उत्तराखंड, हिमाचल आदि पर्वतीय क्षेत्रों में तो हर घर से कई सदस्य कमाने के लिए मैदानी इलाकों में गए हुए हैं। इनमें से कई तो परिवार के साथ वहीं रह जाते हैं। पीछे गांवों में पड़े मकान खंडहर हो जाते हैं। पहाड़ों में खेती बहुत ही मुश्किल काम है जंगली पशु खेती को नष्ट कर देते हैं, कई बार तो बारिश, बादल फटने से सारी फसलें नष्ट हो जाती हैं और लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ता है। पारम्परिक धंधों पर बड़ी कम्पनियों का कब्जा होने के कारण ग्रामीणों को अपने धंधे बंद करके शहरों की तरफ जाना पड़ता है।
वोटों की खातिर- राजनितिक लोग अपनी वोटों की खातिर घुसपैठियों को बसाते हैं जो लोकल लोगों के रोजगार, जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं क्योंकि उन्हें राजनीतिक आकाओं, सरकार का पूरा संरक्षण होता है इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाइ नहीं होती। स्थानीय लोग अपनी जान बचाने के लिए दूसरी जगह
पलायन कर जाते हैं।
क्या किया जाए- सरकारों को गांवों में रोजगार के साधन गम्भीरता से तैयार करने होंगे। युवाओं को उनके पारम्परिक व्यवसायों का पशिक्षण देना होगा। कृषि योग्य भूमि को बेचने व खरीदने पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जानी चाहिए। जो लोग पलायन कर गए हैं उनकी भूमि के आधार पर उन्हें मुआवजा देना चाहिए ताकि वे गांवों में आकर अपना काम फिर से शुरु कर सकें।
स्वास्थय सुविधाओं को भी गम्भीरता से लेना होगा। हर 3 किलोमीटर के दायरे में एक डिस्पैंसरी होनी चाहिए जिसमें गांव के ही बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर तैयार करना चाहिए। स्कूलों में भी ऐसा ही नियम लागू होना चाहिए। पारम्परिक धंधे जैसे बढ़ई, नाई, लुहार, मैकेनिक, वैल्डिंग, सैलून, इलैक्ट्रीशियन, राजमिस्त्री आदि का काम गांवों के इच्छुक युवाओं को सिखाना होगा और सीखने के बाद उन्हें दुकान आदि खोलने के लिए लोन भी आसानी से उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
क्षेत्रीय विधायक व ग्राम प्रधानों को अपने क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं की पहचान करनी होगी और उन्हें रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने होंगे। इसे आनंदोलन की तरह लेना होगा।
जब से मानव सभ्यता का विकास होना शुरु हुआ है, पलायन किसी न किसी रुप में होता रहा है और यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। पलायन के बहुत से कारण है। हम ज्यादा पीछे नहीं जाते बात सन 1947 से करते हैं। भारत-पाक बंटवारे के दौरान दोनों तरफ से लाखों लोगों को अपनी जान बचाने के लिए एक देश से दूसरे देश में पलायन करना पड़ा था। इसमें लाखों लोगों का नरसंहार भी हुआ था। यह एक राजनीतिक पलायन था।
बेहतर भविष्य के लिए पलायन- पंजाब से लोग बेहतर भविष्य की तलाश के लिए अमेेरिका, इंगलैंड, दुबई आदि देशों में गए और वहीं के होकर रह गए। पंजाब में कुछ गांव ऐसे हैं जहां पीछे केवल बुजुर्ग ही बचे हैं मकानों व खेतों की देखभाल करने के लिए। बिहार, यूपी आदि गरीब राज्यों से काम की तराश में लोग शहरों की तरफ पलायन करते हैं क्योंकि शहरों में रोजगार के अवसर ज्यादा होते हैं।
पहाड़ों से पलायन- पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के साधन कम होने, जीवन बहुत ही कठिन होने के कारण लोग शहरों की तरफ रुख करते हैं। उत्तराखंड, हिमाचल आदि पर्वतीय क्षेत्रों में तो हर घर से कई सदस्य कमाने के लिए मैदानी इलाकों में गए हुए हैं। इनमें से कई तो परिवार के साथ वहीं रह जाते हैं। पीछे गांवों में पड़े मकान खंडहर हो जाते हैं। पहाड़ों में खेती बहुत ही मुश्किल काम है जंगली पशु खेती को नष्ट कर देते हैं, कई बार तो बारिश, बादल फटने से सारी फसलें नष्ट हो जाती हैं और लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ता है। पारम्परिक धंधों पर बड़ी कम्पनियों का कब्जा होने के कारण ग्रामीणों को अपने धंधे बंद करके शहरों की तरफ जाना पड़ता है।
वोटों की खातिर- राजनितिक लोग अपनी वोटों की खातिर घुसपैठियों को बसाते हैं जो लोकल लोगों के रोजगार, जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं क्योंकि उन्हें राजनीतिक आकाओं, सरकार का पूरा संरक्षण होता है इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाइ नहीं होती। स्थानीय लोग अपनी जान बचाने के लिए दूसरी जगह
पलायन कर जाते हैं।
क्या किया जाए- सरकारों को गांवों में रोजगार के साधन गम्भीरता से तैयार करने होंगे। युवाओं को उनके पारम्परिक व्यवसायों का पशिक्षण देना होगा। कृषि योग्य भूमि को बेचने व खरीदने पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जानी चाहिए। जो लोग पलायन कर गए हैं उनकी भूमि के आधार पर उन्हें मुआवजा देना चाहिए ताकि वे गांवों में आकर अपना काम फिर से शुरु कर सकें।
स्वास्थय सुविधाओं को भी गम्भीरता से लेना होगा। हर 3 किलोमीटर के दायरे में एक डिस्पैंसरी होनी चाहिए जिसमें गांव के ही बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर तैयार करना चाहिए। स्कूलों में भी ऐसा ही नियम लागू होना चाहिए। पारम्परिक धंधे जैसे बढ़ई, नाई, लुहार, मैकेनिक, वैल्डिंग, सैलून, इलैक्ट्रीशियन, राजमिस्त्री आदि का काम गांवों के इच्छुक युवाओं को सिखाना होगा और सीखने के बाद उन्हें दुकान आदि खोलने के लिए लोन भी आसानी से उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
क्षेत्रीय विधायक व ग्राम प्रधानों को अपने क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं की पहचान करनी होगी और उन्हें रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने होंगे। इसे आनंदोलन की तरह लेना होगा।
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