वेद न लिखे गए होते तो क्या होता?

वेद न लिखे गए होते तो क्या होता?
हम ऐसा भी कह सकते हैं कि भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान आदि की पुस्तकें न लिखी गई होती तो क्या होता। इस प्रकृति में सब कुछ पहले से विद्यमान है। गुरतावकर्षण, एनर्जी, अणु, जीव तत्व आदि। इसी प्रकार वेदों में जो कुछ लिखा गया है वो पहले से ही इस युनिवर्स में था। जैसै- जैसे ऋषि मुनियों को ज्ञान होता गया वो उन्होंने श्लोकों के माध्यम से अपने-अपने अनुभवों से लिखना शुरु कर दिया। समाज, अर्थ व सोम आदि के बारे में अपने अनुभवों को वेदों में लिखा। वदों में श्लोकों को कंठस्थ करने पर जोर दिया गया, इस कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढी तक वेद सुरक्षित रहे।

वेदों के लिखे जाने से पहले मानव सभ्य होना शुरु हो गया था। वह शादी के बंधन में बंधने लगा था और बच्चों को पैदा करने लगा था, उसे पता था कि आपस में रिश्तेदारों के शादियां नहीं करनी, वह अर्थ मामलों में लेन-देन भी करने लगा था, गाय आदि को भी पालने लगा था, कृषि भी उसका धंधा हो चुका था। समाजिक हो चुका था। वह जान चुका था कि किस मौसम में कौन सी फसल उगानी है। इस प्रकार वह जिन बातों को जान जाता वह दूसरों को बताता और इनको चिन्हों में लिख कर रख लिया जाता। यही चिन्ह आगे चलकर भाषा में बदल गए। वेद प्राणी मात्र को ज्ञान देने के लिए एनसाइक्लोपीडिया ही हैं। ग्रंथ आदि मानव के सभ्य होने की निशानियां हैं। वह सभ्य होता गया और हर विषय में लिखता गया संगीत, धर्म, अध्यात्म, काम, वास्तु, ज्योतिष, गणित आदि। पश्चिम में जब लोग खानाबदोशों का जीवन जी रहे थे तो उस समय भारत में वेदों का अध्ययन हो रहा था।

आज 95 प्रतिशत हिन्दू वेदों के बारे में जानते तो हैं लेकिन वे उनका अध्ययन नहीं कर पाते। वे वेदों के बारे में अध्ययन न करते हुए भी जीवन यापन वेदों के अनुसार ही कर रहे होते हैं। हर पूजा में वेदों का नाम लेकर ही संकल्प किया जाता है। वेदों का सार आसान भाषा में कथाओं में उनके डीएनए में शामिल है। आज लोग जानने लगे हैं कि शाकाहार, योग, आयुर्वेद, वैदिक कृषि, वैदिक गणित का का उपयोग पूरी दुनिया में जाने अनजाने में कर रहे हैं कि यह वेदों का ही ज्ञान है। पश्चिमी जगत के लोग जब शाकाहार, योग आदि को अपना रहे हैं तो वे ये नहीं जानते कि शाकाहार का मूल स्रोत्र भारतीय है।

वेद व अन्य ग्रंथ न लिखे गए होते तो भारतीयों का सांस्कृतिक धार्मिक संहार पूरी तरह से हो जाना था। जिस प्रकार से ईरान, इराक, मिस्र, अमेरिका के मूल निवासियों के धर्म का खात्मा हो गया उसी प्रकार भारत का भी हो जाना था क्योंकि इन लोगों के ग्रंथों को या तो नष्ट कर दिया गया या उनके पास ऐसे ग्रंथ थे ही नहीं।  भारतीय संस्कृति व धर्म इसीलिए बच गया क्योंकि सबकुछ ग्रंथों, चिन्हों, प्रतीकों, मंदिरों, तीर्थ स्थलों के तौर पर सुदढ़ता से भारतीय जनमानस से जुड़ा था और यह उससे अलग नहीं किया जा सका। मंदिरों को हमलावरों द्वारा ध्वस्त करने के बाद फिर से उनका जीर्णोद्धार किया गया और इस प्रकार से संस्कृति को बचाया गया, गंगा को नष्ट नहीं किया जा सकता था इसलिए लोग गंगा तट पर एकत्र होते रहे।





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