सत्य और सत्य होने के दावे क्या एक समान हैं?

सत्य और सत्य होने के दावे क्या एक समान हैं ?

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति

सत्य और सत्य होने के दावे एक समान नहीं है। इसको लेकर लोग व महान संत तक भ्रमित हैं। सत्य एक है और इसको बताने व जानने के कई रास्ते हैं, इससे सत्य के सभी दावे सत्य नहीं हो सकते।सत्य तक पहुंचने के 50 रास्ते बताए गए हो सकते हैं लेकिन सत्य होने के 50 लाख दावों को सत्य नहीं माना जा सकता।  एक डायग्राम हैं जिसमें सत्य व उस तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते लिखे हैं और एक अलग डायग्राम है जिसमें सत्य होने के दावे पेश किए गए हैं दोनों एक नहीं हैं। वेदों में कहा गया है कि सत्य तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं लेकिन यह नहीं कहा गया कि सत्य के  सारे दावे सत्य ही होते हैं।
 यदि बिन लादेन कहता है कि उसने ही इस्लाम को समझा है, यह उसका सत्य है और उसका यह दावा सत्य है तो इसे नहीं माना जा सकता। यदि एक मठ का पुजारी कोई क्राइम करता है, व्यभचारी है और वहां आकर कहता है कि वह अपने सत्य का दावा करता है तो उसके दावे को नहीं माना जाएगा चाहे वह कितना भी अपने काम में पारंगत क्यों न हो,उसे तुरंत मठ से निकाल दिया जाएगा। सत्य का दावा करने के लिए योग्यता, सामाजिक आचरण आदि का होना जरूरी है, हर कोई दावा तो कर सकता है लेकिन हर किसी के दावे को मान्यता नहीं दी जा सकती। एक सत्य को प्रमाणित करने के लिए दो वकील अदालत में जिरह कर सकते हैं,दोनों दावा पेश कर सकते हैं।

कई तथाकथित महापुरुष भ्रमित हैं कि वेदों में तो कहा गया है,सत्य जानने के अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं इसलिए ईसाई, इस्लाम यहूदी आदि भी सत्य तक जाने के रास्ते ही तो हैं लेकिन वे भूल जाते हैं  कि ये सिर्फ सत्य के दावे हैं सत्य नहीं। भारतीय धार्मिक परम्पराओं में अद्वैत व द्वैत, श्वेताम्बर जैन व दिगम्बर जैन आदि पंथ आपस में सत्य के दावे पेश करते रहते हैं।

यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसे मान्यता भी प्राप्त है। यदि एक मठ का पुजारी कोई क्राइम करता है, व्यभचारी है और वहां आकर कहता है कि वह अपने सत्य का दावा करता है तो उसके दावे को नहीं माना जाएगा चाहे वह कितना भी अपने काम में पारंगत क्यों न हो,उसे तुरंत मठ से निकाल दिया जाएगा। सत्य का दावा करने के लिए योग्यता, सामाजिक आचरण आदि का होना जरूरी है, हर कोई दावा तो कर सकता है लेकिन हर किसी के दावे को मान्यता नहीं दी जा सकती।
 भारत को उपनिवेशिक गुलाम बनाने वाले चाहते थे कि वे उनके बताई हुई विचारधारा को ही सत्य माने, वे नहीं चाहते थे कि वे स्वयं अपने बारे सत्य का दावा करें। यह ऐसा ही है कि सारे सत्य सत्य हैं और तुम हमारा सत्य मानो। तुम बहुत बुद्धिमान हो, ईश्वर को पाए हुए हो इसलिए तुम्हें कोहिनूर हीरा नहीं चाहिए इसलिए तुम इसी को मानों। कई हिन्दू यही कहते हैं कि हमें कोहिनूर हीरा नहीं चाहिए क्योंकि अंग्रेजों ने हमें कहा है कि मायावादी न बनो।

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