पौराणिक जगत व संस्कृतियों का क्या संबंध है?

 


पौराणिक जगत व संस्कृतियों का क्या संबंध है?


पौराणिक जगत से संस्कृतियों का गहरा संबंध है। किसी भी संस्कृति की कल्पना पौराणिक इतिहास के बिना नहीं की जा सकती। हर संस्कृति का अपना पौराणिक इतिहास है। दुनिया की हर संस्कृति में पौराणिक इतिहास है और इन संस्कृतियों के पौराणिक इतिहास के पात्र एक जैसे ही प्रतीत होते हैं। मिस्र, बेलीलोन, यूनान, रोमन, जापान, पेगेन, वीका, वूडू आदि संस्कृतियों व सभ्यताओं का मूल पौराणिक इतिहास ही है। यदि पौराणिक इतिहास न होता तो ये सभ्यताएं प्रफुल्लित ही नहीं हो पाती।

आज इन सभ्यताओं के अवशेषों को देखा जाए तो सृमृद्दि की देवी, सूर्य देव, घोड़े के मुख वाला रोमन देव, सुख समृद्धि की देवी ईस्टर आदि हजारों पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां या रेखा चित्र देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सभ्यताएं कितनी उन्नत रही होंगी। इन नायकों पात्र वास्तिवक होते थे। जैसे सूर्य, जंगल, पृथ्वी, पेड़, पशु आदि पात्र वास्तविक हैं लेकिन इनसे लोग संवाद करने के लिए इनका मानवीय करण कर देते थे। जैसे जंगल से अपनत्व दिखाने के लिए उसे देवता बनाया और फिर उससे देव की तरह संवाद किया और लोक कथाएं,लोग गीत बने। 


भारतीय संस्कृति में भी ऐसा ही हुआ। ये निरंतर आगे बढ़ती गई। इनमें भी निर्जीव व सजीव वस्तुओं को देव श्रेणी में रखकर उनसे संवाद किए गए। महान पात्र जीवन का आधार बन गए। इन पात्रों के गुण भी थे और इनमें कुछ कमियां भी थीं लेकिन इनके गुणों को आधार मानकार इनको देव श्रेणी में रखा गया और इन पर महान ग्रंथों को लिखा गया। अन्य  संस्कृतियों को नष्ट कर दिया गया लेकिन भारतीय संस्कृति को नहीं किया जा सका क्योंकि यह बहुत ही लचकीली थी और इसमें लाखों ग्रंथ लिखे जा चुके थे। इनके ग्रंथों को लोगों ने लोक कथाओं की तरह कंठस्थ करके अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य जारी रखा। 


यहूदी, ईसाई व इस्लाम आने के बाद पौराणिक जगत पर आधारित संस्कृतियों को नष्ट करने और उसकी जगह पर ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित विचारधाराओं को थोपा गया। ईसा मसीह का होना एक ऐतिहासिक घटना माना गया और इसी के आधार पर बाइबल की स्थापना हुई। हालांकि बाइबल में भी उन्ही पौराणिक पात्रों की कहानियों को आधार माना गया लेकिन उनको ऐतिहासिक होने का जबरऩ ठप्पा लगा दिया गया। बाईबल आदि की कहानियों को पौराणिक नहीं माना जाता। पौराणिक पात्रों, कथाओं, त्यौहारों को पौराणिक जगत से उखाड़ कर एतिहासिक ग्रंथों में डालकर उनपर कब्जा कर लिया गया। मंदिरों को तोड़कर उनपर अपने पूजा स्थलों का निर्माण कर कब्जा कर लिया गया। 


यह पौराणिक संस्कृति इतनी ताकतवर है कि इसपर तथाकथित ऐतिहासिक विचारधारा थोपने के हर हमले बिना कोई उत्तर दिए नष्ट हो जाते हैं। पौराणक पात्रों का मजाक व जानबूझ कर इनको अपराध से जोड़ा जाता है। कहीं पर तो इन ग्रंथों,नायकों के चरित्र से छेड़छाड़ की जाती है और कहीं इन पात्रों को चोर, व्वभचारी, अपराधी घोषित करने का प्रयास किया जाता है।ये लोग पौराणक इतिहास को काल्पनिक मानते हैं और अपनी बात सिद्ध करने के लिए भी इन पौराणिक कथाओं को आधार मानते हैं। इनका दोगलापन अपने एजैंडे को चलाने के लिए जारी रहता है।  इनका मूल उद्देश्य यही होता है कि हिन्दू इन पात्रों व पौराणिकता से दूर चले जाएं और वे अपने झूठे ऐतिहासिक पात्रों को इनपर थोप सकें। इसके लिए ये तथाकथित समाज सुधारकों के कंधों का भी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ये उन्हीं के समाज व जाति से होते हैं जिनपर लोग आसानी से विश्वास करते हैं। पौराणिकता ही संस्कृतियों का आधार है। यदि इसे खत्म कर दिया जाए तो एक उच्चकोटि की सभ्यता ही नष्ट हो जाएगी और उसका स्थान ऐतिहासिक एब्राहमिक विचारधाराएं ले लेंगी।  


नोट- हिन्दू यदि किसी संस्कृति की बात करते हैं तो ये पौराणिक ही है। इसी को बचाने केे लिए इनके पूर्वजों ने अपने गर्दने कटवाईं। दूर जंगलों में जाकर अपनी संस्कृति व धर्म को बचाए रखा। अपनी जाति, पहचान की रक्षा की। इसे हर हाल में संरक्षित करना हर हिन्दू की निजी जिम्मेदारी है। हम अब्राहमिक रीलिजनों के चश्मे से अपनी संस्कृति को नहीं देख सकते इसे महसूस करने के लिए हमें अपने पूर्वजों को बलिदानों को याद रखना होगा। कृप्या हमारे विचारों से सहमत न हों।


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