नई पीढ़ी व पश्चिमी जीवन का रहन सहन
नई पीढ़ी व पश्चिमी जीवन का रहन सहन
मैं तो अभी 16 साल की हुई हूं, 18 की हो जाऊंगी तो अपने फैसले स्वयं लूंगी। कोई होता कौन है जो मुझे बताए या टोटके। मैं समझदार हूं और सब कुछ जान गई हूं। मुझे समझाने की कोशिश न करो। मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना मैं समझती हूं। कानून ने मुझे अधिकार दिए हैं। आप दकियानूसी सोच को अपने पास रखें और अपनी जाति, धर्म को चाट कर खाएं। आज दुनिया कहां कि कहां पहुंच चुकी है और आप वहीं जात पात, धर्म में ही चिपके बैठे हैं। इंसान को इंसान समझना सीखो। हर कोई इंसान है। मैं जिससे प्यार करती हूं उसी से साथ रहूंगी लिव इन रिलेशन में । यदि आपने कुछ ज्यादा बोला तो घर छोड़कर भाग जाऊंगी। मैं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं। बच्चे ऐसी बातें आप अपने अभिभावकों से करते हैं। अभिभावक सोचने लगते हैं कि हमने क्या नहीं किया इन बच्चों के लिए। अच्छी से अच्छी परवरिश दी,कर्ज लेकर पढ़ाया, अच्छे संस्कार दिए, फिर भी कहां गलती रह गई कि बच्चे विद्रोही हो गए। माता-पिता को पौराणिक, रूढ़िवादी आदि शब्दों से संबोधित करना शुरु कर दिया। अभिभावक अपने बच्चों की खुशी के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन समय आने पर बच्चे ऐसे विद्रोही होकर माता-पिता को धमकाते हैं तो सब कुछ खाक में मिल गया लगता है।
यह एक नहीं लगभग हर घर की कहानी है। एक ट्रेंड बन चुका है। लिव-इन-रिलेशनशिप, रिलेशनशिप, लव, ब्रेकअप आदि बातें शहरों में आम हो चुकी हैं। ये सभी पश्चिमी परम्पराओं को भारत जैसे देश में खुलकर अपनाया जा रहा है और इसमें कॉलेजों के प्रोफेसरों का बहुत सहयोग होता है जो बच्चों को अपनी परंपराओं का आदर करने की बजाए विदेशी संस्कारों को अपनाने पर जोर देते हैं। आपके जीवन में सिर्फ आपका अधिकार है किसी और का बिल्कुल नहीं। हम चाहे घर में जितने भी संस्कार देते रहें लेकिन बच्चों के दिलों को पहले से ही ब्रेनवॉश कर दिया जाता है। वामपंथियों के 70 साल की मेहनत का फल उनको अब मिल रहा है। जो घटनाएं आज से 30 साल पहले सोची भी नहीं जा सकती थी आज आम हो गई हैं। देश की सेकुलर सरकारों का भी इसमें पूरा हाथ है। हिन्दुओं का हद से ज्यादा उदारवादी व सेकुलर होना भी एक कारण है। समाज में संस्कृति को खत्म करने के लिए घटनाओं का सामान्यीकरण किया जाता है जैसे कि आम बात हो। हम अपने आसपास नजर दौड़ाई गई तो पाएंगे कि नई पीढ़ी का रहन-सहन व सोच कैसे अचानक से बदल रही है। इसमें भस्मासुर तथाकथित समाज सुधारकों का भी अच्छा योगदान है।
ये एक ऐसी वैचारिक व सांस्कृतिक जंग है जिसमें भी हिन्दू हार रहे हैं।
नई पीढ़ी सोचती है कि उसपर हर चीज थोपी जा रही है। वे किसी भी कार्य को करने में स्वतंत्र नहीं हैं। उन्हें इससे कोई सरोकर नहीं कि उनके माता-पिता, परिवार , खानदान के क्या संस्कार हैं, उनके गुणसूत्र क्या हैं, उनका धर्म क्या है, जाति क्या है, उनकी भाषा या खानपान क्या है। वे एक पीजा खाने वाले पीढ़ी है जो अंग्रेजी साहित्य व अंग्रेजी फिल्में, अंग्रेजी गाने सुनना पसंद करती है और अपने जीवन में किसी को कोई दखलअंदाजी नहीं करने देती चाहे वे उसके माता-पिता ही क्यों न हों।
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