श्रद्धा, विश्वास, अंधविश्वास व पाखंड

श्रद्धा, विश्वास, अंधविश्वास व पाखंड 

मानवीय मनोविज्ञान ऐसा है कि किसी के विचार, परम्परा, ग्रंथ व कर्म में श्रद्धा रखता ही है। इसे जिसपर पर आस्था है वह उसे मानता है और आदर भी देता है। उसे उससे दैवीय आध्यात्मिक अनुभूति भी होती है। वह जिसे अपना आराध्य मानता है उसे अंतिम सत्य भी मानने लगता है। इसमें कोई बुराई नहीं हर किसी को अपनी श्रद्धा के अनुसार जीवन यापन करने का संवैधानिक अधिकार भी प्राप्त है। वह देश के किसी कानून का भी उल्लंघन नहीं कर रहा होता,बस अपनी श्रद्धा को और प्रागाढ़ बनाने का प्रयास करता है। मान लो एक साधक या भक्त मंदिर जाता है, वहां उसे शांति व खुशी मिलती है। वह अपने प्राण प्रतिष्ठित किए गए देवों के समक्ष नतमस्तक होता है । उनसे आध्यात्मिक वार्तालाप करता है। यह उसका निजी संबंध उसके आराध्य से होता है। वह किसी का विरोध नहीं करता और न ही किसी अन्य को ऐसा करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन जब कोई उसकी श्रद्धा पर आक्रमण करता है और उसका विरोध करता है तो उसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा होता है। उसकी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा होता है।

विश्वास- विश्वास के लिए हल्का सा भी प्रमाण मिल जाए तो वह विश्वास और पक्का हो जाता है। मानव अपने विश्वास को पक्का करने के लिए तरह-तरह के उपकर्म करता है। वह अपने विश्वास को विज्ञान से भी जोड़ने का प्रयास करता है। एक व्यक्ति आस्तिक है तो यह उसका विश्वास ही है कि ईश्वर है और यदि कोई नास्तिक है तो भी यह उसका विश्वास ही है कि ईश्वर नहीं है। दोनों पक्ष विज्ञान के आधार पर जब बात करने का प्रयास करते हैं तो दावा करते हैं कि दोनों ही सफल हैं। जबकि विज्ञान का आधार प्रमाण है, प्रमाण है तो ठीक नहीं तो उसे प्रमाण मिलने का इंतजार करना होता है। कई लोगों को विश्वास है कि जन्नत में हूरें उनका स्वागत करती हैं लेकिन यह तब घातक हो जाता है जब वे अपने इस विश्वास के लिए अन्य निर्दोष लोगों की हत्याएं करने से भी नहीं चूकते। वे समझते हैं कि उनका विश्वास ही अंतिम है और वे अपने से विपरीत विचारधाराओं, संस्कृतियों को खत्म करने के लिए घातक तरीके अपनाते हैं।

अंधविश्वास व पाखंड - अंधविश्वास व विश्वास में भी हल्का सा ही अंतर है। एक वर्ग के लिए जो विश्वास है वही दूसरे वर्ग के लिए अंधविश्वास भी हो सकता है। एक वर्ग जो रात भर जाग कर भगवान का सिमरन करता है और कीर्तन,नाचता गाता आदि है तो यही दूसरे वर्ग के लिए अंधविश्वास या पाखंंड हो सकता है। लेकिन जब यही वर्ग डीजे की धुन पर शराब का सेवन कर रात भर नाचता,गाता व खुशी मनाता है तो यह उसके लिए अंधविश्वास या पाखंड नहीं है।
एक व्यक्ति नित्य कर्म के तहत अपने ईष्टों के दर्शन के लिए सैंकड़ों मीलों का सफर तय कर वहां जाता है तो दूसरा वर्ग अपने मनोरंजन के लिए घूमने फिरने के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाता है। एक वर्ग नाचने वालों व गाने वालों पर रुपए लुटाता है तो दूसरा वर्ग अपने आराध्य को खुश करने के लिए उनके लिए वस्त्र तैयार करता है और उनको भोग लगाता है। एक गंगा जी को मां के समान आदर देता है, उसकी पूजा करता है वहीं दूसरा भी है जिसके लिए वह केवल नदी है वह भी उसमें डुबकी लगाता है। गंगा जी को कोई इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन मानव की भावना व श्रद्दा है जो इससे अपना संबंध जोड़ता है।

दुनिया नाशवान है, सब माया है आदि कहने वाले अपने लिए घर खरीदना हो तो 50 जगहों पर मोल भाव करते हैं, सामान खरीदने के लिए अच्छी से अच्छी दुकान देखते हैं और तभी खरीददारी करते हैं। शरीर का चेकअप करवाने के लिए बैस्ट डाक्टर को दिखाते हैं। अपने किसी विश्वास को लेकर यदि कोई देश के कानून का उल्लंघन करता है या आपराधिक काम करता है तो वह दंडनीय होता है।

 एक व्यक्ति अपने धार्मिक व सामाजिक कर्म पर लोगों को बुलाता है उन्हें सम्मान देता, भोजन आदि खिलाता है तो यही एक वर्ग के लिए पाखंड भी होता है लेकिन यही वर्ग जब विवाह शादियों में पैसा पानी की तरह बहाता हैै तो उसे यह पाखंड व बर्बादी नहीं लगती। जब मुगल व अंग्रेज हमलावर भारत में आए तो उन्हें जो भी भारतीय करते थे सब बकवास व अंधविश्वास ही लगता था क्योंकि उनको न तो यहां की संस्कृति के बारे में कोई जानकारी थी और न ही धार्मिक विश्वासों के बारे में। वे उनकी श्रद्दा, धर्म का मजाक उड़ाते। उनकी यही कोशिश रहती कि वे इस सब को बंद करवा दें। उनकी गुलामों के धर्म,धर्मिक ग्रंथों, धार्मिक स्थलों में कोई श्रद्धा नहीं और वे भी ऐसा ही चाहते थे कि भारतीय भी ऐसा ही करें और सारा कुछ छोड़ दें क्योंकि वे इन सब को अंधविश्वास व उनके धर्म के अनुसार दंडनीय अपराध यानि पाप भी मानते थे।



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