विदेशी आक्रमणकारियों को सुधारने के लिए भीतरी गतिविधियां क्यों नहीं शुरु हुईं

विदेशी आक्रमणकारियों को सुधारने के लिए भीतरी गतिविधियां क्यों नहीं शुरु हुईं

अमेरिका की महानता की बातें की जाती हैं तो उसके काले इतिहास के बारे में कुछ नहीं लिखा या बोला जाता केवल महानता की बातें ही की जाती हैं। इसके विपरीत जब भारत महान की बातें की जाती हैं तो विदेशी हमलावरों को महान लिखा गया है। शिवाजी जैसे राष्ट्रवादियों को लुटेरा तक कहा गया है। मुगलों के आने के बाद भारत में कई संत व समाज सुधारक सामने आए लेकिन मुगलों ने इनकी हत्याएं करके लहर को निर्यदयता से कुचल दिया। इन संतों के लिखे ग्रंथों को उनके शिष्यों ने सम्भाल लिया। इस प्रकार उनकी विचारधारा बची रही। इसके बाद जब अंग्रेजों का दौर आया तो सारी सामाजिक बुराइयां एकदम से हिन्दू धर्म में ही दिखने लगीं और अचानक से थोक के भाव समाज सुधारक पैदा होने लगे।

हैरानी की बात है कोई भी समाज सुधारक अंग्रेंजों में पैदा नहीं हुआ और न ही इस्लाम में। इऩ सभी समाज सुधारकों में एक बात कामन थी कि ये जाने अनजाने में मिशनरियों का रास्ता आसान कर रहे थे। इन समाज सेवकों में ज्यादातर राष्ट्रवादी थे लेकिन इससे अंग्रेजों को कोई परेशानी नहीं थी। जहां क्रांतिकारियों को तुरंत शहीद कर दिया जाता या फांसी पर चढ़ा दिया जाता वहीं इस समाज सुधारकों को परोक्ष रुप से पैसे आदि की मदद की जाती और समाचार पत्रों में इनको अच्छी तरह प्रोमोट किया जाता। हिन्दुओं को भ्रमित करने के लिए पूरे भारत में लगभग 1000 जाली शंकराचार्य पैदा कर दिए गए।
अंग्रेज अच्छी तरह जानते थे कि वे सिर्फ एक प्रतिशत ही हैं और यदि उनको भारतीयों पर शासन करना है तो इनको राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक तौर पर किसी भी तरह तोड़ना होगा। अब पूरे भारत में उनका कब्जा था। राजनीतिक तौर पर राजाओं को तोड़ कर अपने साथ मिलाया, जिमीदारों को राओ साहिब, हिज एक्सीलैंसी आदि खिताब व जमीने देकर अपने अधीन कर लिया ताकि वे आम जनता को भड़कने न दें। हिन्दुओं को निपुंसक बनाने का काम किया गया। अहिंसा वादी आंदोलनों का मकसद यही था। मुसलमानों को भी हज, मदरसों, इफ्तार आदि के लिए करोड़ों रुपए दिए जाते रहे। जब भी समाज हिंसक होने लगता तो अंग्रेज अहिंसा के शगूफे अपने एजैंटों से छुड़वा देते। नेता जी सुभाष चंद्र को  वार क्रिमिनल घोषित कर दिया गया।
धार्मिक तौर पर भी तोड़ने का पूरा षडयंत्र चल रहा था। कुछ आनंदोलनकारी तरह के युवकों को भड़काया गया और अलग-अलग तरह से उन्हें पर्दे के पीछे से प्रोमोट किया गया। हैरानी की बात है कि ये समाज सुधारक वहीं पैदा हुए जहां अंग्रेजों का पूरा जोर था। सुदूर गांवों में इन लोगों का कोई ज्यादा प्रभाव नहीं था और लोग अपनी दिनचर्या आम की तरह जी रहे थे। इस प्रकार केवल हिन्दू धर्म में सुधार लाने के नाम पर कई धार्मिक आनंदोनलों को पैदा किया गया। कई दलित नेताओं को  भी भड़काया गया। अंग्रेज पाकिस्तान बनाने के साथ एक नया दलितस्तान बनाना चाहते थे लेकिन उनकी यह मंशा पूरी नहीं हुई।

दक्षिण भारत में भी ऐसा ही फंडा अपनाया गया द्रविड़वाद के नाम पर पैरियार जैसे लोगों को प्रोमोट किया गया। ऊारतीय एक दूसरे की हत्या कर दें या कोई बड़ा अपराध भी कर देे तो अंग्रेज इस मामलों से दूर ही रहते थे लेकिन जैसे ही किसी अंग्रेज की हत्या हो जाती तो सारा अंग्रेजी तंत्र एकदम से चौकन्ना हो जाता और हत्यारोपी को फांसी पर चढ़ा कर ही दम लेता। हिन्दुओं के स्वभाव को अंग्रेज समझ चुके थे। वे जानते थे कि ये लोग अपने धार्मिक संतों का बहुत आदर करते हैं और उन्होंने समाज सुधारकों के नाम पर इन्हीं तथाकथित संतों का सहारा लिया।ये सभी सुधारक अंग्रेजों व अंग्रेजी कल्चर से बहुत प्रभावित थे।  इन संतों को भी नहीं पता था कि वे जो कार्य कर रहे हैं, इससे हिन्दुओं में एकता नहीं बिखराव पैदा होगा और पर्दे के पीछे कौन लोग हैं वे मरते दम तक नहीं जान सके।



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