नेरेटिव को कैसे गढ़ा जाता है, कैसे प्रोपोगेट किया जाता है

 नेरेटिव को कैसे गढ़ा जाता है, कैसे प्रोपोगेट किया जाता है
महाभारत को लिखने से पहले सैंकड़ों साल से लोगों के मुंह में इसकी गाथाएं प्रचलित हो चुकी थीं। ये गीतों, नाट्य आदि के रूप में देश के विभिन्न हिस्सों में उनकी लोकल भाषाओं में गाई जा रही थीं। हर प्रात्र का चित्रण लोगों के मतिष्क में इतिहास की तिथियों की तरह अंकित था। सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में लोग महाभारत के पात्रों की पूजा अर्चना भी करते थे। लेखक या लेखकों ने इन्हीं गाथाओं को महाकाव्य का रूप दिया। हैरानी की बात है कि यह महाकाव्य अनवरत रूप से ऐसे ही हजारों सालों से भारतीय जनमानस के हृदय में वास करता है। कभी किसी ने इनके प्रात्रों, इसकी गाथा आदि पर न तो शंका व्यक्त की और न ही छे़ड़छाड़ करने की कोशिश की। पात्र जैसे थे उसे वैसे ही ग्रंथ को लिखे जाने से पहले ही लोग स्वीकार कर चुके थे।

मुगलकालीन नेरेटिव-मुगलकाल के दौरान भारतीय नायकों को नकार दिया गया था। उनके पात्रों व धर्म का मजाक उड़ाया जाता था। हिन्दू धर्म से जुड़े हर चिन्ह को नष्ट करने का प्रयास किया गया। भारी संख्या में धर्मपरिवर्तन हुआ और एक संस्कृति को छोड़ कर अरबी संस्कृति व धर्म को अपना लिया गया। इन धर्म परिवर्तित लोगों के लिए अब भारतीय नायक, पात्र व ग्रंथ कोई अहमियत नहीं रखते थे और वे इनको काल्पनिक व झूठा कहने लगे।
अंग्रेजों के समय का नेरेटिव- यह वह समय था जब मिशनरियां सक्रिय हो चुकी थीं लेकिन वे पर्दे के पीछे से काम कर रही थीं। कहीं ये महागाथाओं के पात्रों को खलनायक के तौर पर पेश करते और कहीं एक नया नेरेटिव पेश करते। ये लोग महाभारत को एक राजनीतिक ग्रंथ के तौर पर देखते थे जिसमें के हत्याएं, अत्याचार, दुष्क्रम, वंचितों का शोषण, व्यभचार आदि को निकाल कर अपने अनुसार लोगों को परोसते। यदि 100 में से एक भी इनकी बातों को मान लेता तो इनके लिए एक जीत थी।
 द्रोपदी के पांच पति थे या नहीं- आज भी करोड़ों लोग इसी बात पर विश्वास करते हैं कि द्रोपदी के पांच पति थे। इसमें उनको कोई मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं लगता। न ही जनमानस में आज ऐसी कोई महिला हो जिसके पांच पति हों। महागाथा का हिस्सा होने पर भी समाज में पांच पति प्रथा न के बराबर है और न ही कोई नारि कहती है कि महाभारत में पांच पति थे तो मैं भी पांच पति रख सकती हूं। हां 4 पत्नियां रखने की आदिम परम्परा आज भी समाज में जारी है।
महाभारत का सारा कथानक ही पांच पांडवों व द्रोपदी के आसपास घूमता है और इन पात्रों की अहमियत घटानी हो तो इनके बारे में जितना हो सके भ्रम फैलाया जाना चाहिए। यदि भारतीय जनमानस इसपर विश्वास करता कि द्रोपदी का एक ही पति था तो ये इस नेरेटिव को प्रोमोट करते कि द्रोपदी के पांच पति थे। भारतीय जनमानस जिसे नायक मानते हैं उसे ये खलनायक बनाते हैं और जिसे खलनायक मानते हैं उसे नायक बताते हैं। इससे यह होगा कि इससे समाज बंटेगा और कोई भी ऐसा नेरेटिव पेश करते रहना है।
यह ऐसा ही होता है जब कोई ग्राहक दुकानदान से किसी प्रसिद्ध ब्रांड को मांगता है तो वह उसे घटिया ब्रांड बेचने की कोशिश करता है क्योंकि इससे उसे अच्छी कमाई होती है। फेक नेरेटिव फैलाने के लिए उन लोगों का साथ लिया जाता है जिनको लोग मानते हैं और जिनकी बातों पर विश्वास करने लगे हैं।
            पुराने नेरेटिव को तोड़ने के लिए जरूरी है नया नेरेटिव पेश करना। अब पेश किया गया कि द्रोपदी का एक ही पति था, कृष्ण दुराचारी थे, महाभारत काल्पनिक है आदि। एक नेरेटिव के अनुसार महाभारत पूरी तरह से काल्पनिक हैं। वामपंथी नेरेटिव के अनुसार महाभारत में हिंसा है,इसलिए इसे बैन कर देना चाहिए। इन गाथाओं को बार-बार तो़ड़ो मरोड़ो की ये काल्पनिक मानी जाने लगें और धीरे-धीरे लोग इन्हें छोड़ दें।

समस्या क्या है- समस्या है कि आज समाज में महिलाओं को तीन तलाक,हलाला के नाम पर प्रताड़ित होना पड़ता है, समाज में पोलीगेमी यानि एक साथ 4 महिलाओं से गमन, लव जेहाद आदि समस्याओं पर चर्चा न हो इसलिए ऐसा कोई न कोई शगूफा छोड़त रहो जिससे बहुसंख्यक समाज वैचारिक तौर भी बंटता बंटता जाए। आज लोग प्रोपोगंडा के तहत द्रोपदी के पांच पति थे या नहीं इस पर सैंकड़ों सालों तक विवाद करते रहेंगे जिसका कोई औचित्य ही नहीं है।  आज हिन्दुओं को यह भी जानना होगा किस बात पर चर्चा करनी है और किस पर नहीं और यदि चर्चा करनी है तो नरेटिव टूटना नहीं चाहिए। ऐसा ही प्रयास होना चाहिए। 

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