क्या पुराण आदि हिन्दू ग्रंथ झूठे हैं?

क्या पुराण आदि हिन्दू ग्रंथ झूठे हैं

इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही गहन मानवीय मनोविज्ञान से जुड़ा हुआ है। आपने देखा होगा कि फिल्मों, उपन्यासों आदि के पहले बहुत ही छोटे अक्षरों में लिखा होता है कि इस फिल्म में सभी पात्र काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत्य व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा भी लिखा मिलता है कि यह फिल्म इस उपन्यास पर आधारित है, किन्ही कारणों के चलते फिल्म के कुछ दृश्य उपन्यास से मेल नहीं खा सकते, इसके लिए फिल्म निर्माता जिम्मेदार नहीं है। ऐसा भी लिखा मिलता है कि फिल्म या उपन्यास सत्य घटनाओं पर आधारित है, निजता के लिए इसमें जगह व पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। 
कापीराइट एक्ट- आपने कापीराइट एक्ट का उल्लेख भी पड़ा होगा जिसमें लिखा होता है कि उपन्यास या फिल्म की कहानी, पात्र आदि की नकल नहीं की जा सकती आदि। आज हालीवुड बालीवुड की सैंकड़ों फिल्में काल्पनिक होती हैं लेकिन वे अरबों डालरों का व्यापार करती हैं क्योंकि करोड़ों लोग इन फिल्मों को देखते हैं। इनके पात्र बैटमैन, स्पाइडरमैन, हल्क, जेम्स बांड आदि के लोग दीवाने हैं। वे इनकी एक झलक पाने के लिए हजारों डालर उड़ा देते हैं। फिल्म या उपन्यास कितना भी सत्य या काल्पनिक हो इसके माध्यम से लोगों को कुछ छिपे हुए व कुछ स्पष्ट संदेश दिए जाते हैं। सिनेमा व पुस्तकें ऐसे संदेशों को लोगों तक पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। एक बार इंग्लैंड के बादशाह को पूछा गया कि आप किस चीज को अपने साथ हमेशा रखना चाहेंगे तो उसने उत्तर दिया कि महान लेखक शेक्सपीयर की रचनाओं को वे हमेशा अपने सिर पर रखेंगे। 

पुराण ऐतिहासिक ग्रंथ- पुराण भी कुछ ऐसे ही हैं। पुराण ऐतिहासिक ग्रंथ है, इनके पात्र काल्पनिक नहीं हैं। ये सभी सत्य घटनाओं पर आधारित हैं लेकिन रोचक बनाने के लिए इसमें हर कल्पना शक्ति का प्रयोग किया गया है। इन सारे ग्रंथों के पात्र भगवान शिव, राम, कृष्ण, दुर्गा, भवानी, मां काली, हनुमानजी, गणेश जी आदि हैं। इन पात्रों के साथ इनके वाहन भी हैं जो जीव हैं। ये पात्र मानवीय व्यवहारों का प्रतीक हैं। इनमें सीमित व असीमित शक्तियां भी हैं लेकिन ये एक आम मानव की तरह ही समाज के साथ वार्तालाप भी करते प्रतीत होते हैं। 
भारतीय हिन्दू जनमानस के लिए ये एक पात्र नहीं उनके लिए ईश्वर का रूप हैं जो इनको समय-समय पर उत्साहित करते रहते हैं और इनके साथ जीवन भर छाया की रहते हैं। पुराणों में अलग-अलग रचनाएं व कथाएं हैं लेकिन ये सभी मुख्य पात्र के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इनका कथानक इतना ताकतवर है कि हजारों सालों के बाद भी इन्हें उसी रोचकता से पढ़ा जाता है। भारतीय जनमानस इन पात्रों के बिना नहीं रह सकता, इनके सहारे वे युद्ध भूमि में उतरते हैं और अपना जीवन दाव पर लगाते रहे हैं, दुश्मनों को खत्म करते रहे हैं और वीरगति को प्राप्त होते रहे हैं। 
सैकुलर सरकार के लिए ये ग्रंथ एक बड़ा खतरा हैं क्योंकि जब तक इन पात्रों को नष्ट नहीं किया जाता तब तक हिन्दू कभी भी एकजुट हो सकता है। ऐसा ही जैसे अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए सारा हिन्दू समाज एक हो गया था। ऐसा ही गऊ को लिए 1857 की क्रांति का बीज मंगल पांडे ने डाल दिया था। आज एक ईष्ट में सारे समाज को एकजुट करने की ताकत है। आज जब रामायण व महाभारत को करोड़ों लोगों ने देखा तो वामपंथियों की चूलें हिल गईं। वे तो सारी उम्र इन पात्रों, ग्रंथों, इनके नायकों को झूठ साबित करने में लगे रहे और भारतीय जनमानस इनको रिजैक्ट करता रहा। 
हिन्दुओं को क्या करना है- हिन्दुओं को अपनी आस्था हो रहे हर आक्रमण का मुंह तोड़ उत्तर देना है। अपने ईष्ट नायकों से जुड़े रहना है चाहे कोई भी कुछ कहे। हमारे कुछ प्रचारक जाने अनजाने में इनका विरोध करते हैं, उनको प्यार से समझाएं और अपनी असहमति व्यक्त करें। वेद हमारे सर्वोपरि हैं इससे कोई भी हिन्दू इंकार नहीं करता लेकिन हमारे नायक हमारे ईश्वर हैं। यदि हिन्दू समाज श्रीराम को आम राजा मानने लगते तो कोई भी उनका अयोध्या में मंदिर बनाने के लिए नहीं एकजुट होता। यह आस्था नहीं टूटनी चाहिए। 

भारत व हिन्दुओं की एकता सिर्फ उनके महानायकों के सहारे ही सम्भव है बाकि सब प्रयास छ्दम हैं और अव्यवहारिक हैं। याद रहे इन नायकों को छोड़ने वाले हिन्दू अरबी नायक चुन लेंगे,  जाली लोगों को अपना नायक बना लेंगे जिसके परिणाम हिन्दुओं को आजतक भुगतने पड़ रहे हैं। नायक हमारे भगवान हैं, हम इनकी मूर्तियों को मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठित करते हैं ताकि ये हमेशा हमारी आंखों के सामने रहें, हमारी आस्था कमजोर न होने पाए ।  नायकों के बिना किसी भी राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती। 








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