जाति व्यवस्था बनाम जातिवाद- नफरती रंग कैसे खत्म हो

सभ्य समाज के लिए घातक-
नीचा व पीड़ित होने की कुंठा, दूसरे वर्गों से नफरत या ऊंचा या समृद्ध होने का घमंड व वंचितों से नफरत दोनों ही सभ्य समाज के लिए घातक हैं। जातियों को समझने से पहले मानवीय मनोविज्ञान व इतिहास को समझना जरूरी है। हम इसे किसी देश या समाज के तौर पर न देखें इसे तौर पर देखें और इसका विवेचन करें। वैदिक या महाभारत काल में समाज मूलत चार भागों कार्य़ कर रहा था। शिक्षक, रक्षक, व्यापारी व कामगार । जो शिक्षा का काम करते थे उन्हें ब्राह्मण की संज्ञा दी गई जो रक्षक थे उन्हें क्षत्रिय व जो व्यापारी थे उन्हें वैश्य तथा इसी तरह जो कामगार थे उन्हें शूद्र वर्ग की संज्ञा दी गई। ऐसा नहीं था कि किसी को पकड़ कर ब्राह्म्ण बना दिया गया या क्षत्रिय बना दिया गया हो । ये लोग किसी भी वर्ग से थे और जो ये काम कर रहे थे उन्हें उसी काम की संज्ञा दी गई।

आप देखेंगे कि दक्षिण भारत का ब्राहमण दक्षिण भारतीय और नेपाल का नेपाली भाषा, कल्चरव रंग में अंतर है। महाभारत में कर्ण को राजा घोषित करते हुए दुर्धोधन ने उसे क्षत्रीय घोषित किया तो किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। उसे क्षत्रीय राजा की उपाधि मिली। अर्जुन, दुर्धोधन, भीम आदि के् साथ जाति सूचक उपनाम नहीं जोड़ा गया क्योंकि कोई भी अपनी योग्यता से कोई भी पद पा सकता था।

उपनाम कैसे जुड़ा-
मुगलों व अंग्रेजों को भारतीयों को पहचानना मुश्किल होता था क्योंकि उन्हें सारे एक से लगते थे। तो उन्होंने जातियों के नामकरण पर जोर दिया। जैसे पारसी अपने साथ कोई उपनाम नहीं लगाते थे तो उन्होंने उन्हें उपनाम लगाने को कहा। पारसियों को जैसा जो मिला उन्होंने लगा लिया जैसे बाटलीवाला, मोटाभाई, टोकोवाला, टोपीवाला, काफीवाला आदि। इसी प्रकार भारतीयों को भी उपनाम लगाना पड़ा जैसे शर्मा, गुप्ता, अग्रवाल आदि। हिन्दुओं में उपनाम को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। गोत्र, वर्ण व जाति को मान्यता थी।

मानवीय मनोविज्ञान- कोई भी अधिकारी अपने नीचे काम करने वालों के साथ खाना नहीं खाता या उनसे मेल मिलाप नहीं रखता। एक चपड़ासी योग्यता न होने पर भी अपनी फर्म के अधिकारी की कुर्सी पर बैठने की इच्छा रखता है। आपके अपने परिवार या बिरादरी से जैसे ही कोई रिश्तेदार ऊंचे पद पर पहुंचता है या अमीर हो जाता है तो वह तुरंत आपसे किनारा कर लेता है। एक धनाढ्य को तो सात सितारा होटल में एंट्री मिल जाती है लेकिन निर्धन अंदर जाने की सोच ही पालकर रखता है और कुंठित रहकर ईर्ष्या ही करता है। एक अमीर अपने लिए 20 लाख का कुत्ता खरीदता है और शादी में करोड़ों रुपए लगा देता है और उसकी शादी में केवल धनवान लोग को ही बुलाया जाता है। जैसे ही एक आम इंसान मंत्री बनता है तो उसके व्यवहार में अंतर आ जाता है। आशा भोंसले जी ने कहा कि मुझे याद है कि कोरस में गाने के समय हमें माइक तक पहुंचने नहीं दिया जाता था लेकिन हमने संघर्ष किया किसी को गालियां नहीं दी और अपना मुकाम हासिल किया।

एक सफल कलाकार का ब्यान- इस सफल कलाकार को एक व्यक्ति ने कहा कि हम भी आप जैसा बनना चाहते हैं लेकिन जब हम मुम्बई आते हैं तो आपसे हमें मिलने नहीं दिया जाता तो इस कलाकार में कहा कि आप भी उसी रास्ते से आइए जिस रास्ते में मैं आया। एक खोली में 5 लोगों के साथ सोना, किसी दिन रोटी भी नसीब न होना और संघर्ष में सैंकड़ों दिन निकल गए। कई बार धक्के मार कर हमें निकाला गया, गालियां भी पड़ीं लेकिन हमने हार नहीं मानी। सबके लिए वही रास्ता है और वह है संघर्ष का। आप मुम्बई में आकर यह नहीं मैं इस जाति से या धर्म से हूं या इस प्रदेश से हूं क्योंकि ऐसा बहाना यहां कोई नहीं सुनता। यहां जो कभी स्टार थे वे गुमनाम हो गए और जो स्टार पुत्र थे उन्हें भी स्वयं को साबित करना पड़ा। बस जब यह बात आपके दिमाग में आ जाएगी समझो आप संर्घष के लिए तैयार हैं।

जाति व्यवस्था के सकारात्मक पहलू- आज पटेल जाति के लोग अमेरिका में मोटल व्यवसाय में नम्बर एक पर हैं। इस प्रकार जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपने बाप-दादाओं के कामों में लगे थे या आज भी हैं वे सफलता की सीढ़ियों पर सबसे ऊंचे पायदान पर हैं। स्वीटजरलैंड के हीरा व्यापारियों में गुजरात के मारवाड़ियों का कब्जा है वे काम कई पीढ़ियों से कर रहे हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था ने समाज को हर क्षेत्र में परिपक्ता दी। जाति व्यवस्था में जातिवाद व ांनफरती राजनीतिक एजैंडों ने अपना काम बाखूबी किया। एक जाति को दूसरी जातियों के खिलाफ भड़काया और वोट राजनीति की।

अमेरिका में नस्लवाद व गुलाम- 1850 तक अमेरिका में काले लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाता था और महिलाओं को वोट देने का भी अधिकार नहीं था।
रेड इंडियन लोगों की लगभग सारी आबादी खत्म कर दी गई थी। भेदभाव आदि दुनिया के सारे देशों की समस्या रही है और आज भी है। हमारे देश में भी कई समस्याएं हैं और हमें भी उनसे सकारात्म ढंग से निपटना है। ऐसा नहीं कि एक समस्या को खत्म करने के लिए उससे बड़ी समस्या पैदा कर दी जाए।

जातिवाद कैसे खत्म हो- जातिवाद उसी दिन खत्म हो जाएगा जब हर कोई स्वाभिमान से जीना सीख जाएगा। समस्याओं को वर्तमान संदर्भ  जांचेगा व उसका विवेचन करने के बाद हल निकालने की कोशिश करेगा। जाति के नाम पर न तो कोई बहस करे और न ही इसे ज्यादा बढ़ावा दे। कोई ये भी न कहे कि मैं इस जाति से हूं इसलिए मुझे आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि यह भी एक तरह का अलगाववाद ही है जहां आप स्वयं को दूसरों से अलग घोषित करके कोई सुविधा की मांग कर रहे हो, आप यह कह सकते हैं कि मैं आर्थिक तौर पर कमजोर हूं इसलिए मुझे आर्थिक मदद दी जानी चाहिए। सरकार से मांग करें कि जाति के कालम में एससी,बीसी या सामान्य न लिखा जाए बल्कि भारतीय लिखा जाए। जब तक हम जाति के नाम पर वंचित घोषित करते रहेंगे या जाति के नाम पर किसी विषेश अधिकार की मांग करेंगे जातिवाद कभी खत्म नहीं होगा बल्कि और मजबूत होगा।

आपस में शादियां होने से क्या कोई फर्क पड़ेगा - नहीं जातिवाद यानि भेदभाव मानसिक अवस्था है, आपस में शादियां होने से कई फर्क नहीं पड़ेगा। मीरा कुमार ने ब्राहम्ण पुरुष से शादी की लेकिन अपने को अभी भी दलित नेता ही मानती हैं, रामविलास पासवान से स्वर्ण महिला से शादी कि लेकिन उसका बेटा
अभी भी दलित है। कई दलितों ने स्वर्णों से शादियां की लेकिन वे दलितवाद का ठप्पा हटा नहीं पाए और सुविधाएं ले रहे हैं चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं। 


फोबिया को बढ़ावा न दिया जाए- तथ्यों व मानवीय मनोविज्ञान व दृष्टिकोण को जांच परख कर प्रोफैशनल तरीके से ही संवाद होना चाहिए। वर्तमान को सामने रखकर समझदारी से नीतियां बनानी चाहिए न कि 1000 साल पीछे जाकर मनघढ़ंत बातें की जानी चाहिए। आज संविधान व कानून के सामने सब समान हैं और इसी समानता को आधार मानकर निर्णय लेने चाहिएं। एक वर्ग विशेष के खिलाफ नफरत फैलाकर अपनी दिमागी गंदगी व फोबिया को लोगों के सामने प्रदर्शित न किया जाए। अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोष देना एक आसान तरीका है।

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