यह कैसे हुआ मेरे पास कोई स्पष्टीकरण नहीं
यह कैसे हुआ मेरे पास कोई स्पष्टीकरण नहीं
बात उन दिनों की है जब में लगभग सात साल का था। चौथी कक्षा में पढ़ता था, घर में धार्मिक माहौल रहता था और मंत्रों का जाप पिता जी व माता जी सुबह शाम करते रहते थे। महाभारत, रामायण आदि की कथाएं मां हमें सुनाती रहती थी। मेरी समस्या यह थी कि मुझे स्कूल जाने में बहुत डर लगता था और मुझे जो काम दिया जाता मैं कर नहीं पाता था। मुझे किसी भी प्रश्न का उत्तर याद करने में परेशानी होती थी न तो मुझे प्रश्न के बारे में जानकारी होती थी और न ही उत्तर समझ में आता था। बस रट्टू तोते की तरह रट्टा लगाता लेकिन फिर भी कुछ याद न होता। हमारी मैडम बहुत की कड़क थी और काम न होने पर हाथों पर जोर-जोर से डंडे मारती थी, हाथ लाल हो जाते और बहुत दुखते भी। बस इसी कारण से स्कूल जाने के नाम पर बुखार चढ़ने लगता। मां कहती थी कि जब भी कोई परेशानी हो तो भगवान का नाम लो वे अवश्य सहायता करते हैं। उसने मुझे कुछ मंत्र सिखाए भी थे।
अब वह दिन आ गया इन मंत्रों को परखने का। मेरा काम भी नहीं हुआ था और मेरा पाठ भी मुझे याद नहीं था। बस बुखार सा चढ़ने लगा, टांगे कांपनी सी लगी। भगवान से प्रार्थना करने लगा कि मैडम को आज बुखार आ जाए या उसे कोई काम पड़ जाए ताकि वह स्कूल न आ सके। मंत्रों का जाप घर से ही शुुरु हो गया। रास्ते में गुरुद्वारा पड़ता था,वहां भी माथा टेका और बचा लेने की प्रार्थना की। हे भगवान उस मैडम का एक्सीडैंट ही हो जाए कि वह स्कूल न आ पाए।
मेरे को पूरा विश्वास था कि भगवान मुझे निराश नहीं करेंगे। जैसे ही स्कूल पहुंचा तो देखा कि मैडम तो चंगी भली है। अपनी अन्य टीचरों के साथ हंस रही थी। हे भगवान चलो कोई बात नहीं वह स्कूल आ गई तो आ गई आज सबक न पूछे और कापियां चैक न करे।
कक्षा में पहुंचते ही उसने कहा सारे बच्चे जिन्होंने काम किया है अपनी कापियां जमा करवाएं और बारी-बारी प्रश्नों का उत्तर दें। जिन्होंने काम नहीं किया या याद नहीं किया वे खड़े हो जाएं। मैं खड़ा हो गया, बस मैडम ने जैसे ही डंडा निकाला मेरे तो प्राण ही सूख गए। मैं थर-थर कांपना शुरु हो गया। मैंने मन ही मन मंत्रों का जाप करना शुरु कर दिया। मेरा आठवां नम्बर था मार खाने का। वह 6-6 डंडे हाथों पर मारती और आगेे आती गई। मैं तेजी से मंत्र जाप करता रहा। मेरे पास वाले छात्र को मारा तो वह रोने लगा ।
अचानक वह रुकी व मेरे को छोड़कर आगे बढ़ गई। बाकी बच्चों ने शोर मचा दिया मैडम इसे सजा नहीं मिली आपने इसे नहीं मारा।
मैडम ने जोर देकर कहा अभी तो मैंने इसे मारा है। मेरी तरफ उसने देखा और कहा मारा है न मैं कुछ नहीं बोला। आवाजें हल्की हो गईं और फिर बंद। मैडम आगे निकल चुकी थी। मुझे नहीं पता मैं कैसे बच गया,वह मुझे मारना कैसे भूल गई, क्या यह मेरे मंत्रों का असर था कि किसी को भुलाया जा सकता है।
मेरे लिए तो जान बची तो लाखों पाए। आज भी मैं समझता हूं कि शायद यह मंत्रों की ही शक्ति थी या मेरी श्रद्धा या मैडम ने मेरी मनोदशा पर तरस खाया लेकिन तरस वाली बात को मैं सिरे से रिजैक्ट करता हूं क्योंकि पढ़ाई के नाम पर मैडम कोई लिहाज नहीं करती थी।
आज इस घटना को 40 से अधिक साल हो गए हैं, मैं मैडम का चेहरा व नाम भूल चुका हूं लेकिन यह घटना मुझे आज भी याद है। मैं अपने बचपने में मैडम के बारे में गलत सोचता था कि उसका एक्सीडैंट हो जाए, या बीमार हो जाए, उसका भी मुझे खेद है। वह तो हमारे भले के लिए ही हमें सुधार रही थी।
बात उन दिनों की है जब में लगभग सात साल का था। चौथी कक्षा में पढ़ता था, घर में धार्मिक माहौल रहता था और मंत्रों का जाप पिता जी व माता जी सुबह शाम करते रहते थे। महाभारत, रामायण आदि की कथाएं मां हमें सुनाती रहती थी। मेरी समस्या यह थी कि मुझे स्कूल जाने में बहुत डर लगता था और मुझे जो काम दिया जाता मैं कर नहीं पाता था। मुझे किसी भी प्रश्न का उत्तर याद करने में परेशानी होती थी न तो मुझे प्रश्न के बारे में जानकारी होती थी और न ही उत्तर समझ में आता था। बस रट्टू तोते की तरह रट्टा लगाता लेकिन फिर भी कुछ याद न होता। हमारी मैडम बहुत की कड़क थी और काम न होने पर हाथों पर जोर-जोर से डंडे मारती थी, हाथ लाल हो जाते और बहुत दुखते भी। बस इसी कारण से स्कूल जाने के नाम पर बुखार चढ़ने लगता। मां कहती थी कि जब भी कोई परेशानी हो तो भगवान का नाम लो वे अवश्य सहायता करते हैं। उसने मुझे कुछ मंत्र सिखाए भी थे।
अब वह दिन आ गया इन मंत्रों को परखने का। मेरा काम भी नहीं हुआ था और मेरा पाठ भी मुझे याद नहीं था। बस बुखार सा चढ़ने लगा, टांगे कांपनी सी लगी। भगवान से प्रार्थना करने लगा कि मैडम को आज बुखार आ जाए या उसे कोई काम पड़ जाए ताकि वह स्कूल न आ सके। मंत्रों का जाप घर से ही शुुरु हो गया। रास्ते में गुरुद्वारा पड़ता था,वहां भी माथा टेका और बचा लेने की प्रार्थना की। हे भगवान उस मैडम का एक्सीडैंट ही हो जाए कि वह स्कूल न आ पाए।
मेरे को पूरा विश्वास था कि भगवान मुझे निराश नहीं करेंगे। जैसे ही स्कूल पहुंचा तो देखा कि मैडम तो चंगी भली है। अपनी अन्य टीचरों के साथ हंस रही थी। हे भगवान चलो कोई बात नहीं वह स्कूल आ गई तो आ गई आज सबक न पूछे और कापियां चैक न करे।
कक्षा में पहुंचते ही उसने कहा सारे बच्चे जिन्होंने काम किया है अपनी कापियां जमा करवाएं और बारी-बारी प्रश्नों का उत्तर दें। जिन्होंने काम नहीं किया या याद नहीं किया वे खड़े हो जाएं। मैं खड़ा हो गया, बस मैडम ने जैसे ही डंडा निकाला मेरे तो प्राण ही सूख गए। मैं थर-थर कांपना शुरु हो गया। मैंने मन ही मन मंत्रों का जाप करना शुरु कर दिया। मेरा आठवां नम्बर था मार खाने का। वह 6-6 डंडे हाथों पर मारती और आगेे आती गई। मैं तेजी से मंत्र जाप करता रहा। मेरे पास वाले छात्र को मारा तो वह रोने लगा ।
अचानक वह रुकी व मेरे को छोड़कर आगे बढ़ गई। बाकी बच्चों ने शोर मचा दिया मैडम इसे सजा नहीं मिली आपने इसे नहीं मारा।
मैडम ने जोर देकर कहा अभी तो मैंने इसे मारा है। मेरी तरफ उसने देखा और कहा मारा है न मैं कुछ नहीं बोला। आवाजें हल्की हो गईं और फिर बंद। मैडम आगे निकल चुकी थी। मुझे नहीं पता मैं कैसे बच गया,वह मुझे मारना कैसे भूल गई, क्या यह मेरे मंत्रों का असर था कि किसी को भुलाया जा सकता है।
मेरे लिए तो जान बची तो लाखों पाए। आज भी मैं समझता हूं कि शायद यह मंत्रों की ही शक्ति थी या मेरी श्रद्धा या मैडम ने मेरी मनोदशा पर तरस खाया लेकिन तरस वाली बात को मैं सिरे से रिजैक्ट करता हूं क्योंकि पढ़ाई के नाम पर मैडम कोई लिहाज नहीं करती थी।
आज इस घटना को 40 से अधिक साल हो गए हैं, मैं मैडम का चेहरा व नाम भूल चुका हूं लेकिन यह घटना मुझे आज भी याद है। मैं अपने बचपने में मैडम के बारे में गलत सोचता था कि उसका एक्सीडैंट हो जाए, या बीमार हो जाए, उसका भी मुझे खेद है। वह तो हमारे भले के लिए ही हमें सुधार रही थी।
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