क्रूरता की हद व दीमागी पागलपन की उपज है करोना वायरस
क्रूरता की हद व दीमागी पागलपन की उपज है करोना वायरस
मानवीय दिमाग को कैसा भी बनाया जा सकता है। क्रूरता से भरा हुआ या करुणामयी। जब एक बच्चा चींटियों को मारता है, या किसी जीव को अपने मनोरंजन के लिए कष्ट पहुंचाता है तो माता-पिता उसके इस कृत्य पर हंसते हैं तो वे उसके क्रूरतम व्यवहार को पनपने में मदद कर रहे होते हैं। यदि वे उसे उसी समय डांटते हैं और समझाते हैं कि उसे भी दर्द होता है जैसे तुमको, इसलिए उसे प्यार करना सीखो मारना नहीं। आपने देखा होगा कि कसाई को जीव की हत्या करने में कोई दुख नहीं होता क्योंकि उसकी दिमागी संवेदनाएं मर चुकी होती हैं। उसके लिए ये किसी वस्तु को काटने के समान ही होता है। जीवों की हत्या करने, उनके रक्त को नाली में बहता देख बच्चे की संवेदनाएं बचपन में ही मर जाती हैं। उसे मात्र यह एक ऐसा कृत्य ही लगने लगता है जैसे कि बस काट दिया।
चीन में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। अत्याचार का सिलसिला कहीं भी रुकता नहीं। जीवों को जिस तरह से चीनी अपना भोजन बनाते हैं, उन्हें तड़फता देख कर उनके मन में कोई संवेदना, दया नहीं उभरती। अब वे इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि अब उन्हें इन जीवों को मारने व खाने में कोई कौतुहल नहीं मिलता और वे हर जीव को मार कर खा चुके होते हैं। अब एक ही खेल को बार बार देखकर कौतुहल, क्रूरता का खेल इतना चरम हो चुका होता है कि कुछ ऐसा करने का मन करता है कि लोग सामने मरते दिखें। सड़क पर , गाड़ी में , अस्पताल में लोग चीन में करोना वायरस से मर रहे हैं। चीन में कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा क्योंकि यह मात्र एक खेल हैं जो जीवों की हत्याओं से शुरु हुआ और मानवों तक पहुंच गया। चीन ने अपनी जीवन शैली सुधारने की बात नहीं की, लोगों को शाकाहार होने को नहीं कहा, जीवों की हत्याएं रोकने को भी नहीं कहा क्योंकि वह ऐसा नहीं कर सकता। अब क्रूरता की हद एक पागलपन की तरफ बढ़ चुकी है। दुनिया में करोना माहामारी से लोग मर रहे हैं लेकिन चीन ने कोई घोषणा नहीं की कि लोगों को कैसे इस वायरस से बचना है। न ही अपने इस कुकृत्य के लिए माफी मांगी। यह एक ऐसा ही पागलपन है जैसे सनकी हमलावरों ने भारत में इंसानों के सिर काट कर मिनारें बनाईं और नारियों को अपने हरम में यौन कुंठा शांत करने के लिए यौन गुलाम बनाया। आज देश दिमागी तौर पर बीमार भी हो चुके हैं। कारणों को जानों स्वस्थय जीवन शैली अपनाओ, जीवों पर दया करो।
मानवीय दिमाग को कैसा भी बनाया जा सकता है। क्रूरता से भरा हुआ या करुणामयी। जब एक बच्चा चींटियों को मारता है, या किसी जीव को अपने मनोरंजन के लिए कष्ट पहुंचाता है तो माता-पिता उसके इस कृत्य पर हंसते हैं तो वे उसके क्रूरतम व्यवहार को पनपने में मदद कर रहे होते हैं। यदि वे उसे उसी समय डांटते हैं और समझाते हैं कि उसे भी दर्द होता है जैसे तुमको, इसलिए उसे प्यार करना सीखो मारना नहीं। आपने देखा होगा कि कसाई को जीव की हत्या करने में कोई दुख नहीं होता क्योंकि उसकी दिमागी संवेदनाएं मर चुकी होती हैं। उसके लिए ये किसी वस्तु को काटने के समान ही होता है। जीवों की हत्या करने, उनके रक्त को नाली में बहता देख बच्चे की संवेदनाएं बचपन में ही मर जाती हैं। उसे मात्र यह एक ऐसा कृत्य ही लगने लगता है जैसे कि बस काट दिया।
चीन में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। अत्याचार का सिलसिला कहीं भी रुकता नहीं। जीवों को जिस तरह से चीनी अपना भोजन बनाते हैं, उन्हें तड़फता देख कर उनके मन में कोई संवेदना, दया नहीं उभरती। अब वे इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि अब उन्हें इन जीवों को मारने व खाने में कोई कौतुहल नहीं मिलता और वे हर जीव को मार कर खा चुके होते हैं। अब एक ही खेल को बार बार देखकर कौतुहल, क्रूरता का खेल इतना चरम हो चुका होता है कि कुछ ऐसा करने का मन करता है कि लोग सामने मरते दिखें। सड़क पर , गाड़ी में , अस्पताल में लोग चीन में करोना वायरस से मर रहे हैं। चीन में कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा क्योंकि यह मात्र एक खेल हैं जो जीवों की हत्याओं से शुरु हुआ और मानवों तक पहुंच गया। चीन ने अपनी जीवन शैली सुधारने की बात नहीं की, लोगों को शाकाहार होने को नहीं कहा, जीवों की हत्याएं रोकने को भी नहीं कहा क्योंकि वह ऐसा नहीं कर सकता। अब क्रूरता की हद एक पागलपन की तरफ बढ़ चुकी है। दुनिया में करोना माहामारी से लोग मर रहे हैं लेकिन चीन ने कोई घोषणा नहीं की कि लोगों को कैसे इस वायरस से बचना है। न ही अपने इस कुकृत्य के लिए माफी मांगी। यह एक ऐसा ही पागलपन है जैसे सनकी हमलावरों ने भारत में इंसानों के सिर काट कर मिनारें बनाईं और नारियों को अपने हरम में यौन कुंठा शांत करने के लिए यौन गुलाम बनाया। आज देश दिमागी तौर पर बीमार भी हो चुके हैं। कारणों को जानों स्वस्थय जीवन शैली अपनाओ, जीवों पर दया करो।
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