पलायनवादी विचारधारा और इसका मनोविज्ञान क्या है?
पलायनवादी विचारधारा और इसका मनोविज्ञान क्या है
किसी भी मूल समस्या पर गम्भीरता से विचार न करना, मूल समस्या को सिरे से नकार देना, अपने कायरता पूर्ण लोजिक से मूल समस्या की जगह कहीं और ध्यान भटकाना आदि कहा जा सकता है। किसी समस्या का का प्रोफैशनल तरीके से हल निकालने की बजाए उसपर चर्चा ही न करना एक तरह का पलायनवाद ही है। यह ऐसा ही है जब एक डाक्टर के पास यदि कोई मरीज जाता, अपनी बीमारी का उपचार करने के लिए जाता है तो वह उसे कहे कि तीन बार लम्बी सांसें लो और फील गुड करो।या आपको दिल की बीमारी है और डाक्टर आपको कब्ज की दवाई दे देता है। किसी को दिल का रोग है तो उसे कहो कि ये लो थोड़ा गुड़ खा लो. मंत्र जाप करो, थोड़ी घर में आग लगाओ, सारी बीमारियां दूर हो जाएंगी।
किसी रोग के बारे में चर्चा करना बेकार है, जो होना है वह होगा,बस ईश्वर का नाम लेते रहो। पलायनवानदी मानसिकता की घातकता उस समय सामने आई जब 90 के दशक में जब वीपीसिंह की सरकार थी तो मंडल कमिशन की रिपोर्ट के विरोध में देश भर में 350 से अधिक छात्रों ने आत्मदाय कर लिया। इन छात्रों को लगा था कि आत्मदाह करने से उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा।
उन्होंने अपनी समस्या के समाधान के लिए किसी प्रोफैशनल से मदद लेना ठीक नहीं समझा। कोई बड़ी समस्या सामने आए तो आत्मदाय या आत्महत्या कर लो बस समस्या सुलझ गई। दुनिया में ऐसी घातक पलायनवादी सोच की उदाहरण शायद ही कहीं मिलेगी। लगातार गुलाम रहने के बाद भी ऐसी सोच समाज की बन जाती है। किसी समस्या पर चर्चा करने से इंसान अंदर से अपनी कायरता को छिपा रहा होता है या मुझे क्या लेना, ये भीड़ मेरे घर तो न आएगी।
सबकुछ माया है, सब खत्म हो जाना है इसलिए चिंता न करो सब ईश्वर पर छोड़ दो कहने वाले जब बीमार पड़ते हैं तो अपने लिए शहर का टॉप का डाक्टर ढूंडते हैं, कोई सामान खरीदना हो तो 10 जगहों पर मोल भाव करते हैं लेकिन जैसे ही किसी मूल समस्या पर चर्चा करने की बात हो तो विषय महंगे मोबाइल फोन, तथाकथित अच्छे विचारों आदि की तरफ ले जाने की कोशिश करते हैं।
महाभारत में भगवान कृष्ण ने अर्जुन की इसी पलायनवादी सोच को उखाड़ फैंका था। जब भीड़ एक व्यक्ति के घर को घेर लेती है तो वह अपने महंगे मोबाइल फोन से जिस किसी को भी फोन लगाता है वह कुछ नहीं कर पाता। ऐसी घटनाएं लगातार घटित होती हैं जहां सरेआम एक आम इंसान को गोली मार दी जाती है। किसी को पता नहीं चलता कि गोली एक बंदूक से चली है और बंदूक एक अवैध हथियार है।
पुलिस व प्रशासन हत्या को रोक नहीं पाता, क्या कोई इसका हल है कि हत्या रोकी जाए। हत्या होने के बाद कुछ दिन शोर मचता है और फिर एक हत्या हो जाती है। जब सभ्य समाज अपनी रक्षा की जिम्मेदारी आप नहीं उठाता तब तक ऐसा होता रहेगा और पुलिस हत्या के बाद ही घटनास्थल पर पहुंचेगी।
अमेरिका पर हुए 9-11 हमले के बाद सीआईए ने इसकी मूल समस्या पर गहनता से विचार करना शुरु किया लेकिन भारत में ऐसी गम्भीर चर्चाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यह ऐसा ही होता है जैसे किसी समस्या के समाने आने पर अपनी आंखें कबूतर की तरह बंद कर लेना। आज भारतीय हिन्दू समाज ऐसी पलायनवादी सोच का शिकार बनकर रह गया है। सरकार, समाज के नेता, धार्मिक लोग भी इसपर चालाकी से पर्दा डालते हैं। आज सबसे ज्यादा जरूरी है समस्या को पहचानना, उसे नजरअंदाज न करना, उसपर प्रोफैशनल तरीके से एकत्र होकर चर्चा करना और इसका हल निकालना।
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