जीव व मानव संबंधों को सनातन हिन्दू नजरिए से समझाइए

जीव व मानव संबंधों को सनातन हिन्दू नजरिए से समझाइए

मांसाहारी जीव एक दूसरे को खाकर अपना पेट भरते हैं। प्रकृति ने उनकी शारीरिक संरचना ही ऐसी बनाई है। एक शेर को जब भूख लगती है तो वह शिकार को निकलता है। जंगल में उसे उसका शिकार मिल जाता है तो वह उसे मारकर आप भी खाता है और अपने परिवार को भी खिलाता है। बचा हुआ मांस अन्य जीव खा जाते हैं। इस प्रकार मांसाहारी प्राणियों का खाने का व्यवहार चलता रहता है। 

मानवीय संरचना वैसे तो शाकाहारी जीवों जैसी ही है लेकिन यह मांसाहार भी करता है। लेकिन यदि सारी दुनिया के लोग बकरियों को मारकर खाना शुरु कर देंगे तो सारी दुनिया की बकरियां एक ही माह में खत्म हो जाएंगी। ऐसा व्यवहार यदि मानव करता है तो धरती पर जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और इकोसिस्टम एकदम से बिगड़ जाएगा। 
मानवीय गलतियों से पहले भी जीवों की कई प्रजातियां इस धरती से खत्म हो चुकी हैं और कई प्रजातियां खत्म होने की कगार पर हैं। मानव अब समझने लगा है कि बेतहाशा जानवरों की हत्याएं करने से उसका अपना जीवन भी खतरे में पड़ता जा रहा है।
मानवों व जीवों के संबधों के बारे में हमारे ऋषि मुनि अच्छी तरह से जानते थे इसीलिए मानवों व जीवों में संवाद का सिलसिला शुरु किया गया। कोई भी ग्रंथ हो उसमें जीवों को नायकों की गतिविधियों से जोड़ा गया है और संवाद भी किए गए हैं। जैसे-जैसे मानव सभ्य होता गया व जीवों पर दया करना भी सीखता गया। महाभारत के प्रसंग में महाराज पांडू एक हिरण व हिरणी के जोड़े को मार देता है तो ये जोड़े ऋषि व उसकी पत्नी के रूप में उनसे संवाद करते हैं और पांडू के श्राप देते हैं। 
इसी प्रकार एक बार गलती से एक सांप को कंटीली झाड़ियों में फैंकने के पाप का फल भीष्म पिताहमाह को तीरों की शैय्या पर दर्द झेल कर चुकाना पड़ा। पंचतंत्र की कहानियां मानव व जीवों में संवाद ही हैं। यहीं बस नहीं जीव को नायक भी बनाया गया है। गणेश जी हाथी के रूप में नायक, भगवान हमारे सामने हैं। इस प्रकार की सैंकड़ों उदाहरणें हैं। इस प्रकार मानव को शाकाहार की तरफ लाया गया। जब जीवों के साथ मानव संवाद करने लगेगा जीव हत्या कम होती जाएगी। 

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