स्वतंत्र विचारधारा क्या होती है, यह कैसे उपजती है
स्वतंत्र विचारधारा क्या होती है, यह कैसे उपजती है
भारतीय धार्मिक परम्पराअों में स्वतंत्र विचारधारा का महत्वपूर्ण स्थान है। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब अर्जनु युद्ध करने से इंकार कर देता है तो भगवान उसे उसका धर्म बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए। फिर भी अर्जुन के मन में संशय रहते हैं अौर वह बार-बार भगवान से प्रश्न करता है। उसके प्रश्नों के उत्तर मिलने के बाद ही वह युद्ध करने के लिए तैयार होता है। शिष्य अपने गुरु से अपनी शंकाएं दूर करवाता है। भगवान उसे चुप रहने के लिए नहीं कहते उसके हक प्रश्न का बेबाकी से उत्तर देते हैं। अर्जुन पर किसी दूसरी विचारधारा का प्रभाव नहीं था,वह तो अपने विरोध में खड़े अपने सगे-संबंधियों को देखकर मोहित हो गया था।
भगवान बुद्ध को जब अात्मज्ञान हुअा तो उन्होंने बेबाकी से उसके बारे में बताना शुरु किया। उनकी विचारधारा अागम, वैदिक व ईश्वरवाद के विरोध में थी लेकिन भारतीयों ने उनकी विचारधारा को अादर दिया। जिस गांव में भी तथागत जाते उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। कहीं कोई उनपर हमला करने का प्रयास नहीं होता। बुद्ध की नास्तिकता को भी वही अादर मिलता जो वैदिक धर्मियों को मिलता था। वहीं इससे हजारों साल पहले महावीर जैन को भी मिला। स्वतंत्र सोच का हमेशा से भारत में सम्मान रहा है।
बुद्ध व महावीर के अहिंसा के सिद्धांत को बौद्धिक तौर पर तो माना लेकिन उनकी विचारधारा व्यवहारिक तौर पर अपनाई नहीं जा सकती थी। इस्मामिक अाक्रमणों के बाद अहिंसावादी बौद्धों का भारत में खात्मा ही हो गया। अफगानिस्तान की धरती जहां बौद्ध विहार हुअा करते थे अाज हिंसक तालीबानों का कब्जा है। अाज म्यांमार,चीन,जापान, कोरिया, श्रीलंका अादि देशों में बुद्ध धर्म तो है लेकिन व्यवहारिक तौर पर उनकी नीतियों पर कोई देश नहीं चलता। म्यांमार में स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए बौद्दों को अति हिंसक कार्रवाइयां करनी पड़ीं।
इस्लामिक अाक्रमण के बाद भारत कई सालों तक मुगलों का गुलाम रहा। इस दौरन भारत में एक नई तरह की सोच जन्म ले रही थी वो थी इस्लाम से प्रभावित सोच। इस्लाम में दूसरों की संस्कृति, उनकी धार्मिक स्वतंत्रता, उनकी भाषा, पहरावे के लिए कोई जगह नहीं थी। इसलिए धर्मांतरण का एेसा हिंसक
अाक्रमण हुअा कि जहां भी मुगल जीतते वहां वे लोगों को इस्लाम कबूल करवाते। इस प्रकार लाखों मंदिरों को तोड़ दिया गया अौर लाखों लोगों की हत्याएं भी की गईं। इसी दौरान भारतीय धार्मिक परम्पराअों को लेकर एक विचारधारा भी समाज में प्रचलित हो रही थी।
अब भारतीय स्वयं को अरबों की तरह दिखाने का प्रयास करने लगे। उनकी भाषा फारसी व ऊर्दू को पढ़ने लगे क्योंकि ये भाषाएं सरकारी भाषाएं घोषित कर दी गई थीं। पहनावा भी अरबियों की तरह ही पहनना शुरु कर दिया। भारतीय जनमानस के त्यौहारों , देवी-देवताअों, धर्म ग्रंथों का उपहास उड़ाने की एक प्रथा ही चल पड़ी। हमारे संत महापुरुष भी
एक ईश्वरवाद, निराकारवाद अादि के ट्रैप में फंस गए। ये लोग हिन्दुअों के त्यौहारों, उनके धार्मिक क्रिया क्लापों का तो खुलकर विरोध करते लेकिन विदेशी विचारधारा के खिलाफ बोलने की बहुत कम हिम्मत करते। यदि करते तो दमी जुबान में करते। वे एक तरफी स्वतंत्र विचारधारा के बहाव में बहने लगे।लेकिन इन महापुरुषों को फिर भी समाज ने सम्मान दिया। वे हर हिन्दू धार्मिक परम्परा का का तो खुलकर विरोध करते लेकिन इस्लाम के खिलाफ बहुत कम ही बोलते थे। जो इस्लाम के खिलाफ बोलने का प्रयास करते उनको ईशनिंदा का अारोप लगाकर जान से मार दिया जाता।
यह बिल्कुल एेसा ही है जैसा अाज के लोग हर बात में अंग्रेजों की नकल करते हैं। उनकी विचारधारा,भाषा व पहनावे को पहन कर उनके जैसा दिखना चाहते हैं। अाज सिख, हिन्दू व मुसलमान अापको कोट पैंट टाई में पहने अंग्रेजी हांकते तो नजर अा जाएंगे लेेकिन इन्हीं लोगों को कहा जाए कि प्रदेश का परिधान पहना जा तो वे कभी नहीं पहनेंगे। कुछ लोग तो धोती कुर्ता, कुर्ता पायजामा अादि परिधानों को पहनना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
ये वही लोग हैं जो जेएनयू की टुकड़ा गैंग की तरह हैं जो स्वतंत्र सोच की पैरवी एकतरफा करते हैं अौर सिर्फ हिन्दू धर्म के खिलाफ ही इनकी स्वतंत्र सोच उजागर होती है। एेसा ही वामपंथियों के प्रभाव में
अाए भारतीय अाज कर रहे हैं। अाज भी समाज में कई तरह विदेशों से प्रायोजित विचारधाराएं पनपाई जा रही हैं। इन विचारधाराअों का एक-दूसरे के खिलाफ नफरती प्रचार में खुलकर प्रयोग किया जा रहा है। कई दलितवादी, मूलवादी अादि विचारधाराअों का प्रभाव बढ़ रहा है जो खुलकर दूसरे समाज के खिलाफ नफरती एजैंडे का प्रयोग करती हैं। अब इनको अाज की समस्याअों के हल निकालने की कोई बात पूछें तो ये हजारों साल पहले लिखी गई किताबों में लिखी बातों को सारा दोष देते हैं।
वर्तमान परिवेश में जहां सीरिया, यमन, अफ्रीका, नाईजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान अादि देशों में लोग एक दूसरे का धर्म के नाम पर गला काट रहे हैं, सुसाइड बम फोड़ कर हर रोज निर्दोष लोगों की हत्याएं कर रहे हैं, बेरोजगारी व गरीबी का बोलबाला है तो ये लोग किसी दूसरे समाज या बिरादरी पर इसका दोष मढ़ने में एक मिनट नहीं लगाते। नफरत चाहे कुलीन वर्ग के लोग करें या पिछड़े वर्ग के यह किसी भी समाज के लिए बहुत ही घातक है अौर एेसा करने से किसी का मोहरा बनकर राजनितिक रोटियां तो सेंकी जा सकती हैं लेकिन किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता। जब अाप किसी की हत्या करने में कोई संकोच नहीं करते अौर अपने लिए जन्नत का ख्वाब पालते हो तो अापके दिमाग में नफरती बीज को निकालना बहुत मुश्किल है।
भारतीय धार्मिक परम्पराअों में स्वतंत्र विचारधारा का महत्वपूर्ण स्थान है। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब अर्जनु युद्ध करने से इंकार कर देता है तो भगवान उसे उसका धर्म बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए। फिर भी अर्जुन के मन में संशय रहते हैं अौर वह बार-बार भगवान से प्रश्न करता है। उसके प्रश्नों के उत्तर मिलने के बाद ही वह युद्ध करने के लिए तैयार होता है। शिष्य अपने गुरु से अपनी शंकाएं दूर करवाता है। भगवान उसे चुप रहने के लिए नहीं कहते उसके हक प्रश्न का बेबाकी से उत्तर देते हैं। अर्जुन पर किसी दूसरी विचारधारा का प्रभाव नहीं था,वह तो अपने विरोध में खड़े अपने सगे-संबंधियों को देखकर मोहित हो गया था।
भगवान बुद्ध को जब अात्मज्ञान हुअा तो उन्होंने बेबाकी से उसके बारे में बताना शुरु किया। उनकी विचारधारा अागम, वैदिक व ईश्वरवाद के विरोध में थी लेकिन भारतीयों ने उनकी विचारधारा को अादर दिया। जिस गांव में भी तथागत जाते उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। कहीं कोई उनपर हमला करने का प्रयास नहीं होता। बुद्ध की नास्तिकता को भी वही अादर मिलता जो वैदिक धर्मियों को मिलता था। वहीं इससे हजारों साल पहले महावीर जैन को भी मिला। स्वतंत्र सोच का हमेशा से भारत में सम्मान रहा है।
बुद्ध व महावीर के अहिंसा के सिद्धांत को बौद्धिक तौर पर तो माना लेकिन उनकी विचारधारा व्यवहारिक तौर पर अपनाई नहीं जा सकती थी। इस्मामिक अाक्रमणों के बाद अहिंसावादी बौद्धों का भारत में खात्मा ही हो गया। अफगानिस्तान की धरती जहां बौद्ध विहार हुअा करते थे अाज हिंसक तालीबानों का कब्जा है। अाज म्यांमार,चीन,जापान, कोरिया, श्रीलंका अादि देशों में बुद्ध धर्म तो है लेकिन व्यवहारिक तौर पर उनकी नीतियों पर कोई देश नहीं चलता। म्यांमार में स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए बौद्दों को अति हिंसक कार्रवाइयां करनी पड़ीं।
इस्लामिक अाक्रमण के बाद भारत कई सालों तक मुगलों का गुलाम रहा। इस दौरन भारत में एक नई तरह की सोच जन्म ले रही थी वो थी इस्लाम से प्रभावित सोच। इस्लाम में दूसरों की संस्कृति, उनकी धार्मिक स्वतंत्रता, उनकी भाषा, पहरावे के लिए कोई जगह नहीं थी। इसलिए धर्मांतरण का एेसा हिंसक
अाक्रमण हुअा कि जहां भी मुगल जीतते वहां वे लोगों को इस्लाम कबूल करवाते। इस प्रकार लाखों मंदिरों को तोड़ दिया गया अौर लाखों लोगों की हत्याएं भी की गईं। इसी दौरान भारतीय धार्मिक परम्पराअों को लेकर एक विचारधारा भी समाज में प्रचलित हो रही थी।
अब भारतीय स्वयं को अरबों की तरह दिखाने का प्रयास करने लगे। उनकी भाषा फारसी व ऊर्दू को पढ़ने लगे क्योंकि ये भाषाएं सरकारी भाषाएं घोषित कर दी गई थीं। पहनावा भी अरबियों की तरह ही पहनना शुरु कर दिया। भारतीय जनमानस के त्यौहारों , देवी-देवताअों, धर्म ग्रंथों का उपहास उड़ाने की एक प्रथा ही चल पड़ी। हमारे संत महापुरुष भी
एक ईश्वरवाद, निराकारवाद अादि के ट्रैप में फंस गए। ये लोग हिन्दुअों के त्यौहारों, उनके धार्मिक क्रिया क्लापों का तो खुलकर विरोध करते लेकिन विदेशी विचारधारा के खिलाफ बोलने की बहुत कम हिम्मत करते। यदि करते तो दमी जुबान में करते। वे एक तरफी स्वतंत्र विचारधारा के बहाव में बहने लगे।लेकिन इन महापुरुषों को फिर भी समाज ने सम्मान दिया। वे हर हिन्दू धार्मिक परम्परा का का तो खुलकर विरोध करते लेकिन इस्लाम के खिलाफ बहुत कम ही बोलते थे। जो इस्लाम के खिलाफ बोलने का प्रयास करते उनको ईशनिंदा का अारोप लगाकर जान से मार दिया जाता।
यह बिल्कुल एेसा ही है जैसा अाज के लोग हर बात में अंग्रेजों की नकल करते हैं। उनकी विचारधारा,भाषा व पहनावे को पहन कर उनके जैसा दिखना चाहते हैं। अाज सिख, हिन्दू व मुसलमान अापको कोट पैंट टाई में पहने अंग्रेजी हांकते तो नजर अा जाएंगे लेेकिन इन्हीं लोगों को कहा जाए कि प्रदेश का परिधान पहना जा तो वे कभी नहीं पहनेंगे। कुछ लोग तो धोती कुर्ता, कुर्ता पायजामा अादि परिधानों को पहनना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
ये वही लोग हैं जो जेएनयू की टुकड़ा गैंग की तरह हैं जो स्वतंत्र सोच की पैरवी एकतरफा करते हैं अौर सिर्फ हिन्दू धर्म के खिलाफ ही इनकी स्वतंत्र सोच उजागर होती है। एेसा ही वामपंथियों के प्रभाव में
अाए भारतीय अाज कर रहे हैं। अाज भी समाज में कई तरह विदेशों से प्रायोजित विचारधाराएं पनपाई जा रही हैं। इन विचारधाराअों का एक-दूसरे के खिलाफ नफरती प्रचार में खुलकर प्रयोग किया जा रहा है। कई दलितवादी, मूलवादी अादि विचारधाराअों का प्रभाव बढ़ रहा है जो खुलकर दूसरे समाज के खिलाफ नफरती एजैंडे का प्रयोग करती हैं। अब इनको अाज की समस्याअों के हल निकालने की कोई बात पूछें तो ये हजारों साल पहले लिखी गई किताबों में लिखी बातों को सारा दोष देते हैं।
वर्तमान परिवेश में जहां सीरिया, यमन, अफ्रीका, नाईजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान अादि देशों में लोग एक दूसरे का धर्म के नाम पर गला काट रहे हैं, सुसाइड बम फोड़ कर हर रोज निर्दोष लोगों की हत्याएं कर रहे हैं, बेरोजगारी व गरीबी का बोलबाला है तो ये लोग किसी दूसरे समाज या बिरादरी पर इसका दोष मढ़ने में एक मिनट नहीं लगाते। नफरत चाहे कुलीन वर्ग के लोग करें या पिछड़े वर्ग के यह किसी भी समाज के लिए बहुत ही घातक है अौर एेसा करने से किसी का मोहरा बनकर राजनितिक रोटियां तो सेंकी जा सकती हैं लेकिन किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता। जब अाप किसी की हत्या करने में कोई संकोच नहीं करते अौर अपने लिए जन्नत का ख्वाब पालते हो तो अापके दिमाग में नफरती बीज को निकालना बहुत मुश्किल है।
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