उत्तराखंड की मासूम सी लगने वाली इस लड़की ने इसरो में एेसा क्या किया कि...
उत्तराखंड की मासूम सी लगने वाली इस लड़की ने इसरो में एेसा क्या किया कि...
देवभूमि उत्तराखंड के बच्चे किसी से भी कम नहीं हैं। अपनी मेहनत के बल पर वे दुनिया के लोगों को अचम्भे में डालने का काम करते रहते हैं। उत्तराखंड के काशीपुर में रहने वाले लोगों को भी नहीं पता होगा कि इस छोटे से शहर में पैदा हुई इस मासूम सी लड़की ने इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया है कि दुनिया के लोगों की अांखें चुंधिया सी गई हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं सुश्री तन्मया तिवारी की।
बचपन से ही चुपचाप रहने वाली सांवली सलोनी सी बच्ची को देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि यही बच्ची इसरो में वैज्ञानिकों की प्रथम कतार में पहुंच जाएगी। इसरो से अंतरिक्ष में सेटेलाइट छोड़े जाते हैं। भारत के वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट छोड़ने का रिकार्ड बना लिया है।
अब दुनिया भारत को अनदेखा नहीं कर सकती। डीडी नेशनल पर पिछले सप्ताह डब लाइव कार्यक्रम चल रहा था तो उत्तराखंड के लोगों को पता भी नहीं होगा कि जो सबसे कम उम्र लगभग 25 साल की लड़की कम्प्युटर के सामने बैठी सेटेलाइट पर नजर रक रही है वह कोई अौर नहीं उत्तराखंड की बेटी तन्मया तिवारी है। शायद उत्तराखंड सरकार, मीडिया को इस बात की अभी तक भनक भी नहीं लगी होगी कि इस नन्ही सी बेटी ने कैसे भारत व उत्तराखंड का नाम दुनिया में रौशन किया है।
अपनी प्राथमिक शिक्षा उसने काशीपुर से प्राप्त की। पिता जी सुरेश तिवारी जी का बैंक में मैनेजर होने के कारण स्थानांतरण होता रहता था अौर इस प्रकार तन्मया व उनकी मां मिनाक्षी तिवारी व भाई सुमित तिवारी भी पिता के साथ ही हो लेते थे। रुद्रपुर, पंतनगर, रामनगर, हल्द्वानी अादि क्षेत्रों में कार्य करते हुए पिता जी ने तन्मया की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान रखा। मैट्रिक के बाद प्लस-टू करने के बा तन्मया को मुम्बई में एमबीए की पढ़ाई के लिए वहां की टॉप युनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। उसकी पढ़ाई के लिए पिता जी को बैंक से 18 लाख रुपए का लोन लेना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी बेटी की लगन को देखकर सारा पैसा पढ़ाई में लगाया। बेटी ने भी युनिवर्सिटी में टॉप किया। पढ़ाई करने के दौरान ही उसकी जॉब पैप्सीको में लग गई।
विश्व में टॉप की कम्पनी पैप्सीको में नौकरी लगना अासान काम नहीं था। सैंकड़ों बच्चों में से तन्मया को ही चुना गया। अभी वह पैप्सीको में ही नौकरी कर रही थी कि सिंगापुर की टॉप एविएशन कम्पनी से उसे अॉफर अा गया। उसने उस कम्पनी को ज्वाईन कर लिया। बड़े सैलरी पैकेज में अभी व काम कर ही रही थी कि इसरो से उसे जॉब का अॉफर अा गया अौर फिर क्या था कि इस उत्तराखंड की बेटी ने इसरो को ज्वाइन कर लिया। इसके बाद तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसरो में एविएशन एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर काम करना अपने अाप में गौरव का विषय है। डीडीवन पर जब सैटेलाइट प्रक्षेपण का काम हो रहा था तो कम्प्यूटर पर सेटेलाइट की गतिविधियों पर नजर रख रही तन्मया देश का नाम दुनिया में ऊंचा कर रही थी।
तन्मया के पिता एसबीअाई से अभी सेवानिवृत हुए हैं अौर काशीपुर में रह रहे हैं। भाई सुमित तिवारी बैंक अधिकारी हैं। उनकी सफलता की कहानी भी बहुत ही रोचक है। पेशे से कृषि वैज्ञानिक सुमिक कैसे बैंक अधिकारी बन गए,यह भी एक रोच वृतांत है , इसे फिर कभी बताएंगे पहले बेटी तन्मया को हम अपना
सैल्यूट भेजते हैं। हमें अाप पर गर्व हैं तन्मया ।
देवभूमि उत्तराखंड के बच्चे किसी से भी कम नहीं हैं। अपनी मेहनत के बल पर वे दुनिया के लोगों को अचम्भे में डालने का काम करते रहते हैं। उत्तराखंड के काशीपुर में रहने वाले लोगों को भी नहीं पता होगा कि इस छोटे से शहर में पैदा हुई इस मासूम सी लड़की ने इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया है कि दुनिया के लोगों की अांखें चुंधिया सी गई हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं सुश्री तन्मया तिवारी की।
बचपन से ही चुपचाप रहने वाली सांवली सलोनी सी बच्ची को देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि यही बच्ची इसरो में वैज्ञानिकों की प्रथम कतार में पहुंच जाएगी। इसरो से अंतरिक्ष में सेटेलाइट छोड़े जाते हैं। भारत के वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट छोड़ने का रिकार्ड बना लिया है।
अब दुनिया भारत को अनदेखा नहीं कर सकती। डीडी नेशनल पर पिछले सप्ताह डब लाइव कार्यक्रम चल रहा था तो उत्तराखंड के लोगों को पता भी नहीं होगा कि जो सबसे कम उम्र लगभग 25 साल की लड़की कम्प्युटर के सामने बैठी सेटेलाइट पर नजर रक रही है वह कोई अौर नहीं उत्तराखंड की बेटी तन्मया तिवारी है। शायद उत्तराखंड सरकार, मीडिया को इस बात की अभी तक भनक भी नहीं लगी होगी कि इस नन्ही सी बेटी ने कैसे भारत व उत्तराखंड का नाम दुनिया में रौशन किया है।
अपनी प्राथमिक शिक्षा उसने काशीपुर से प्राप्त की। पिता जी सुरेश तिवारी जी का बैंक में मैनेजर होने के कारण स्थानांतरण होता रहता था अौर इस प्रकार तन्मया व उनकी मां मिनाक्षी तिवारी व भाई सुमित तिवारी भी पिता के साथ ही हो लेते थे। रुद्रपुर, पंतनगर, रामनगर, हल्द्वानी अादि क्षेत्रों में कार्य करते हुए पिता जी ने तन्मया की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान रखा। मैट्रिक के बाद प्लस-टू करने के बा तन्मया को मुम्बई में एमबीए की पढ़ाई के लिए वहां की टॉप युनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। उसकी पढ़ाई के लिए पिता जी को बैंक से 18 लाख रुपए का लोन लेना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी बेटी की लगन को देखकर सारा पैसा पढ़ाई में लगाया। बेटी ने भी युनिवर्सिटी में टॉप किया। पढ़ाई करने के दौरान ही उसकी जॉब पैप्सीको में लग गई।
विश्व में टॉप की कम्पनी पैप्सीको में नौकरी लगना अासान काम नहीं था। सैंकड़ों बच्चों में से तन्मया को ही चुना गया। अभी वह पैप्सीको में ही नौकरी कर रही थी कि सिंगापुर की टॉप एविएशन कम्पनी से उसे अॉफर अा गया। उसने उस कम्पनी को ज्वाईन कर लिया। बड़े सैलरी पैकेज में अभी व काम कर ही रही थी कि इसरो से उसे जॉब का अॉफर अा गया अौर फिर क्या था कि इस उत्तराखंड की बेटी ने इसरो को ज्वाइन कर लिया। इसके बाद तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसरो में एविएशन एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर काम करना अपने अाप में गौरव का विषय है। डीडीवन पर जब सैटेलाइट प्रक्षेपण का काम हो रहा था तो कम्प्यूटर पर सेटेलाइट की गतिविधियों पर नजर रख रही तन्मया देश का नाम दुनिया में ऊंचा कर रही थी।
तन्मया के पिता एसबीअाई से अभी सेवानिवृत हुए हैं अौर काशीपुर में रह रहे हैं। भाई सुमित तिवारी बैंक अधिकारी हैं। उनकी सफलता की कहानी भी बहुत ही रोचक है। पेशे से कृषि वैज्ञानिक सुमिक कैसे बैंक अधिकारी बन गए,यह भी एक रोच वृतांत है , इसे फिर कभी बताएंगे पहले बेटी तन्मया को हम अपना
सैल्यूट भेजते हैं। हमें अाप पर गर्व हैं तन्मया ।
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