vastu dosh kaise door karen
घर बनवाते समय जाने अनजाने ऐसी गलती हो जाती है जिससे घर में वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा कई बार घर की साज सजावट और घर में रखे सामानों से भी वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है। वास्तु दोष का असर कम करने के लिए वास्तु में कई उपाय बताए गए हैं, इनमे से एक है वास्तु मंत्र। वास्तु दोष दूर करने के लिए इन 8 मंत्रों की भी मदद ली जा सकती है।
उत्तर दिशा मंत्र
उत्तर दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाली महिलाओं को कष्ट होता है। साथ ही आर्थिक परेशानियों और धन आदि के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ऊँ बुधाय नमः या ऊँ कुबेराय नमःका जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।
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वायव्य दिशा मंत्र (उत्तर-पश्चिम)
वायव्य दिशा के ग्रह स्वामी चन्द्रमा हैं और देवता वायु हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ऊँ चन्द्रमसे नमः का जप लाभकारी होता है। वायु देव के मंत्र ऊँ वायवै नमः का जप करने से शारीरिक परेशानियों से भी बचा जा सकता है।
दक्षिण दिशा मंत्र
दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ऊँ अं अंगारकाय नमः मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। ऊँ यमाय नमः मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है। साथ ही यम मंत्र के पाठ से मनुष्य को अपने जाने-अनजाने किए गए पापों से भी छुटकारा मिलता है।
आग्नेय दिशा मंत्र (दक्षिण-पूर्व)
आग्नेय दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुभ फल के लिए रोज भगवान शुक्र के मंत्र ऊँ शुं शुक्राय नमःका पाठ करें।
साथ ही व्यपार में सफलता और नौकरी में तरक्की पाने के लिए अग्नि देव के मंत्र ऊँ अग्नेय नमः का पाठ करें। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष न बनाएं।
पूर्व दिशा मंत्र
पूर्व दिशा के स्वामी भगवान सूर्य को माना जाता हैं और इस दिशा के देवता भगवान इन्द्र को कहा जाता हैं। इस दिशा के वास्तु दोष दूर करने के लिए रोज मंत्र ‘ ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः का जप करें। इस मंत्र के जप से मनुष्य को मान-सम्मान एवं यश की प्राप्ति होती है। इन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ऊँ इन्द्राय नमः का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।
ईशान दिशा मंत्र (पूर्व-उत्तर)
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं और इस दिशा के देवता भगवान शिव को माना जाता हैं। इस दिशा के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए नियमित रूप सेऊँ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का जप करें। साथ ही संतान और सुखी परिवार के लिए ऊँ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
पश्चिम दिशा मंत्र
पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि और देवता वरूण हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नमः का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। साथ ही जाने-अनजाने किए गए बुरे कर्मों के परिणामों से भी बचा जा सकता है।
नैऋत्य दिशा मंत्र (दक्षिण-पश्चिम)
नैऋत्य दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं और देवता नैऋत हैं। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ऊँ रां राहवे नमः का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है। भगवान नैऋत के मंत्र ऊँ नैऋताय नमः के जप से भी इस दिशा का वास्तु दोष कम किए जा सकते हैं, साथ ही घर-परिवार के सदस्यों को बीमारियों से भी बचाया जा सकता हैं।
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उत्तर दिशा मंत्र
उत्तर दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाली महिलाओं को कष्ट होता है। साथ ही आर्थिक परेशानियों और धन आदि के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ऊँ बुधाय नमः या ऊँ कुबेराय नमःका जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।
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वायव्य दिशा मंत्र (उत्तर-पश्चिम)
वायव्य दिशा के ग्रह स्वामी चन्द्रमा हैं और देवता वायु हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ऊँ चन्द्रमसे नमः का जप लाभकारी होता है। वायु देव के मंत्र ऊँ वायवै नमः का जप करने से शारीरिक परेशानियों से भी बचा जा सकता है।
दक्षिण दिशा मंत्र
दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ऊँ अं अंगारकाय नमः मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। ऊँ यमाय नमः मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है। साथ ही यम मंत्र के पाठ से मनुष्य को अपने जाने-अनजाने किए गए पापों से भी छुटकारा मिलता है।
आग्नेय दिशा मंत्र (दक्षिण-पूर्व)
आग्नेय दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुभ फल के लिए रोज भगवान शुक्र के मंत्र ऊँ शुं शुक्राय नमःका पाठ करें।
साथ ही व्यपार में सफलता और नौकरी में तरक्की पाने के लिए अग्नि देव के मंत्र ऊँ अग्नेय नमः का पाठ करें। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष न बनाएं।
पूर्व दिशा मंत्र
पूर्व दिशा के स्वामी भगवान सूर्य को माना जाता हैं और इस दिशा के देवता भगवान इन्द्र को कहा जाता हैं। इस दिशा के वास्तु दोष दूर करने के लिए रोज मंत्र ‘ ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः का जप करें। इस मंत्र के जप से मनुष्य को मान-सम्मान एवं यश की प्राप्ति होती है। इन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ऊँ इन्द्राय नमः का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।
ईशान दिशा मंत्र (पूर्व-उत्तर)
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं और इस दिशा के देवता भगवान शिव को माना जाता हैं। इस दिशा के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए नियमित रूप सेऊँ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का जप करें। साथ ही संतान और सुखी परिवार के लिए ऊँ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
पश्चिम दिशा मंत्र
पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि और देवता वरूण हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नमः का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। साथ ही जाने-अनजाने किए गए बुरे कर्मों के परिणामों से भी बचा जा सकता है।
नैऋत्य दिशा मंत्र (दक्षिण-पश्चिम)
नैऋत्य दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं और देवता नैऋत हैं। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ऊँ रां राहवे नमः का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है। भगवान नैऋत के मंत्र ऊँ नैऋताय नमः के जप से भी इस दिशा का वास्तु दोष कम किए जा सकते हैं, साथ ही घर-परिवार के सदस्यों को बीमारियों से भी बचाया जा सकता हैं।
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