क्या हैं भारतीय धार्मिक परम्पराएं व धर्म?

प्राचीन काल से भारत दार्शनिक व धाॢमक मामलों में दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। लोग सत,चित ,आनंद धर्म के मार्ग पर चलकर अनुभवकरते रहे हैं। ऋषि-मुनियों ने परमात्मा का अनुभव किया व   उसे शारीरिक क्रियाओं, ध्वनियों, संगीत के वाद्य यंत्रों, ग्रन्थों मे व्याख्यान किया। उस समय किसी भी मानव
पर कोई ठप्पा नहीं लगाया जाता था। हर कोई अपने-अपने पूर्वजों व धर्म ग्रंथों के माध्यम से ईश्वरका अनुभव कर सकता था। यह धार्मिक परम्परा पर किसी संस्था, राजा व व्यक्ति विशेष का भी एकाधिकार नहीं था। ईश्वर का अनुभव करने का हरेक का अपना-अपना अनुभव था या फिर वह अपने गुरुओं से प्रेरणा लेता था। ईश्वर के अलग-अलग रूपों को माना जाता था.कोई किसी के धार्मिक
www.bhrigupandit.com मामले में दखलअंदाजी नहीं करता। राजा को भी अकिार नहीं था कि वह प्रजा पर अपने धार्मिक निर्णय थोपे। इस परम्परा का विस्तार बिना किसी
आक्रमण के मध्य एशिया, थाईलैंड, कम्बोडिया, फिलीपीन्स, चीन से लेकर जापान तक हुआ। यहां तक कि अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तक भी हुआ। यहां मिली प्राचीन मूॢतयों से यह सिद्ध हो जाता है। इस दौरान कई धार्मिक विचारधाराएं साथ-साथ चलती रहीं। यही भारतीय धार्मिक परम्परा थी।
   फिर समय आया जैन विचारधारा का। लोग इस तरफ आकरषित हुए और धीरे-धीरे ये भारत के कई हिस्सों में फैल गया। कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई कि लोगों ने इसका
हिंसक विरोध किया हो। हिंदू, जैन मंदिर साथ-साथ बने होते थे। यहां तक कि पुजारी भी एक जाति के होते थे। एक तरफ जैन ब्राह्मण व दूसरी तरफ सनातनी। इस समय दौरान पूरे यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका में भी इसी तरह की परम्पराएं थी जो पेगेन कहलाते थे। उस समय जहूदी व ईसाई धर्म पैदा नहीं हुए थे।
  महावीर अपने शिष्यों के साथ अनिश्वरवाद का प्रचार करते जिस गांव में से निक लते उनका स्वागत किया जाता। सनातन ईश्वरवाद विरोधी विचारधारा होनेके बावजूद खुलेआम वे धूमते थे। शाब्दिक विरोध तो होता था लेकिन कहीं भी उनपर या उनके शिष्यों पर हमला नहीं किया गया।
 इसके बहुत बाद लगभग 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध  आत्मबोध के सिद्धांत को लेकर इस धरा पर आए। वह ईश्वर को नहीं मानते थे। लोग उनके साथ जुड़ते गए। जैन धर्म की तरह ही अहिंसा के पक्षधर गौतम बुद्ध ने धर्म का प्रचार खुलेआम किया। अशोक के बुद्ध धर्म को अंगीकार करने के बाद ये चीन,जापा,थाईलैंड आदि क्षेत्रों
में तेजी से फैला। महावीर व गौतम बुद्ध दोनों ही हिन्दू  क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए और अपने-मार्गों को खोजा।
शंकराचार्य के अवतार लेने के बाद उन्होंने सनातन धर्म की फिर अलख जगाई और लोग फिर सनातन धर्म से जुडऩे लगे। उन्होंने मंडल मिश्रा जैसे महान विद्वानों को डिवेट में हराया और उन्हें अपना शिष्य बनाया।
इसके बाद अरब से इस्लामिक हमलावरों ने भारत पर आक्रमण किया। यह भारतीय धाॢमक परम्पराओं के बिलकुल उलट था। भारतीय विचारधार को खत्म करना और अपनी बिचारधारा को यहां के लोगों पर ह तरीके से थोपना। यह हमले भारतीय राजाओं के हमले जैसे नहीं थे। ये हमले लूटपाट व इस्लाम को फैलाने व यहां की संस्कृति को खत्म करने के लिए थे। इन हमलों में किसी भी युद्ध नियम का पालन नहीं किया गया। जहां इनका विरोध हुआ और प्रजा व राजा अंत तक लड़ते रहे वहां धर्मपरिवर्तन बहुत कम हुआ लेकिन जहां राजा हार गए और आत्मसमर्पण कर दिया वहां लोगों का धर्म परिवर्तन भी हुआ। इससे पहले  यहूदी व ईसाई धर्म  भी जो अरब से उठा ने पूरे यूरोप, अफ्रीका  अमेरिका में कत्लोगारत का ऐसा खूनी मंजर रचा कि वहां के पेगेन धर्म को पूरी तरह से खत्म कर दिया। उनके त्यौहारों पर भी कब्जा कर लिया।
अब पेगेन म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं। विचारधारा को लेकर इतनी हिंसा का दौर चला कि इंसानियत भी शर्मशार हो गई। यह हिंसा का दौर आज इब्राहामिक रिलीजिनों में जारी है पता नहीं ये कब थमेगा। एक दूसरे रिलीजन के खिलाफ इतनी नफरत भरी जाती है कि ब्रेनवाश हुए को सारी दुनिया दुश्मन लगनी शुरू हो जाती है।
यह हिंसा तभी रुक सकती है जब हम परस्पर एक दूसरे के धर्म व विश्वास को आदर दें। अर्थात यदि कोई व्यक्ति मूर्ति पूजा नहीं करता, एक ईश्वर को मानता है तो उसे दूसरे व्यक्ति जो मूर्ति पूजक है ,अनेक ईश्वर के रुपों की पूजा करता का सम्मान करना चाहिए। यानि दोनों को एक दूसरे की विचारधारा का पूरा सम्मान करना चाहिए। इस तरह एक दूसरे को म्युचल रिस्पैक्ट देने से समस्याएं हल हो सकती हैं।

  

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