Pushkar Mela 2023 will Start From 20 November | पुष्कर मेला 2023 होगा 20 नवम्बर से शुरू

Image result for pushkar melaPushkar Mela 2023 will start from 20 november | पुष्कर मेला 2023 होगा 20 नवम्बर से शुरू Mon, 20 Nov, 2023 – Tue, 28 Nov, 2023

  • In 2023, the Pushkar Fair will be held from November 20 to 28.
  • In 2022, the Pushkar Fair will be held from November 1 to 8.
  • In 2023, the Pushkar Fair will be held from November 20 to 28.
पुष्कर मेला कब आयोजित होता है ? पुष्कर अजमेर अजमेर रेलवे स्टेशन से लगभग 11 कि.मी. दूर  है।  इस बार यह मेला 2023 होगा 20  नवम्बर से शुरु व 28 नवम्बर को सम्पन्न होगा। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को भारी मेला लगता है। इस मेले में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यहां अरावली पर्वतों से घिरा भगवान ब्रहमा जी का मंदिर है और चारों ओर  से घिरा पवित्र सरोवर में है। जहां पर स्नान करने के लिए भक्त आते हैं। पुष्कर नगरी  एक महान तीर्थनगरी  है। कार्तिक मास में स्नान का महत्व हिंदू मान्यताओं में बहुत ज़्यादा है।
  देश भर से  यहां साधु-संत भी बडी संख्या में आते हैं। मेला कमेटी मेले का सारा प्रबंध करती है। यहां के लोकल लोगों का व सरकार का यह एक फर्ज है कि यहां आने वाले किसी भी भक्त व संत को कोई परेशानी न हो। हर हिन्दू का यह कर्तव्य है कि संतों के रहने के लिए वे स्वयं आगे आएं और  उनका आशीर्वाद लें। मेला स्थल पर सफाई का पूरा ध्यान रखें। इस महान पवित्र नगरी की गरिमा को बनाए रखने के लिए बाहर से आए लोग भी पूरा सहयोग दें। पूर्णिमा पास आते-आते धार्मिक गतिविधियों का ज़ोर हो जाता है।
  श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला भी पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है। पुष्कर मेले के दौरान इस नगरी में आस्था और उल्लास का अनोखा संगम देखा जाता है। पुष्कर  तीर्थराज भी कहा जाता है। पुष्कर में सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्त्व है। यहाँ सरस्वती नाम की एक प्राचीन पवित्र नदी है। यहाँ पर वह पाँच नामों से बहती है। पुष्कर स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्यप्रद माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं। 
  • In 2023, the Pushkar Fair will be held from November 20 to 28.
    यह मेला राजस्थान का सबसे बड़ा मेला  है।  पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है। पूरी दुनिया में भगवान ब्रह्मा जी का यह एकमात्र तीर्थ स्थल है जहां दुनिया भर से श्रद्धालु हर साल पहुंचते हैं।  हर साल कार्तिक पूर्णिमा को 7 दिनों तक चलने वाले इस भव्य मेले में प्रत्येक साल देश-विदेश से हज़ारों पर्यटक मेला देखने आते हैं।
पुष्कर शहर 2000 साल पहले बसा है और "पुष्कर ऊंट मेले" के लिए भी विश्व प्रसिद्ध भी हैं। मेले को वहां का राज्य प्रशासन भी विशेष महत्व देता है. कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर पवित्र पुष्कर सरोवर में हजारों श्रद्धालु  डुबकी लगाते हैं।  भगवान ब्रह्मा समेत अन्य देवी-देवताओं के दर्शन कर दान-पुण्य भी करते हैं। दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने गऊघाट समेत अन्य घाटों पर डुबकी लगाते हैं और ब्रह्मा जी मन्दिर के दर्शन करते हैं।
मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं।
ये मेले मरुस्थल के गाँवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग–बिरंगे परिधानों में सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहाँ पर भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते है
अपनी तरह का अनूठा है यहां पर लगने वाला ऊंट मेला
यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह देश के सबसे बड़े पशु मेलों में से भी एक है। मेले  में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाक़ों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं।  रेत के विशाल मैदान में लगने वाला मेला कमाल का होता है। अन्य मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्यासजे व लगे होते हैं। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन अब इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले जैसा हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोडे, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्फ मिलता है। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं आर्कषण  का केन्द्र
शाम का विशेष आकर्षण तो यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें पारंपरिक लोक नर्तक और नर्तकियां लोक संगीत की धुन पर थिरकते हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो समय रुक सा गया हो।  घूमर, कालबेलिया, गेर, मांड, काफ़ी घोड़ी और सपेरा नृत्य जैसे लोकनृत्य देखने वाले होते हैं। पर्यटक इन कार्यक्रमों का आनंद लेने से पूर्व सरोवर के घाटों पर जाते हैं। जहां उस समय संध्या आरती और सरोवर में दीपदान का समय होता है। हरे पत्तों को जोड़कर उनके मध्य पुष्प एवं दीप रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे ही दीपदान कहते हैं।
जल पर तैरते सैकड़ों दीपक और पानी में टिमटिमाता उनका प्रतिबिंब झिलमिल सितारों जैसा प्रतीत होता है। घाटों पर की गई लाइटिंग इस मंजर को और भी अद्भुत बना देती है। पुष्कर मेले में देश-विदेश के सैलानियों की भागीदारी इतने बड़े पैमाने पर होती है कि वहां की तमाम आवासीय सुविधाएं कम पड़ती नजर आती  हैं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा  विशेष रूप से एक पर्यटक गांव स्थापित किया जाता है। इस गांव में तम्बू लगाए जाते हैं जहां पर पर्यटकों के लिए हर सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। इस पर्यटक गांव में ठहरना भी अपने आपमें अनोखा अनुभव होता है। इस तरह की तमाम विशेषताओं के कारण पुष्कर मेले का पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है।
पुष्कर मेले के बारे में रोचक तथ्य
1. दुनिया में सबसे बड़ा ऊंट का मेला यहीं लगता हैं 
अापको हम बता दें कि दुनिया में लगने वाला सबसे बड़ा ‘ऊंट मेला’पुष्कर में ही लगता है। यह सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता है।  इस मेले में श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत भी किया जाता है जिसमें ऊंट सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र होता हैं।
2. इस मेले में दिलचस्प प्रतियोगिताएं भी होती हैं
मेले के दौरान कई दिलस्प प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं जैसे "मटका फ़ोड", "सबसे लम्बी मूंछें" आदि इस मेले की शोभा को और बढ़ाती हैं। इन आकर्षक प्रतियोगिताओं का आप भी हिस्सा बन सकते हैं।  पतंग महोत्सव का भी आयोजन किया जाता हैं। आकाश में उड़ती रंग बिरंगी पतंगे तो कमाल का दृश्य बनाती हैं। इस मेले में स्थानीय लोगो और विदेशियों के साथ मैच भी कराया जाता है।
3. गर्म गुब्बारे की सवारी का उठाएं अानंद
 पुष्कर मेले में मर्म गुब्बारे की सवारी भी सवारी कराई जाती है। आकाश में ऊपर उड़ते हुए नीचे पुष्कर का मेला देखना बेहद अद्भुत लगता है जो की अपने में इसे अलग बनाता है।
4. फ्यूजन बैंड का कमाल
पुष्कर मेले के संगीत बैंड का अद्भुत फ्यूज़न देखने को मिलता है। यहां आप कई जबरदस्त बैंड की लाइव परफॉरमेंस का मजा ले सकते हैं।
5. इस मेले में मनोरम व्यंजनों और सुंदर शिल्प कौशल का आयोजन होता है
राजस्थानी खाने के बिना राजस्थान की यात्रा पूरी नहीं हो सकती है। अालू कचौरी, जलेबी, गुलाब जामुन  'दलाबाटी चुरमा', ‘गट्टे की सब्जी’ आदि जैसी लज़ीज़ राजस्थानी व्यंजनों का पुष्कर मेले में निश्चित रूप से आनंद लिया जा सकता है। पुष्कर मेले में भारत के सर्वश्रेष्ठ कारीगर भी आते है। मेले खरीदारी भी खूब जमकर होती हैं।
कैसे पहुंचें पुष्कर
पुष्कर जाने के लिए आपको रेलगाड़ी से अममेर रेलवे स्टेशन पहुंचना होता है। देश के सभी हिस्से से अजमेर के लिए रेलगाड़ियां आती जाती रहती हैं। आपको मेले में भाग लेने के लिए  रेलगाड़ी व होटल में पहले से अपनी सीट बुक करवा लेनी चाहिए। सड़क मार्ग से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज से भी यहां पहुंचा जा सकता है। पुष्कर अजमेर रेलवे स्टेश न से महज 11 किलोमीटर की दूरी पर है। आटो वाले आपसे ज्यादा किराया ले सकते हैं। इसके लिए सावधान रहें। मेले में जेबकतरे आदि भी घूमते हैं। किसी भी अंजान व्यक्ति से कोई खाने पीने का सामान न लें। ज्यादा कैश, महंगी चीजों के साथ मेले में न आएं। अपने ग्रुप के साथ जुड़े रहें। ग्रुप से अलग न हों। किसी भी समस्या पर अाप पुलिस की सहायता ले सकते हैं।Image result for pushkar temple
पुष्कर मेले की कथा
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने यहाँ आकर यज्ञ किया था। पूरे भारत में हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के अतिरिक्त  यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है। ये सारे मंदिर आधुनिक हैं। यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल जालिम राजा औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धार्मक लोगों के द्वारा बनाए गए हैं।
पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। इसके अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं।
साँची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है।
यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3000 गायों एवं एक गाँव का दान किया था। इन लेखों से पता चलता है कि ई. सन् के आरंभ से या उसके पहले से पुष्कर तीर्थस्थान के लिए विख्यात था। स्वयं पुष्कर में भी कई प्राचीन लेख मिले है जिनमें सबसे प्राचीन लगभग 125 ई. सन् का माना जाता है। यह लेख भी पुष्कर से प्राप्त हुआ था और इसका समय 1010 ई. सन् के आसपास माना जाता है।
 पर्यटकों का स्वर्ग 'तीर्थराज' पुष्कर, पद्म-पुराण के अनुसार सभी तीर्थो में श्रेष्ठ माना गया है। आज देश विदेश में अपनी विविध थाती परक आस्थाओं, मंदिरों, सरोवर और ग्राम्यांचल की सोंधी महक के लिये तो चर्चित यह नगर दुनिया में अकेला ऐसा स्थान है जहाँ ब्रह्मा की पूजा की जाती है। 

Pushkar Mela-20 Nov, 2023 – Tue, 28 Nov, 2023

रचना और महत्तव
पुष्कर का अर्थ है एक ऐसा सरोवर जिसकी रचना पुष्प  (फूल) से हुई हो। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा ने अपने यज्ञ के लिए एक उचित स्थान चुनने की इच्छा से यहाँ एक कमल गिराया था। पुष्कर उसी से बना। एक अन्य कथा के अनुसार समुद्रमंथन से निकले अमृतघट को छीनकर जब एक राक्षस भाग रहा था तब उसमें से कुछ बूँदें इसी तरह सरोवर में गिर गईं तभी से यहाँ की पवित्र झील का पानी अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक हो गया जिसकी महिमा एवं रोगनाशक शक्ति के बारे में इतिहास में अनेकों उदाहरण भरे पड़े है।
इस अन्य कथा के अनुसार एक बार क्रोधित सरस्वती ने एक बार ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि जिस सृष्टि की रचना उन्होंने की है, उसी सृष्टि के लोग उन्हें भुला देंगे और उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। लेकिन बाद में देवों की विनती पर देवी सरस्वती पिघलीं और उन्होंने कहा कि पुष्कर में उनकी पूजा होती रहेगी। इसीलिए विश्व में ब्रह्मा का केवल एक ही मंदिर है जो यहाँ स्थित है। इस सरोवर की लंबाई और चौड़ाई समान है। डेढ़ किलोमीटर लंबे और इतने ही चौड़े पुष्कर सरोवर को पास की पहाड़ी से देखें तो यह वर्गाकार स्फटिक मणि समान प्रदीप्त लगता है। इसके चारों तरफ बने हुए बावन घाट इसके सौंदर्य दुगना कर देते हैं।

यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता, धार्मिक वातावरण एवं मेले की चहल-पहल धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए स्वर्ग जैसी  है। लोग यहां हर बार आना चाहते हैं। यहाँ आने वाला हर सैलानी अपने आप को गौरान्वित महसूस करता है। इसे वेदमाता गायत्री की जन्मभूमि भी माना जाता है। भगवान् शिव सहित अन्य देवताओं की शक्ति पीठ भी यही है। यह भी माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पाँच दिनों में जो कोई पुष्कर तीर्थ में स्नान- पूजा करता है उसे अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। 

 माना जाता है कि  चारों धामों की यात्रा करके भी यदि कोई पुष्कर झील में डुबकी नहीं लगाता है तो उसके सारे पुण्य निष्फल हो जाते है। प्राचीन धारणा के अनुसार यह कहा जाता है कि 'सारे तीर्थ बार बार, पुष्कर तीर्थ एक बार', इसीलिए इसे तीर्थों का गुरु, पाँचवाँ धाम एवं पृथ्वी का तीसरा नेत्र कहा जाता है।

नोट- इस वर्ष यदि प्रशासन मेला लगाने का आदेश दे देता है तो ही पुष्कर मेले का आयोजन हो सकता है। अभी प्रशासन की तरफ से कोई आदेश नहीं आया है इसलिए मेले के बारे में जानकारी लेने के बाद ही विदेशी व अन्य भक्त अपना कार्यक्रम बनाएं क्योंकि इससे उनको परेशानी हो सकती है।



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