vat savitri vrat katha | वट सावित्री व्रत कथा पूजन विधि (अमावस) 30 May 2022
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वट सावित्री व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त वट सावित्री व्रत तिथि: 30 मई 2022
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 29 मई 2022
अमावस्या तिथि समाप्त: 30 मई 2022 तक
savitri vrat katha | वट सावित्री व्रत कथा पूजन विधि (अमावस) 2022
14 जून 2022 को ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत (Jyeshtha Purnima 2022 Date) है ।
ज्येष्ठ मास की इस पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा (Vat Purnima 2022) के नाम से भी जाना जाता है ।
वटसावित्रि व्रत के पालन की दो परम्पराएं प्रचलित हैं। स्कंद व भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा को अौर निर्णयामृतादि के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है। दोनों परम्पराअों में यह व्रत पूर्व (चतुर्दशी) विद्धा अमावस या पूर्णिमा के दिन ही ग्रहण करने योग्य कहा गया है।
धर्म सिन्धू के अनुसार -
पूर्णिमास्यमावस्य तु सावित्रीव्रतं विना परे ग्राह्यो।
कुलधर्मादौ पूर्वा गृह्ते , तत्र मूलं मृग्यम् ।।
ब्रह्मवैवर्त्त पुराण में भी सावित्री व्रत परविद्धा का निषेध लिखा है-
भूतविद्धे न कर्त्तव्ये दर्शपूर्णे कदाचन् । वर्जयित्वा मुनिश्रेष्ठ सावित्रीव्रतमुत्तमम्।। (निर्णय सिन्धु)
वट देव वृक्ष है। वट वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्धन विष्णु जी तथा अग्र भाग में देवाधिदेव भगवानशिव रहते हैं। देवी सावित्री भी वट वृक्ष में रहती हैं। वट वृक्ष के नीचे देवी सावित्री ने अपने योगबल से अपने मृत पति को जीवित किया था। तब से यह व्रत वट सावित्री के नाम से किया जाता है। ज्येष्ठ
मास के व्रतों में वटसावित्री व्रच एक बहुत ही प्रभावी व्रत है। इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य एवम् कल्याण के लिएयह व्रत रखती हैं। सौभाग्यवती नारियां श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रियोदशी से अमावस्या तक तीनों दिनों का उपवास रखती हैं। त्रयोदशी के दिन वटवृक्ष के नीचे व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
वट सावित्री व्रत कथा
वटसावित्री व्रत की कथा के अनुसार एक बार की बात है कि जम्बू दीप के एक देश मद्रदेश के अश्वपतिनाम का एक राजा शासन करता था। उसकी एक पुत्री थी। उसका नाम सावित्री था। सावित्री जब बड़ी हो गई तो राजा बहुत परेशान रहने लगे। वह उसके लिए योग्य वर की तलाश करने लगे। उन्होंने अपनी पुत्री को कहा कि पुत्री तू अब विवाह योग्य हो गई है। तुम अपने लिए योग्य वर ढूंड सकती हो। उन्होंने कहा कि तू अपने लिए स्वयंवर रचा कर अपने अनुसार योग्य वर का वरण कर सकती हो। धर्मशास्त्रों में ऐसी आज्ञा दी गई है कि विवाह योग्य हो जाने पर जो पिता कन्यादान नहीं करता, वह पिता निंदनीय है।
ऋतुकाल में जो स्त्री से समागम नहीं करता वह पति निंदा का पात्र है। पति के मर जाने पर उस विधवा माता का जो पालन नहीं करता । वह पुत्र निंदनीय है।vat savitri vrat katha | वट सावित्री व्रत कथा पूजन विधि (अमावस)
एेसा सुनने के बाद सावित्री देवी शीघ्र ही अपने लिए वर की खोज करने के लिए चल दी। वह राजर्षियों के रमणीय तपोवन में गई। कई दिनों तक वह वर की तलाश में वह घूमती रही। एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए थे। वहां देवर्षि भी थे,वे उनसे बातें कर रहे थे। उसी समय मंत्रियों के सहित सावित्री अपने पिता के पास वापस लौटी। राजा की सभा में नारदजी को सावित्री ने देखा अौर उन्हें प्रणाम किया। नारदजी ने जब राजकुमारी के बारे में राजा से पूछा तो राजा ने कहा कि वे अपने वर की तलाश में गई थी। राजकुमारी से पिता ने उसके वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र जो जंगल में पले-बढ़े हैं उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया है। vat savitri vrat katha | वट सावित्री व्रत कथा पूजन विधि (अमावस)
उनका नाम सत्यवान है। उसी समय नारदमुनि जी बोले राजेन्द्र ये तो बहुत खेद की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है। उसी समय राजा ने चिंतातुर होकर उनसे पूछा राजा को उन्होंने कहा जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु कम है। वह सिर्फ एक वर्ष के बाद मरने वाला है। तब सावित्री ने कहा पिताजी कन्यादान एकबार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया है, मैं उसी से विवाह करूंगी आप उसे कन्यादान कर दें। उसके बाद सावित्री के द्वारा चुने हुए वर सत्यवान से धूमधाम से विवाह करवा दिया गया।
सत्यवान व सावित्री के विवाह को बहुत समय बीत गया।एक दिन वह भी अाया जिस दिन सत्यवान को इस दुनिया से चले जाना था। जिस दिनको सत्यवान मरने वाला था वह करीब था। सावित्री चिंता में एक-एक दिन गिनती रहती थी। उसके दिल में नारदजी का वचन सदा ही बना रहता था। जब उसने देखा कि अब इन्हें चौथे दिन मरना है। उसने तीन दिन व्रत धारण किया। जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ चलुंगी। तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो। जंगल का रास्ता बहुत कठिन और परेशानियों भरा है इसलिए आप यहीं रहें। लेकिन सावित्री नहीं मानी उसने जिद पकड़ ली और सत्यवान के साथ जंगल की ओर उनके साथ चल दी।
vat savitri vrat katha | वट सावित्री व्रत कथा पूजन विधि (अमावस)
सत्यवान जब लकड़ी काटने लगा तो अचानक उसको किसी सांप ने डस लिया । वह सावित्री से बोला मैं स्वस्थ महसूस नही कर रहा हूं सावित्री मुझमें यहां बैठने की भी हिम्मत नहीं है। तब सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया।इसके बाद सत्यवान बेहोश हो गया। फिर वह नारदजी की बात याद करके दिन व समय का विचार करने लगी। इतने में ही उसे वहां एक बहुत भयानक पुरुष दिखाई दिया। उसके हाथ में पाश था। वे यमराज थे। उन्होंने सावित्री से कहा तू पतिव्रता स्त्री है इसलिए मैं तुझसे संभाषण कर लूंगा। सावित्री ने कहा आप कौन है तब यमराज ने कहा मैं यमराज हूं। इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकाल लिए। उन्होंने उसके प्राणों को पाश में बांध लिया अौर फिर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री उनसे बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी। तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता लेकिन तू मनचाहा वर मांग ले
तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली। यमराज ने उसे कहा तथास्तु लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए। उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों। यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो। तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। यमराज ने कहा तथास्तु। यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं । आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आशीर्वाद दिया है। तब यमराज ने सत्यवान को दोबारा जीवित कर दिया। उसके बाद सावित्री सत्यवान के शव के पास पहुंची और थोड़ी ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई।
कैसे होती है पूजा
वट सावित्री की पूजा के लिए विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं। सुबह स्नान करके एक दुल्हन की तरह सजकर एक थाली में प्रसाद जिसमे गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, कुमकुम, रोली, मौली, फल, पान का पत्ता, धुप, घी का दीया, एक लोटे में जल लेकर बरगद पेड़ के नीचे जाता हैं।
इसके बाद पेड़ की जड़ में जल चढ़ाती हैं फिर प्रसाद चढ़ाकर धूप, दीपक जलाती हैं। उसके बाद सच्चे मन से पूजा करके अपने पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। माता सावित्री से पति की दीर्घायु की कामना करती हैं अौर बरगद के पेड़ के चारों ओर कच्चे धागे से या मौली को 7 बार बांधती। घर आकर पति का तिलक करती हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेती। उसके बाद पति के हाथों से अपना व्रत खोलती हैं।
वटसावित्रीव्रत एक महान व्रत है इसे हर हिन्दू महिला को करना चाहिए। इससे घर में धन की कमी नहीं रहती, कारोबार में बढ़ौतरी होती है। पति की दीर्धायु होती हैं। हिन्दू नारियों का योगबल उनके पतियों को हर कष्ट से दूर करता है।
note : this Vrat will falls on 30, may Friday 2022, dates may be different in other parts of India and Abroad.
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