shankracharya swami nishchlanand ji | शंकराचार्य निश्चलानंद जी के प्रवचन व जीवन परिचय

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अादि गुरु शंकराचार्य जी की तरफ से इस कलिकाल में चलाई गई  परम्परा से उड़ीसा के पुरी पीठ के शंकराचार्य अपनी बेबाक वाणी के चलते पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। लगभग 80 वर्ष की इस अायु में भी वह इस तरह ऊर्जावान हैं कि युवा भी हैरान रह जाते। भगवान शंकर के स्वरूप स्वामी निश्चलानंद जी की एक नजर पड़ने से ही लोगों के भाग्य खुल जाते हैं। लगातार वेदों का अध्ययन कर वह लोगों को जीवन जीने की राह दिखा रहे हैं। स्वामी जी धर्म, राजनीति व अार्थिक मामलों में अपनी राय शास्त्रों के अाधार पर देते हैं । होशियारपुर में टांडा रो़ड पर  हरदोखान श्री विलाम्बा शक्ति संस्थानम में गुरु जी का अागमन होने से शहर की जनता को उनका अाशीर्वाद मिला। शांत वातावरण में बना यह स्थल मन को शांति प्रदान करता है। शंकराचार्य जी ने यहां पत्रकारों को सम्बोधित भी किया। shankracharya swami nishchlanand ji | शंकराचार्य निश्चलानंद जी के प्रवचन व जीवन परिचय
यह पूछने पर कि क्या राम मंदिर बनेगा तो उन्होंने कहा कि राम मंदिर अवश्य बनेगा । इसमें राजनीतिक दलों को अड़चन नहीं डालनी चाहिए। राजनीतिक दलों पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि  भारत तभी तरक्की करेगा जब  सभी दल अापसी विरोध, रंजिश व स्वार्थ छोड़ दें अौर धर्मानुसार कार्य करें।Image result for shankracharya swami nishchlanand ji | शंकराचार्य निश्चलानंद जी के प्रवचन व जीवन परिचय
  टैक्स के मामले में उन्होंने कहा कि हर सरकार को सूर्य की भांति होना चाहिए कि जैसे सूर्य पानी सोखता है अौर फिर बादल बनकार बरसता है अौर धरती को हरा करता है उसी तरह सरकारों को जनता से टैक्स लेना चाहिए व उसी जनता की भलाई पर खर्च करना चाहिए।  गुरु जी हर क्षेत्र के लोग चाहे वे जज हों,राजनेता हों, प्रशाशक हों को सम्बोधन करते रहते हैं। अाज के युग में भारत वर्ष व विश्व के लोगों को सनातन धर्म से जुड़ना होगा तभी विश्व में शांति व सदभाव होगा। Image result for puri shankaracharya biography
गुरु जी का जीवन परिचय
पूज्यपाद जगद्गुरू श्री शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का जन्म 72  वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के मिथिलाच्जल में दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी) जिले के हरिपुर बख्शीटोलमानक गांव में आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार रोहिणी नक्षत्र, विक्रम संवत् 2000 तदानुसार दिनांक 30 जून ई | 1943 को हुआ |
  इनके पिता जी का नाम श्री लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे | आपकी माताजी का नाम गीता देवी था | इनको बचपन में प्यार से नीलाम्बर के नाम से पुकारा जाता था। यह बचपन से ही तेज बुद्धी के मालिक थे। इनपर भगवान की कृपा थी। यह बचपन से ही लोगों का उद्धार करते थे। दुखी व पीड़ित लोग इनके स्पर्श मात्र से ही स्वस्थ हो जाते थे।

 गुरु जी जी शुरुअाती शिक्षा बिहार और दिल्ली में हुई | दसवीं तक आप बिहार में विज्ञान के छात्र रहे | 2 वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने बड़े भाई डॉ. श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की। गुरु जी पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती, कबड्डी और तैरने में अभिरूचि के अलावा आप फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे | जब यह दिल्ली में थे तो उस समय इनको पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एवं श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुअा |  उन्होंने पूज्य करपात्री जी महाराज को हृदय से अपना गुरूदेव मान लिया | कालेज में पढ़ते समय इनकी सन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी।
    वह किसी को भी बताए  बिना काशी के लिए पैदल ही चल पड़े | अापने काशी, वृन्दावन, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, नैमिषारण्य,  हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया | नैमिषाराण्य के पू्ज्य स्वामी श्री नारदानन्द सरस्वती जी ने आपका नाम ‘ध्रुवचैतन्य’ रखा | 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के  वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया | एेसा करने पर पर उन्हें 9 नवम्बर को बन्दी बनाकर 52 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया |
 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में आपका लगभग 31 वर्ष की आयु में अापने विधिपूर्वक संन्यास ले लिया। पूज्यपाद स्वामी करपात्री जी महाराज ने इनको सन्यास की दीक्षा दी। उन्होंने ही आपको ‘निश्चलानन्द सरस्वती’ का नाम दिया | इसके बाद वह गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर बैठे | शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के तुरन्त बाद आपने सनातन धर्म की अलख को जगाए रखने का प्रण लिया। कलियुग में संघ के शक्ति सन्निहित हैं | धर्म, ईश्वर और राष्ट से जोड़ने का कार्य संघ द्वारा सम्पन्न हो, यह जरूरी  है |

 हम बहुत ही भाग्यशाली हैं  क्योंकि हमें  विश्व के सर्वोच्च ज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठित इन महात्मा द्वारा चलाये जा रहे अभियान में सहभागी बनने और जिम्मेदारी निभाने का सुअवसर मिला हुआ है |  अाज दुनिया भर के लोगों  विशेषकर हिन्दुअों का परम कर्तव्य है कि अादि शंकराचार्य जी के द्वारा चलाई गई इस महान परम्परा को बचाए रखना अौर इसे अागे बढ़ाने के लिए हर सम्भव प्रयास करते रहना है। अाज भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था को तभी सुधारा जा सकता है यदि अादि शंकराचार्य जी की इस महान परम्परा को बचाए रखा जाए।
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