क्या मानव को जन्म से ही रोजगार की गारंटी मिल सकती है?
www.bhrigupandit.comक्या मानव को जन्म से ही रोजगार की गारंटी मिल सकती है?
प्रकृति के नियम बेमिसाल हैं। जंगल में कोई भी जीव जन्म लेता है तो उसके जीवन भर खाने का प्रबंध प्रकृति कर ही देती है। शेर के शावक
जन्म लेते हैं तो शेरनी के स्तनों से उनका पेट भरने के लिए दूध आना शुरु हो जाता है। आप सोचो कि यदि ऐसा न होता तो शावक जन्म तो लेते लेकिन भूखे ही मर जाते। जब तक ये शावक बड़े नहीं हो जाते शेर व शेरनी मिलकर शिकार मारकर इनके लिए लाते हैं और इन्हें खिलाते हैं। लेकिन हैरानी वाली बात है कि शेर अपने शावकों को नहीं मारकर खा जाते। ऐसा नियम हर प्राणी पर लागू होता है। शेर मांसाहारी है क्योंकि प्रकृति ने उसे ऐसा ही बनाया है। इसी प्रकार अन्य प्राणी शाकाहारी भी हैं।
अब मानव जब अपने बच्चों को जन्म देता है तो वह उसका हर तरीके से पालन पोषण करता है। क्या किसी भी बच्चे को जन्म लेते ही अपने
रोजगार का अधिकार नहीं प्राप्त होना चाहिए। आज मानव ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो लेकिन वह गारंटी नहीं दे सकते कि बच्चे
को जन्म से रोजगार का अधिकार मिल जाए। ऐसी व्यवस्था न होने के कारण हर देश में अराजकता का माहौल है। बच्चों पर नौकरी या रोजगार प्राप्त करने का इतना दबाव है कि वे इस प्रकृति में जीना ही भूल चुके हैं। नौकरी न मिलने के भय से ही कई बच्चों ने आत्महत्या
कर ली। अब रोजगार ही एक बड़ी समस्या बन गया है।
एक उद्योगपति या धनवान के घर जन्म लेने वाला बच्चा तो अपना रोजगार पा ही लेता है लेकिन एक गरीब के घर में पैदा हुआ बच्चा दर-दर
की ठोकरें खाता है। जब वह देखता है कि अयोग्य बच्चे इस समाज में उससे आगे बढ़ जाते हैं तो वह गुस्से व ग्लानी से भर जाता है।
अब प्राचीन वैदिक भारत में की बातकरें तो आपको किसी भी ग्रंथ में 18 शताब्दि तक बेरोजरागी या रोजगारी का कोई शब्द नहीं मिलेगा।
जब यूरोप में भुखमंगी और लोग सड़कों पर थे तो भारत में हर कोई काम करता था। जन्म से ही रोजगार की गारंटी थी।
ब्राह्मण के घर पैदा होने वाले संतान के लिए पिता का काम उसका रोजगार था, क्षत्रिय के घर में पैदा होने वाले बच्चे,वैश्य व शूद्रों के घरों में
पैदा होने वाले बच्चों को कुटीर उद्योग, कलाकारी, मीनाकारी, भवन निर्माण आदि में जीवन भर रोजगार की जन्म से गारंटी थी। कोई भी इस मामले में कम ही किसी का रोजगार छीनता था। हालांकि वैकल्पिक तौर पर हर कोई अपना रोजगार अपनी इच्छा अनुसार चुन सकता था। आज रोजगार इतनी समस्या बन गया है कि हर कोई दूसरे का रोजगार छीन रहा है। आज बड़े-बड़े अर्थशात्री भी इस समस्या का निवारण नहीं कर सकते। क्योंकि पारम्परिक रोजगार प्रणाली को ध्वस्त कर दिया गया है। आज मानव सिर्फ रोजगार के लिए हाथपांव मरता है चाहे उसमें
उसकी रुचि हो या न सिर्फ धन कमाना ही स्वार्थ रह गया है। कोई भी नहीं मिलेगा जो कहेगा कि हम 6 पीढिय़ों से इस काम को आगे बढ़ाते
हुए समाज का कल्याण कर रहे हैं। कुटीर उद्योग रहे नहीं। अब सरकारें भी युवाओं को झूठे रोजगार दिलाने का वायदा करके शासन करती रहती हैं। फिर यह घोषणा की जाती है कि सरकार इतने लोगों को रोजगार नहीं दे सकती स्वरोजगार पैदा करो। यदि ऐसा ही करना था तो हमारे
परम्प्ररागत रोजगारों को हमसे क्यों छीना गया। परम्परागत रोजगारों के प्रति हीन भावना पैदा की गई। अब युवाओं के लिए कोट पहनना तो आसान है लेकिन पारम्परिक वेशभूषा में वापस लौटना मंजूर नहीं। जब तक समाज व सरकार किसी भी बच्चे का जन्म से ही रोजगार निश्चित
नहीं कर तब तक किए जा रहे सारे विकास कार्य धकोसला मात्र हैं। इसका समाधान अब देश के युवाओं को स्वयं की करना होगा। ऐसे
काम करने होंगे जिससे वे अपनी संतानों व अन्य बेरोजगारों को काम दिला सकें। इससे आधुनिक रोजगार के साधनों पर भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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