गुरुकुल क्या होते हैं और ये कैसे चलते थे

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गुरुकुल क्या होते हैं और ये कैसे चलते थे

विश्व की सबसे प्राचीन परम्परा गुरुकुल के बारे में आज बहुत सारे लोग नहीं जानते। जानते भी
होंगे लेकिन यह नहीं जानते होंगे कि इसकी कार्य प्रणाली क्या होती है। कल्पना करें कि आपका
बच्चा जिस महंगे स्कूल में पडऩे जाता है,अचानक यह घोषणा कर दे कि आपके बच्चे की स्कूल फीस माफ, उसे ले जाने वाली बस बंद, पढ़ाई पूरी होने तक उसके खाने-पीने, रहने आदि का सारा इंतजाम स्कूल मैनेजमेंट करेगी। आपका बच्चा स्कूल के होस्टल में रहेगा और उसे वहीं शिक्षा दी जाएगी। पढ़ाई पूरी होने पर उसके रोजगार की गारंटी भी स्कूल मैनेजमैंट देगी। ऐसा सुनने के बाद शायद आप कहेंगे कि हे भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है कि अब हमें महंगी शिक्षा से छुटकारा मिला और हमारे बच्चे के रोजगार की भी चिंता खत्म हो गई। लेकिन यह आधुनिक  समाज में एक स्पप्न ही लगता है। ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि शिक्षा व्यापार का एक बड़ा केन्द्र बन चुकी है।
        अब आईए  प्राचीन भारत की बात करते हैं। बच्चे 13 या 15 वर्ष तक गुरुकुल में बिल्कुल फ्री पढ़ते थे। शास्त्रों का अध्ययन करते और शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें तुरंत रोजगार मिल जाता। ये बच्चे अपने गुरु के पास रहकर वहां सारे काम स्वयं करते और समाज का दायित्व होता कि वह इन बच्चों के भोजन,कपड़े इत्यादि का इंतजाम करता। ये बच्चे भिक्षा मांगकर लाते और इसी से इनका निर्वहन होता। हर कोई गुरुकुल के ब्रह्मचारी छात्रों का सम्मान करता तथा इनकी  हर सम्भव मदद करता। इन छात्रों में से ही कोई चक्रवर्ती राजा, व्यापारी, कमांडर या फिर उच्च कोटि का गुरु बनता। ये व्यवस्था भारत की रीढ़ की हड्डी थी। जब यूरोप के लोग खानाबदोशों की तरह आपस में लड़ रहे थे तो उस समय अर्थ शास्त्र, काम शास्त्र, गणित शास्त्र, खगोल शास्त्र व रेखा गणित,ज्योतिष आदि शास्त्रों को छात्रों ने कंठस्थ कर लिया था। वैदिक, बौद्ध,चवार्क,जैन ग्रंथों का बोलबाला था। नालंदा, तक्षिला, पाटलीपुत्र आदि में विदेशों से छात्र आकर पढ़ते थे।
जब आक्रमणकारी खिलजी ने नालंदा को आग लगाई तो वहां पड़ी हजारों अनमोल पुस्तकें महीनों तक जलती रहीं। विदेशी हमलावरों ने सबसे पहले गुरुकुल व्यवस्था को तहस-नहस करके अपनी शिक्षा पद्धति के लागू करवाया। इसी शिक्षा को पढऩे वालों को नौकरी व्यवस्था करवाई। भारत में आज भी कहीं-कहीं गुरुकुल व्यवस्था दम घुटती हुई चल ही रही है। सरकार की तरफ से कोई अनुदान नहीं दिया जाता। वहीं दूसरी तरफ मदरसों को करोड़ों रुपए की ग्रांट बांटी जाती है। गुरकुल के छात्रों का भविष्य भी अंधकारमय है, अमीर अरबोंपति भी अब शिक्षा के क्षेत्र  में आ गए हैं और यह एक अरबों रुपए का सौदा बन गया है। शास्त्रों में लिखा है कि जब शिक्षा सौदागरों के हाथों में चली जाती है तो समाज का पतन होना शुरु हो जाता है। आज विश्वविद्यालयों में देश विरोधी नारे व रेप जैसे केस आम हो गए हैं। पढ़े लिखे लोग रोजजगार न मिलने के कारण आत्महत्याएं कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हिन्दू ही इस परम्परा की तरफ ध्यान नहीं दे रहे। इस प्राचीन परम्परा को बचाने के लिए समृद्ध हिन्दुओं को आगे आना होगा और सरकार से भी इस परम्परा को बचाने के लिए फंड उपलब्ध करवाने की मांग करनी चाहिए।

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