हिन्दुओं ने ही भुला दिया विनायक दामोदर सावरकर को

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जिनके लिए वह जीवन भर लड़ता रहा, जिनके लिऐ उसने दिन देखा न रात वह ब्राह्मण नायक हिन्दुओं की तरफ से ही भुला दिया गया।
ेऐसा वीर जिसने हिन्दुत्व की मशाल लेकर अंडेेमान निकोबार में आजीवन कारावास का कष्ट झेला उसका सम्मान तो क्या आज उसे कोई याद
भी शायद करता हो। अंग्रेजी साम्राज्य की चूलें तक हिला कर रख देने वाले इस महानायक के दुख व तिरस्कार के सिवा क्या पाया। आज सैलुलर जेल से आती चीखों की आवाजों में उनकी चीखें भी शामिल हैं। पाकिस्तान बनाने के वे घोर विरोधी थे। वे चाहते थे कि भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए लेकिन उस समय अंग्रेजों के चमचों ने उनकी एक न चलने दी। अंग्रेजों ने उनकी लिखी पुस्तकों, लेखों को बैन कर दिया था क्योंकि चमचों ने अंग्रेजों को बताया था कि सावरकर उनके खिलाफ लिखता है। दुख तो इस बात का है कि आज स्वतंत्र भारत में भी नई पीढ़ी इस महान बलिदानी को नहीं जानती।  हमारा छोटा सा प्रयास है ऐसे ब्राह्मण योद्धाओं को सामने लाने का। इनके जीवन केबारे में हम 1500 पृष्ठो वाली पुस्तक लिख रहे हैं। उनकी लिखी पुस्तकें हर भारतीय को पढऩी चाहिए जो इस देश को प्यार करते हैं।
उनका पूरा नाम  विनायक दामोदर सावरकर,जन्म 28 मई1883,जन्मस्थान - भगुर ग्राम, पिता का नाम दामोदर सावरकर, माता का नाम राधाबाई सावरकर तथा उनका विवाह  यमुनाबाई से हुआ था।
विनायक दामोदर सावरकर एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकत्र्ता, राजनीतिज्ञ और साथ ही एक कवी और लेखक भी थे. वे हिंदू संस्कृति में जातिवाद क को खत्म करना चाहते थे, सावरकर के लिये हिंदुत्व का मतलब ही एक हिंदु प्रधान देश का निर्माण करना था. उनके राजनैतिक तत्वों में उपयोगितावाद, यथार्थवाद और सच शामिल है। बाद में कुछ इतिहासकारों ने सावरकर के राजनैतिक तत्वों को दूसरो शब्दों में बताया है. वे भारत में सिर्फ और सिर्फ हिंदु धर्म चाहते थे, उनका ऐसा मानना था की भारत हिन्दुप्रधान देश हो और देश में सभी लोग भले ही अलग-अलग जाति के रहते हो लेकिन विश्व में भारत को एक हिंदु राष्ट्र के रूप में ही पहचान मिलनी चाहिये. इसके लिये उन्होंने अपने जीवन में काफी प्रयत्न भी किए।
सावरकर के क्रांतिकारी अभियान की शुरुवात तब हुई जब वे भारत और इंग्लैंड में पढ़ रहे थे, वहा वे इंडिया हाउस से जुड़े हुए थे और उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी और फ्री इंडिया सोसाइटी के साथ मिलकर स्टूडेंट सोसाइटी की भी स्थापना की. उस समय देश को ब्रिटिशो ने अपनी बेडियो में जकड़ा हुआ था इसी को देखते हुए देश को आज़ादी दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने द इंडियन वॉर का प्रकाशन किया और उनमे 1857 की स्वतंत्रता की पहली क्रांति के बारे में भी प्रकाशित किया लेकिन उसे ब्रिटिश कर्मचारियों ने बैन (बर्खास्त) कर दिया। क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ उनके संबंध होने के कारण 1910 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में रहते हुए जेल से बाहर आने की सावरकर ने कई असफल कोशिश की लेकिन वे बाहर आने में असफल होते गये। उनकी कोशिशो को देखते हुए उन्हें अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल में कैद किया गया लेकिन फिर 1921 में उन्हें रिहा भी किया गया था।
जेल में भी सावरकर शांत नही बैठे थे, वहा बैठे ही उन्होंने हिंदुत्व के बारे में लिखा। 1921 में उन्हें प्रतिबंधित समझौते के तहत छोड़ दिया था की वे दोबारा स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागी नहीं होंगे। बाद में सावरकर ने काफी यात्रा की और वे एक अच्छे लेखक भी बने, अपने लेखो के माध्यम से वे लोगो में हिंदू धर्म और हिंदू एकता के ज्ञान को बढ़ाने का काम करते थे। सावरकर ने हिंदु महासभा के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए भी सेवा की है, सावरकर भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते थे लेकिन बाद में उन्होंने 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में अपने साथियों का साथ दिया और वे भी इस आन्दोलन में शामिल हो गए। उस समय वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के उग्र आलोचक बने थे और उन्होंने कांग्रेस द्वारा भारत विभाजन के विषय में लिये गए निर्णय की काफी आलोचना भी की। उन्हें भारतीय नेता मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या का दोषी भी ठहराया गया था लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें निर्दोष पाया।
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म मराठी चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर और माता का नाम राधाबाई सावरकर था. उनका परिवार महाराष्ट्र के नाशिक शहर के पास भगुर ग्राम
में रहता था। उनके और तीन भाई -बहन भी है, जिनमे से दो भाई गणेश और नारायण एवं एक बहन मैना है।
1901 में विनायक का विवाह यमुनाबाई से हुआ, जो रामचंद्र त्रिंबक चिपलूनकर की बेटी थी, और उन्होंने ही विनायक की यूनिवर्सिटी पढाई में सहायता की थी। बाद में 1902 में उन्होंने पुणे के फग्र्युसन कॉलेज में एडमिशन लिया। एक युवा व्यक्ति के रूप में उन्हें नयी पीढ़ी के राजनेता जैसे बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय से काफी प्रेरणा मिली जो उस समय बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी अभियान चला रहे थे। सावरकर बहुत से स्वतंत्रता अभियान में शामिल हुए थे। 1905 में दशहरा उत्सव के समय विनायक ने विदेशी वस्तुओं और कपड़ों का बहिष्कार करने की ठानी और उन्हें जलाया। इसी के साथ उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों और मित्रो के साथ मिलकर राजनैतिक दल अभिनव भारत की स्थापना की।
उनके भाषणों पर बैन लगने के बावजूद उन्होंने राजनैतिक गतिविधिया करना नही छोड़ा।1966 में अपनी मृत्यु तक वे सामाजिक कार्य करते रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें काफी सम्मानित किया और जब वे जीवीत थे तब उन्हें बहोत से पुरस्कार भी दिए गये थे. उनकी अंतिम यात्रा पर 2000 आरएसएस के सदस्यों ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी और उनके सम्मान में "गार्ड ऑफ़ हॉनर" भी किया था.
1. सावरकर दुनिया के अकेले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली।
2. सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनेता थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रो की होली जलाई थी।
3. वीर सावरकर ने राष्ट्र ध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सबसे पहले दिया था जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने माना।
स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे महान क्रांतिकारी को नम आंखों से याद करते हैं। जब तक सूरज चांद रहेगा तब तक सावरकर तेरा नाम रहेगा।www.bhrigupandit.com

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