जब हम यह सब छोड़ दें, सोचो कभी ऐसा होतो क्या हो

 जब हम यह सब छोड़ दें, सोचो कभी ऐसा होतो क्या हो
कहते हैं कि कल्पनाएं , स्वपनों की झंकार जीवन में न हो या इन क्लपनाओं से जीवन यथार्थ रूप तो न ले पाता तो क्या होता। या फिर इन कल्पनाओं का सहारा लेकर जीवन में अविश्कार न हुए होते क्या होता। आज हम कुछ
ऐेसा करते हैं कि इन कल्पनाओं से जो मान जीवन को मिला है उसे नष्ट करने या खत्म करने की कलपना करते हैं कि यदि हम ऐसा करें तो क्या होगा। शुरुआत कहां से करें चलो शुरुआत करते हैं अपनी प्राचीन धरोहरों से।
सारे प्राचीन मंदिर जो हमारे पूर्वजों से सैंकड़ों सालों की मेहनत से बना कर हमारे लिए छोड़ दिए हैं उन्हें ढक देते हैं। फिर सारे प्रचीन ग्रंथों को एक कोठरी में डाल देते हैं। सारे संगीत के वाद्य यंत्र कहीं छिपा देते हैं, नाचने- गाने पर बैन लगा देते हैं, मनोरंजन के सारे साधन बंद कर देते हैं। फिर पालतू जानवरों पर भी बैन लगा देते हैं। स्त्री-पुरुषों को अलग-अलग कर देते हैं। सोचो लोग सिर्फ ऐसे ही जीने लगते हैं। न कोई त्यौहार, न समागम बस ऐसे ही परमात्मा का नाम लेना और सिर्फ धन कमाना। फिर उस धन को खर्च नहीं करना। आज कुछ लोग ऐसा ही चाहते हैं कि हम ऐसा करें। यदि ऐसा हो जाता है तो आप मान नहीं एक जानवर ही हो जाएंगे क्योंकि जानवर ऐसा ही करते हैं। खाते हैं, सम्भोग करते हैं और बच्चे ही पैदा करते हैं। कहीं नहीं जाते किसी के आने पर उसे मारने दौड़ते हैं किसी को जाने नहीं देते। बस खाने, फिर स्वयं के ताकतवर दिखाने के लिए दूसरे नर से लड़ते हैं और फिर जीतने वाला मादा से सम्भोग करता है। वे इससे कभी भी बोर नहीं होते रोज वही कोई नया नहीं। कोई
नया काम न करते हैं और न ही कोई इच्छा होती है। कुछ भी नया जानने के लिए कि हम कौन थे,क्या हैं और हमारा मकसद क्या है। खाते हैं और जुगाली करते हैं। कोई रिश्तेदारी नहीं एक दूसरे से जिसे भी चाहें सम्भोग करते हैं और प्रजनन क र अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं। हिंसक इतने हो जाते हैं कि दूसरे इलाके से आए जानवरों को मार ही डालते हैं। यदि ऐसा ही मानव भी हो जाए तो सोचो कि क्या हो जाए।

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