भटोया गांव में स्थित है सैनी गोत्र के जठेरों का पवित्र स्थान


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भटोया गांव में स्थित है ANNEH सैनी गोत्र के जठेरों का पवित्र स्थान
महान सैनी गोत्र के जठेरे गुरदासपुर जिले के भटोया गांव में स्थित हैं। देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में
सैनी गोत्र के वंशज यहां प्रार्थना करने आते हैं और प्रभु का सुमिरन करते हुए अपने जठेरों को माथा टेकते हैं।
बाबा बोड़ह के नाम से प्रसिद्ध गांव भटोया में स्तिथ इस जठेरों के मंदिर में भगवान शिव का सुंदर मंदिर है। शिव परिवार की मूर्तियां बहुत ही मनमोहक हैं। एकदम शांत वातावरण आपको अलौकिक अनुभव करवाता है। इस स्थान पर वैसे को हर धर्म का इंसान नतमस्तक होता है लेकिन सैनी समाज के लोगों की असीम श्रद्धा देखकर मन
भावुक हो जाता है। वहां पर माता-पिता अपने बेटे की शादी के लिए सुच्चे मुंह माथा टेकने आते हैं। इसके बाद ही वे शादी के लिए जाते हैं। शादी के बाद फिर से  यहां आते हैं और वर-वधु के साथ माथा टेकते हैं। जेठेरों पर माता माथा टेकते भावुक होती है। इन जठेरों की शक्ति के कारण ही इस समाज ने जितनी तरक्की की है शायद ही किसी अन्य समाज ने की हो। भारत-पाकिस्तान बनने के बाद अपने धर्म को बचाने के लिए सैनी समाज के
लोग गुरदासपुर,पंजाब व देश के अन्य हिस्सों में आए और आज तक अपने धर्म का पूरी निष्ठा के साथ पालन कर रहे हैं। यह समाज पढ़ा-लिखा, सूजवान है। इस समाज की बेटा-बेटियों ने पूरे विश्व में अपनी लयाकत का ढंका बजाया।
सैनी, जिन्हें पौराणिक साहित्य में शूरसैनी के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें अपने मूल नाम के साथ केवल पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा,राजस्थान जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है।
सैनी, हिंदू और सिख, दोनों धर्मों को मानते हैं। कई सैनी परिवार दोनों ही धर्मों में एक साथ आस्था रखते हैं और पंजाब की सदियों पुरानी भक्ति और सिख आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप स्वतन्त्र रूप से शादी करते हैं।
हालांकि सैनी की एक बड़ी संख्या हिंदू है, उनकी धार्मिक प्रथाओं को सनातनी वैदिक और सिक्ख परंपराओं के विस्तृत परिधि में वर्णित किया जा सकता है। अधिकांश सैनियों को अपने वैदिक अतीत पर गर्व है और वे ब्राह्मण पुजारियों की आवभगत करने के लिए सहर्ष तैयार रहते हैं। साथ ही साथ, शायद ही कोई हिंदू सैनी होगा जो सिख गुरुओं के प्रति असीम श्रद्धा न रखता हो। होशियारपुर के आसपास कुछ हिन्दू सैनी, वैदिक ज्योतिष में पूर्ण निपुण है। अन्य खेती करने वाले और योद्धा समुदायों के विपरीत, सैनियों में इस्लाम में धर्मान्तरित लोगों के बारे में आम तौर पर नहीं सूना गया है। पंद्रहवीं सदी में सिख धर्म के उदय के साथ कई सैनियों ने सिख धर्म को अपना लिया। इसलिए, आज पंजाब में सिक्ख सैनियों की एक बड़ी आबादी है। हिन्दू सैनी और सिख सैनियों के बीच की सीमा रेखा काफी धुंधली है क्योंकि वे आसानी से आपस में अंतर-विवाह करते हैं। एक बड़े परिवार के भीतर हिंदुओं और सिखों, दोनों को पाया जा सकता है।
सिख धर्म के अन्दर 20वीं शताब्दी के आरम्भ में सुधार आंदोलनों ने विवाह प्रथाओं को सरलीकृत किया जिससे फसल खराब हो जाने के अलावा ग्रामीण ऋणग्रस्तता का एक प्रमुख कारक समाप्त होने लगा। इस कारण से खेती की पृष्ठभूमि वाले कई ग्रामीण हिन्दू भी इस व्यापक समस्या की एक प्रतिक्रिया स्वरूप सिक्ख धर्म की ओर आकर्षित होने लगे। 1900 का पंजाब भूमि विभाजन अधिनियम को भी औपनिवेशिक सरकार द्वारा इसी उद्देश्य से बनाया गया था ताकि उधारदाताओं द्वारा जो आम तौर पर बनिया और खत्री पृष्ठभूमि होते थे इन ग्रामीण समुदायों की ज़मीन के समायोजन को रोका जा सके, क्योंकि यह समुदाय भारतीय सेना की रीढ़ की हड्डी था;
1881 की जनगणना के बाद सिंह सभा और आर्य समाज आन्दोलन के बीच शास्त्रार्थ सम्बन्धी विवाद के कारण हिंदू और सिख पहचान का आम ध्रुवीकरण. 1881 से पहले, सिखों के बीच अलगाववादी चेतना बहुत मजबूत नहीं थी या अच्छी तरह से स्पष्ट नहीं थी। 1881 की जनगणना के अनुसार पंजाब की जनसंख्या का केवल 13 प्रतिशत  सिख के रूप में निर्वाचित हुआ और सिख पृष्ठभूमि के कई समूहों ने खुद को हिंदू बना लिया।
सैनी, कुछ दशक पहले तक सख्ती से अंतर्विवाही थे, लेकिन सजाती प्रजनन को रोकने के लिए उनके पास सख्त नियम थे। आम तौर पर नियमानुसार ऐसी स्थिति में शादी नहीं हो सकती अगर यहां तक कि अगर लड़के की ओर से चार में से एक भी गोत लड़की के पक्ष के चार गोत से मिलता हो। दोनों पक्षों से ये चार गोत होते थे पैतृक दादा 2) पैतृक दादी 3) नाना और 4) नानी. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि चचेरे या ममेरे रिश्तों के बीच विवाह असंभव था।
दोनों पक्षों में उपरोक्त किसी भी गोत के एक न होने पर भी अगर दोनों ही परिवारों का गांव एक ही. इस स्थिति में प्राचीन सम्मान प्रणाली के अनुसार इस मामले में, लड़के और लड़की को एक दूसरे को पारस्परिक रूप से भाई-बहन समझा जाना चाहिए।
1950 के दशक से पहले, सैनी दुल्हन और दूल्हे के लिए एक दूसरे को शादी से पहले देखन संभव नहीं था। शादी का निर्णय सख्ती से दोनों परिवारों के वृद्ध लोगों द्वारा लिया जाता था। दूल्हा और दुल्हन शादी के बाद ही एक दूसरे को देखते थे। अगर दूल्हे ने अपनी होने वाली दुल्हन को छिपकर देखने की कोशिश की तो अधिकांश मामलों में या हर मामले में यह सगाई लड़की के परिवार द्वारा तोड़ दी जाती है।
हालांकि 1950 के दशक के बाद से, इस समुदाय के भीतर अब ऐसी व्यवस्था नहीं है यहां तक कि नियोजित शादियों में भी।
पंजाबी सैनी समुदाय में कई उप कुल हैं। आम तौर पर सबसे आम हैं- अन्हे, बिम्ब (बिम्भ), रोष, बदवाल, बलोरिया, बंवैत (बनैत), बंगा, बसुता (बसोत्रा), बाउंसर, बाण्डे,भेला, बोला, भोंडी (बोंडी), मुंध.चेर, चंदेल, चिलना, दौले (दोल्ल), दौरका, धक, धम्रैत, धनोटा (धनोत्रा), धौल, धेरी, धूरे, दुल्कू, दोकल, फराड, महेरू, मुंढ (मूंदड़ा) मंगर, मसुटा (मसोत्रा), मेहिंद्वान, गेहलेन (गहलोन/गिल), गहिर (गिहिर), गहुनिया (गहून/गहन), गिर्ण, गिद्दा, जदोरे, जप्रा, जगैत (जग्गी), जंगलिया, कल्याणी, कलोती (कलोतिया), कबेरवल (कबाड़वाल), खर्गल, खेरू, खुठे, कुहडा (कुहर), लोंगिया (लोंगिये), सागर, सहनान (शनन), सलारिया (सलेहरी), सूजी, ननुआ (ननुअन), नरु, पाबला, पवन, पम्मा (पम्मा/पामा), पंग्लिया, पंतालिया, पर्तोला, तम्बर (तुम्बर/तंवर/तोमर), थिंड, टौंक (टोंक/टांक/टौंक/टक), तोगर (तोगड़/टग्गर), उग्रे,अम्बवाल(अम्बियांन), वैद आदि। हरियाणा में आम तौर पर सबसे आम हैं -गौराण,अग्रवाल , दहिया , घाटावाल , बागडी , टिकोरीया , कपूरखत्री , गिरणू , बावल, बनैत, भरल, भुटरल, कच्छल, संदल (सन्डल), तोन्दवाल,तुदंवाल (टंडूवाल) तूंडीवाल आदि।

 भटोया गांव में स्थित जठेरों का स्थान पर्यटन केन्द्र के रूप में भी विकसित हो रहा हैं। सैनीसमाज ने यहां बहुत अच्छे प्रबंध किए हैं। अब शीघ्र ही यहां 20 कमरों का आधुनिक सुविधाओं से लैस विश्राम घर बनाया जाएगा।
यहां देश-विदेश से आने वाले सैनी समाज व अन्य वर्गों के लोगों के ठहरने का पूरा प्रबंध होगा। विदेशों में बसे
सैनी समाज के लोग चाहते हैं कि यहां 5 स्टार जैसी सुविधाएं उपलब्ध हों। कईयों का सहयोग मिल रहा है।
समाज के लोग चाहते हैं कि जब वे परिवार के  साथ अपने जेठेरों के दर्शन को आएं तो वे यहां जितने दिन चाहे
रह सकें और गांव में घूम सकें। समाज में श्रद्धा इतनी है कि ये इस स्थान के लिए धन खर्च करने में पीछे नहीं रहने वाले। list of saini Gotra

Here is the List of Saini Samaj Gotras -:Adhopia, Agarwal, Andhaia, Annhe, Attar, Badwal, Bagri, Banait, Banga, Banga, Banwait, Baria, Basoota, Basuta, Bawal, Bharal, Bhati, Bhela, Bhele, Bhogal, Bhowra, Bimbh, Bodwal, Bola, Bondi, Budwal, Caberwal, Chandan, Chande, Chandolia, Chaudhry, Chayor, Chelley, Chepru, Chera, Chere, Chibb, Chilne, Chouhan, Dadwal, Dagdi, Dakolia, Darar, Daurka, Dhamrait, Dhand, Dhanota, Dhaul, Dhek, Dheri, Dhole, Dhoore, Dhorka, Dhorke, Dola, Dolka, Dolle, Dulku, Fharar, Gaare, Gahir, Gahunia, Galeria, Galhe, Garhamiye, Garhania, Garore, Gehlan, Gidda, Giddar, Gidde, Gillon, Girn, Gogan, Gogia, Gogiaan, Gogian, Golia, Haad, Hadwa, Hankhla, Hans, Hansi, Hoon, Jagait, Jaget, Jagit, Jandauria, Jandeer, Jandor, Jandoria, Janglia, Japra, Japre, Joshi, Kaan, Kabad, Kabarwal, Kabli, Kadauni, Kainthlia, Kalia, Kaloti, Kamboe, Kamokhar Kapoor, Kapooria, Kariya, Kataria, Keer, Khabra, Khad, Kharga, Khargal, Khatri, Khelbare, Khobe, Khube, Khute, Kuchrat, Kuhar, Kuhare, Lata, Longia, Loyla, Lularia, Maheru, Manger, Masute, Matoya, Meharu, Mundh, Mundra, Nagoria, Nanua, Nawen, Neemkaroria, Pabe, Pabla, Pabme, Pama, Panesar, Pangeli, Panghliya, Panthalia, Papose, Parihar, Partole, Patrote, Pawar, Pharar, Pingalia, Pundrak, Puria, Saggi, Sahnam, Sair, Sajjan, Sakhla, Salaria, Salariya, Sandoonia, Sangar, Sangowalia, Saroha, Satmukhiye, Satrawala, Satrawla, Satrawli, Satrole, Savadia, Sehgal, Shahi, Singodiya, Sinh, Solanki, Sona, Songra, Sooji, Sukhayee, Tabachare, Tak, Tamber, Tandoowal, Tank, Tanwar, Taraal, Tarotia, Tatla, Tatra, Tatri, Thind, Tikoria, Togar, Tondwall, Tonk, Tor, Tundwal, Tuseed, Ughra, Vaid, Vim, Virdee

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