अंग्रेज जो चाहते थे चमचे वही करते थे
अंग्रेज जो चाहते थे चमचे वही करते थे
अंग्रेजों ने भारत पर शासन क्रूर तरीके से किया। वे जो चाहते थे उनके चमचे वही करते थे क्योंकि जनता इन चमचों की सुनती थी। इसके बदले में अंग्रेज इन चमचों को बड़ी जागीरें, विदेशी कपड़े, सिगार, विदेश की यात्राएं आदि कहने का मतलब शबाब व शराब भी। जो अंग्रेजों के खिलाफ होते थे वे उनको फांसी की सजा दे देते थे या
काले पानी की सजा के लिए अंडेमान व निकोबार में जोलों में सडऩे के लिए भेज देते थे। अंग्रेज चाहते थे कि भारत टुकड़ों में बंट जाए। इसके लिए उन्होंने काले नेताओं की फौज खड़ी की। जिन्हा को कहा कि वह मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करे,उसको वे समर्थन देंगे। जिन्ंहा ने वैसा ही किया। अंग्रेजों ने भारते के काले राजनेताओं को कहा कि वे भी उनकी बात माने। न नुकर का ड्रामा करने के बाद वे भी मान गए। इसके बाद अंग्रेज चाहते थे कि देश का एक और टुकड़ा किया जाए जिसका नाम दलिस्तान होगा। इसके लिए उन्होंने काले
अंग्रेजों को चोगे डाले कि वे ऐसा करें। लेकिन यह चाल कामयाब नहीं हो सकी क्योंकि इसी समय लाखों दलित हिन्दुओं को पाकिस्तान से बाकि हिन्दुओं के साथ विस्थापति होकर भारत आना पड़ा। 10 लाख लोग इस बंटवारे में मारे गए। ऐसा नरसंहार सहने व हिन्दू धर्म को छोडऩे के लिए दलित तैयार नहीं थे। फिर अंग्रेजों ने ऐसा दाव खेला कि दलितों का धर्म परिवर्तन करवा दिया जाए। उन्हें पता था कि दलित ईसाई या इस्माम को कभी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान बनने पर हुए नरसंहार को देख लिया था। फिर बौध धर्म का पासा फैंका गया।
इसके लिए अंग्रेजों का पूरा पर्दे के पीछे सहयोग था। नास्तिक बनने के बाद दलितों की समस्याएं कम नहीं हुईं।
वे अपने ईश्वर व ईष्ट को नहीं छोड़ सके। नास्तिक होने के बाद इन दलितों से ज्यादातर ने इस्लाम व फिर ईसाई धर्म अपनाना शुरु कर दिया जो आज तक जारी है। एक दलित हिन्दू को पहले नफरत भर कर उसके धर्म से तोड़ा जाता है और उसे नास्तिक बनाया जाता है। इसके बाद उसे इस्लाम या ईसाई धर्म की तरफ मोड़ दिया जाता है। आजकर दलित-मुस्लिम एकता का एक राजनीतिक कुचक्र चल रहा है। नफरत का कारोबार इतने भयानक स्तर पर पहुंच गया है जो अब सिविल वार जैसी स्थिति पैदा कर रहा है। स्वर्ण वर्ग के प्रति अपमानजनक तरीके से नफरत का जहर भरा जा रहा है और भोले भाले लोग इस शिकंजे में फंसते जा रहे हैं और राजनीतिक वोट बैंक का शिकार हो रहे हैं।
अंग्रेजों ने भारत पर शासन क्रूर तरीके से किया। वे जो चाहते थे उनके चमचे वही करते थे क्योंकि जनता इन चमचों की सुनती थी। इसके बदले में अंग्रेज इन चमचों को बड़ी जागीरें, विदेशी कपड़े, सिगार, विदेश की यात्राएं आदि कहने का मतलब शबाब व शराब भी। जो अंग्रेजों के खिलाफ होते थे वे उनको फांसी की सजा दे देते थे या
काले पानी की सजा के लिए अंडेमान व निकोबार में जोलों में सडऩे के लिए भेज देते थे। अंग्रेज चाहते थे कि भारत टुकड़ों में बंट जाए। इसके लिए उन्होंने काले नेताओं की फौज खड़ी की। जिन्हा को कहा कि वह मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करे,उसको वे समर्थन देंगे। जिन्ंहा ने वैसा ही किया। अंग्रेजों ने भारते के काले राजनेताओं को कहा कि वे भी उनकी बात माने। न नुकर का ड्रामा करने के बाद वे भी मान गए। इसके बाद अंग्रेज चाहते थे कि देश का एक और टुकड़ा किया जाए जिसका नाम दलिस्तान होगा। इसके लिए उन्होंने काले
अंग्रेजों को चोगे डाले कि वे ऐसा करें। लेकिन यह चाल कामयाब नहीं हो सकी क्योंकि इसी समय लाखों दलित हिन्दुओं को पाकिस्तान से बाकि हिन्दुओं के साथ विस्थापति होकर भारत आना पड़ा। 10 लाख लोग इस बंटवारे में मारे गए। ऐसा नरसंहार सहने व हिन्दू धर्म को छोडऩे के लिए दलित तैयार नहीं थे। फिर अंग्रेजों ने ऐसा दाव खेला कि दलितों का धर्म परिवर्तन करवा दिया जाए। उन्हें पता था कि दलित ईसाई या इस्माम को कभी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान बनने पर हुए नरसंहार को देख लिया था। फिर बौध धर्म का पासा फैंका गया।
इसके लिए अंग्रेजों का पूरा पर्दे के पीछे सहयोग था। नास्तिक बनने के बाद दलितों की समस्याएं कम नहीं हुईं।
वे अपने ईश्वर व ईष्ट को नहीं छोड़ सके। नास्तिक होने के बाद इन दलितों से ज्यादातर ने इस्लाम व फिर ईसाई धर्म अपनाना शुरु कर दिया जो आज तक जारी है। एक दलित हिन्दू को पहले नफरत भर कर उसके धर्म से तोड़ा जाता है और उसे नास्तिक बनाया जाता है। इसके बाद उसे इस्लाम या ईसाई धर्म की तरफ मोड़ दिया जाता है। आजकर दलित-मुस्लिम एकता का एक राजनीतिक कुचक्र चल रहा है। नफरत का कारोबार इतने भयानक स्तर पर पहुंच गया है जो अब सिविल वार जैसी स्थिति पैदा कर रहा है। स्वर्ण वर्ग के प्रति अपमानजनक तरीके से नफरत का जहर भरा जा रहा है और भोले भाले लोग इस शिकंजे में फंसते जा रहे हैं और राजनीतिक वोट बैंक का शिकार हो रहे हैं।
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