क्या अशिफा, निर्भया,गुडिय़ा या सरला भट्ट में कोई अंतर है?


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क्या अशिफा, निर्भया,गुडिय़ा या सरला भट्ट में कोई अंतर है?
जो कुछ अशिफा के साथ हुआ एक जघन्य अपराध है। जब हम अशिफा को न्याय दिलवानेे या अपराधियों को
सजा दिलवाने की बात कर रहे हैं तो उसी समय देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे अपराध हो रहे होते हैं। भारत के लोग पीडि़ता के धर्म को नहीं एक इंसान को लेकर चलते हैं। जब निर्भया के कातिलों को सजा दी गई तो इनमें से
ही कुछ ऐसे लोग थे एक अपराधी को सिलाई मशीन व रुपए दे रहे थे। कई मासूम बच्चियां हवशी दरिंदो की शिकार हो रही होती हैं। हिमाचल का गुडिय़ा कांड सीबीआई के हवाले न होता तो निर्दोश लोग फांसी पर चढ़ जाते, रियान स्कूल में प्रद्युम्र हत्याकांड में तो गरीब बस चालक को तो फांसी पर चढ़वाने की पूरी व्यूह रचना हो चुकी थी।
सीबीआई न आती तो असली दोषी पकड़ा नहीं जाना था। अब अशिफा केस को सीबीआई को तुरंत देने से महबूबा
ने इंकार कर दिया है। इसके लिए जम्मू में नहीं यहां से लगभग 250 किलोमीटर दूर श्रीनगर में विशेष जांच कमेटी बनाई गई है। जिस प्रकार से अशिफा की लाश पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं, वह शर्मनाक है। यही लोग वर्षों पहले यदि सरला भट्ट व उसके साथ रेप व कत्ल की गई निर्दोश लड़कियों के लिए भी आवाज उठाते तो न्यायसंगत लगता लेकिन ऐसा नहीं आ। इसके हत्यारे आज भी खुलेआम फिर रहे हैं। आसाम में मासूम बच्यिों से बलात्कार व उनकी हत्या हुई इस मामले को नहीं उठाया गया। हम जब तक अपराधियों को सजा दिलवाने को पीडि़त लड़कियों के मामलों में दोहरा मापदंड अपनाते रहेंगे और राजनितिज्ञों व पेड मीडिया की चालों में फंसकर
अपने विचार रहेंगे तो न्याय किसी को भी नहीं मिल पाएगा। हमें केवल अशिफा ही नहीं उन सभी बच्चियों के लिए न्याय मांगना पड़ेगा जिन्हें न्याय नहीं मिल पाता। अशिफा मामले को तुरंत सीबीआई को सौंपना होगा, कभी सारी
सच्चाई सामने आएगी और पीडि़ता को न्याय मिलेगा और सच देश की जनता के सामने आएगा।

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