मंदिर व संत महापुरूष किस तरह रोजगार के साधन बन सकते हैं

मंदिर व संत महापुरूष किस तरह रोजगार के साधन बन सकते हैं
आज हमारे हिन्दू समाज के युवा बेरोजगार हैं। जो योग्य व धनी परिवारों से संबंध रखते हैं या जिनके परिवार पहले से ही ऊंचे पदों पर तैनात हैं, वे कैसे अन्य वंचितों की मदद कर सकते हैं, इस बारे में हम चर्चा करेंगे।
हर मंदिर को ऐसा बनाना चाहिए जहां से लोग पूजा तो कर कर सकें साथ ही रोजगार प्राप्त करने में भी मंदिर प्रबंधक दिशा-निर्देशक बन सकते हैं। हर मंदिर प्रबंधक कमेटी व भक्तों को थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए क्योंकि यहां से भक्त धर्म से जुड़ते हैं। मंदिर प्रबंधक कमेटी के सदस्य मंदिर में बाल शिक्षा केन्द्र जहां  से बच्चों को चाहे सप्ताह में एक दिन संस्कृत के श्लोक व धर्म की शिक्षा हो। बच्चों को धर्म के बारे में ज्ञान दिया जाए। एक मंदिर ब्यूटीपर्लर का, दूसरा हेयर कङ्क्षटग का, तीसरा टेलरिंग आदि रोजगारोन्मुखी कार्यशाला चलाएं तो क्षेत्र में कई हिन्दू युवतियों व युवाओं को काम मिल सकता है। मंदिर के भक्त जगराते, भागवत आदि पर लाखों खर्च करते हैं, अच्छी बात है लेकिन रोजगार उप्लब्ध करवान के लिए भी प्रयास करने चाहिएं। इसके लिए फंड भी रखना चाहिए। बिना अर्थ के धर्म कार्य नहीं हो सकते। युवाओं को पैरों पर खड़ा करने के लिए संत महापुरुष भी सहयोग करते हैं क्योंकि इनके पास धन की कमी नहीं रहती। हर मंदिर में जगह हो तो एक या दो गऊएं जरूर रखनी चाहिएं,जिनकी भक्त सेवा कर सकें। धर्म प्रचार के लिए पुजारी पादरी की तरह प्रशिक्षित होने चाहिएं। हिन्दू धर्म से जुडऩे वाले लोगों को अपने धर्म में शामिल करना चाहिए। हर भक्त की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे लोगों को मंदिर से जोडऩे का प्रयास करे। जि तरह इस्कॉन के भक्त तन्मयता से धार्मिक साहित्य का वितरण करते हैं और  लोगों को जोड़ते हैं वैसे ही सनातनियों को करना चाहिए। जो पढ़े लिखे भक्त हैं या जो रिटायर्ड हो गए हैं, मंदिर में बच्चों को धर्म की शिक्षा दे सकते हैं। ऐसा करने से आपके क्षेत्र में भक्त ही को रोजगार मिलेगा। आज मंदिर के प्रबंधक भीड़ पर काबू करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। व्यवस्था निम्न स्तर की होती है। मंदिरों का प्रबंध एक कम्पनी की तरह बढिय़ा होना चाहिए ताकि लोग प्रभावित हों। जो काम अच्छी तरह से न हो सके उसे नहीं करना चाहिए। मंदिर कमेटियों का आपस में तालमेल होना चाहिए। धर्म प्रचार बढिय़ा ढंग से होना चाहिए।
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