जहां प्रेम बरसाता है शुक्र वहीं विपत्ति भी पैदा कर देता है

  जहां प्रेम बरसाता है शुक्र वहीं विपत्ति भी पैदा कर देता है
मानव जीवन में प्रेम का बहुत महत्व है। जिसके जीवन में प्रेेम नहीं वह को केवल पत्थर के ही समान है। प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए तडफ़ता है और प्रेमिका दूर गए प्रेमी को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। प्रेमिका के न कहने पर पुरुष का अहंकार इतना प्रभावित होता है कि वह किसी की इच्छा के विरूद्ध स्वयं को उसपर थोपना अपना अधिकार समझता है। वह नहीं जानता कि न का मतलब क्या है। कोई किसी चीज को खाना नहीं चाहता तो उसको बांध कर उसके मुंह में ठूंसना एक गुनाह है। उन्माद का भी ऐसा ही कारण है। किसी की इच्छा को आदर देना सीखना होगा। इस तालाब में बहुत सी मछलियां हैं। प्रेम जब तब होता है जब शुक्र नेगेटिव हो जाता है।  एक तरफा होता है और वासना व उन्माद की शक्ल धारण कर लेता है तो इसके बहुत ही भयानक नतीजे निकलते हैं। यह भारतीय ज्योतिष में शुक्र आकर्षण और प्रेम वासना का प्रतीक है। ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से व्यक्ति समाज पशु-पक्षी और प्रकृति तक प्रभावित होते हैं। ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है । इनका असर मनुष्यों पर देखा जाता है। कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतर फल प्राप्त होते हैं। ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। ग्रह की स्थिति अच्छी हो तो मानव का जीवन प्रेम व खुशियों से भर जाता है। वही ग्रह निर्बल हो जाए तो विशाद, रोग, असवाद,शोक संताप विपत्ति पैदा होती है। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र ग्रह है। शुक्र बलवान होने पर सुंदर शरीर, मुख, नेत्र, पढऩे-लिखने का शौकीन, कफ वायु प्रकृति प्रधान होता है। भृगु,  भार्गव, सित, सूरि,  कवि,  दैत्यगुरू,  काण, उसना, सूरि आदि शुक्र के नाम  हैं। शुक्र का वैभवशाली स्वरूप: यह ग्रह सुंदरता का प्रतीक, मध्यम शरीर, सुंदर विशाल नेत्रों वाला, जल तत्व प्रधान, दक्षिण पूर्व दिशा का स्वामी, श्वेत वर्ण, युवा किशोर अवस्था का प्रतीक है। चर प्रकृति,  रजोगुणी, स्वाथी, विलासी भोगी, मधुरता वाले स्वभाव के साथ चालबाज, तेजस्वी स्वरूप, श्याम वर्ण केश और स्त्रीकारक ग्रह है। इसके देवता भगवान इंद्र हैं। इसका वाहन भी अश्व है। इंद्र की सभा में अप्सराओं के प्रसंग अधिकाधिक मिलते हैं।  शुक्र  स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र  माने जाते हैं। यदि आपके जन्मांक में शुक्र जी अशुभ हैं तो आर्थिक कष्ट, स्त्री सुख में कमी, प्रमेह, कुष्ठ, मधुमेह, मूत्राशय संबंधी रोग, गर्भाशय संबंधी रोग और गुप्त रोगों की संभावना बढ जाती है और सांसारिक सुखों में कमी आती प्रतीत होती है। शुक्र के साथ यदि कोई पाप स्वभाव का ग्रह हो तो व्यक्ति काम वासना के बारे में सोचता है। पाप प्रभाव वाले कई ग्रहों की युति होने पर यह कामवासना भडकाने के साथ-साथ बलात्कार जैसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है। शुक्र के साथ मंगल और राहु का संबंध होने की दशा में यह घेरेलू हिंसा का वातावरण भी बनाता है। जानिए अशुभ शुक्र की शांति के लिए शुक्र से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। जैसे चांदी, चावल, दूध, श्वेत वस्त्र आदि। दुर्गाशप्तशती का पाठ करना चाहिए। कन्या पूजन एवं शुक्रवार का व्रत करना चाहिए। हीरा धारण करना चाहिए। यदि हीरा संभव न हो तो अर्किन, सफेद मार्का, सिम्भा, ओपल, कंसला, स्फटिक आदि शुभवार, शुभ नक्षत्र और शुभ लग्न में धारण करना चाहिए। शुक्र का बीज मंत्र भी लाभकारी होगा। ऊँ शं शुक्राय नम:। ऊँ हृीं श्रीं शुक्राय नम: इन मंत्रों का जाप भी अरिष्ट कर शुक्र शांति में विशेष लाभ प्रद माना गया है। कला के क्षेत्र में शुक्र की विशेष जगह हैं। हीरो, हीरोइने, कलाकार,गायक, गीत संगीत आदि सारे शुक्र की मेहरबानी से आसमान को छूते हैं। विलासिता का जीवन जीते हैं। शुक्र के नेगेटिव हो जाने पर यही सितारे धूमकेतु की तरह किसी ब्लैक होल में चले जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं। लोग उन्हें भूल जाते हैं कि यही सितारे थे जिन्हें हम जान से ज्यादा प्यार करते थे। आज इन्हें सामने आने पर भी पहचान नहीं पाते। समय की मार से ये भी नहीं बच पाते।
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