भगवान कृष्ण व उनका व्यकि्तव

भगवान कृष्ण व उनका व्यकि्तव

भगवान कृष्ण का जीवन हर समय संर्घष व कांटो की सेज जैसा था। जब भगवान ने इस धरा पर अवरार लिया उस समय कारागृह में थे उनके माता पिता। मौत सिर पर मंडरा रही थी। मामा कंस उनकी जान का दुश्मन था कि कब वह पैदा हों अौर कब उन्हें दीवार से पटक कर मार दिया जाए। वह इससे पहले पैदा होने वाले सारे बच्चों को दीवार से पटक कर मार चुका था। मौत से बचाने के लिए जब उन्हें किसी तरह बचा कर ले जाया जा रहा था तो घनघोर बारिश व नदियों में बाढ़ अाई हुई थी। वसुदेव जी उनके साथ बाढ़ में बह सकते थे। बाल अवस्था में भी उन्हें मारने के कई प्रयास किए गए। भगवान बांसुरी बजाते अौर नाचते भी थे।
सखियों के संग रास भी रचाते। उन्होंने वे सब लीलाएं की जो एक बालक करता है। ये एेसा ग्वाला था जो अपनी गऊअों से बहुत ही प्यार करता था जब भी गऊएं उसकी बांसुरी की तान सुनती तो वे उनकी तरफ भागी चली जाती। जो सखियों के साथ गीत गाता है,नाचता है वही कुरुक्षेत्र की रणभूमि में  अधर्म का नाश करने अौर धर्म की स्थापना करने के लिए भी खड़ा है। लेकिन वह भी बिना किसी हथियार के। क्या अाप सोच सकते हैं कि दुश्मन की तरफ से विर्धमी हर प्रकार के हथियारों से लैस हैं अौर भगवान के पास केवल शंख व सुदर्शन चक्र है। वह फिर रणभूमि में डटा है धर्म के साथ।
 कृष्ण के जीवन का एक भी उदाहरण हम अाम लोग अपने जीवन में नहीं उतार सकते। न तो हम 16 हजार कैद से छुड़वाई गई अबला नारियों को पूरे सम्मान के साथ रानियों का दर्जा दे सकते हैं। अाज इतने सभ्य होने के बावजूद कोई भी सरकार, समाजिक संस्था अबला नारियों, धोखे से कोठों पर पहुंचाई गई लड़कियों को उस जंजाल से छुड़ा नहीं पाई अौर न ही उन्हें कोई समाज में अच्छा स्थान दिला पाए। क्या अाज भी कोई भाई है जो अपनी बहन के प्रेम को  सहारा दे सके । भगवान ने अपनी बहन सुभद्रा के प्रेम को जाना अौर उन्हें अर्जुन के साथ जाने दिया। अाज भाई रोमियो बने तो लड़कियों को चौराहों पर छेड़ते मिलेंगे लेकिन जब उनकी अपनी बहन किसी से प्रेम करने लगती है तो वे उनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। अाज पाकिस्तान, भारत,बंगलादेश या अन्य जगहों  पर होती अानर किलिंग चीख-चीख कर हमारे संकुचित समाज का चेहरा सामने ला रही है। भगवान अपने दुश्मन को 100 बार माफ करते हैं अौर 101 वीं बार उसको छोड़ते भी नहीं। यहां तो हम 2000 सालों से गुलामों की तरह जी रहे हैं अौर दुश्मन हमारी छाती पर चढ़ कर हमारी बच्चियों का शोषण कर रहा है। भगवान जहां सुदामा को राजा बनने पर भी नहीं भूलते वहीं वे जरासंध जैसे दुश्मन का भी बड़ी कूटनीति से खात्मा कर देते हैं। वे अपनी प्रजा को बचाने के लिए समुद्र में  द्वारिका नगरी बसा लेते हैं। वे चाहते तो द्रोपदी का अपमान करने वाले सभी दोषियों को प्राण दान दे सकते थे लेकिन उन्होंने एेसा नहीं किया । क्योंकि नारि अपमान में शामिल किसी भी दोषी को माफ नहीं किया जा सकता चाहे वह पांडवों का सगा भाई कर्ण ही क्यों न हो। कृष्ण जिसके दोस्त हो गए
उनका कोई बाल भी बांका न कर सका अौर जिस पर उनकी भृकुटी तन गई उसे कोई बचा भी न सका। भगवान ने पांडवों को अपना हक लेने के लिए अौर धर्म
की रक्षा के लिए उन्हें क्षत्रिय धर्म का पालन करने को कहा। उन्हेंं भक्तों ने जिस रूप में ध्याया वह उन्हें उसी रुप में उन्हें मिले। भगवान हमें अर्जुन बनाते हैं  अौर सम्मान से जीने का हक भी दिलाते हैं। कुरक्षेत्र का रण अाज भी जारी है सिर्फ पात्र बदल गए हैं। कृष्ण के मार्ग पर चलना अासान नहीं अौर अर्जुन बनना भी अासान नहीं।  महाभारत में बता दिया गया है कि धर्म की स्थापना कैसे करनी है।

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