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करवा चौथ का व्रत 2018 इस बार 27 अकतूबर दिन शनिवार को उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जा रहा है। कई स्थानों में इसे 28 अक्तूबर दिन रविवार को मनाया जा रहा है। करवा चौथ का व्रत हिन्दू नारियां अपने पतियों की लम्बी अायुव  स्वास्थय के हजारों सालों से रखती अाती रही हैं। नारियों का अपने पतियों से इतना प्यार व स्नेह होता है कि वे उनके लिए दिन भर भूखी प्यासी रहकर भगवान से उनकी लम्बी अायु की प्रार्थना करती हैं । पूरे विश्व में यह त्यौहार भारतीय हिन्दू नारियों की तरफ से मनाया जाता है। भारत पर इस्लामी हमलावरों के बाद भारत के लोगों मे अरबी संस्कृति का भी प्रभाव बढ़ा। कई भाततीयों ने इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया। इसके बाद वे भारतीय संस्कृतित, भाषा, धर्मों के विरोधी हो गए। उन्होंने भारतीय त्यौहार,भाषा, पहरावा व ग्रंथ अादि पढ़ने मनाने बंद कर दिए। भारतीय हिंदू नारियों ने अपनी धार्मिक परम्परा व धर्म का पालन करना नहीं छोड़ा। जब भी वे अपना कोई त्यौहार मनाते हैं तो सैकुलर धर्म विरोधी लोग उनकी धार्मिक भावनाअों को ठेस पहुंचाते हैं। भारतीय नारियों की शक्ति के कारण ही उनके प्यार की डोर बंधी रहती है। हिन्दुअों को अपने त्यौहार मनाने के लिए भी भारी विरोधों का सामना करना पड़ता लेकिन ये वीर नारियां ही हैं जो हर हाल में अपने धर्म का पालन करती हैं।  जैसे जेएनयु का टुकड़े गैंग हिन्दू धर्म का अनादर करने में कोई कसर नहीं छोड़ता वैसै ही मीडिया के सैकुलर गैंग भी कोई न कोई त्यौहारों से  पहले प्रोपेगंडा चला देता है। लेकिन अब हिन्दू इनकी चालों को समझ चुके हैं। यदि अाप किसी त्यौहार को नहीं मनाते तो हिन्दू अापको बाध्य भी नहीं करते इसलिए किसी को भी हिन्दुअों के त्यौहारों के खिलाफ बोलने व  व इनकी धार्मिक भावनाअों को ठेस पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं है। इन लोगों को पहचान कर हिन्दुअों को इनका बहिष्कार करना चाहिए।
वैसे तो भारतीय परम्पराअों का पालन करने वाली कई अन्य धर्मों की नारियां भी इस व्रत का पालन करने में अागे रहती हैं। करवा चौथ का व्रत हर हिन्दू नारि को  जरूर रखना चाहिए क्योंकि नारियों के सहयोग के कारण ही हिन्दु अाज पूरे विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। किन्हीं कारणों से नारियां व्रत
नहीं रख सकती तो भी उन्हें पूजा में जरूर शामिल होना चाहिए।
करवा चौथ के दिन नारियां सुबह सूर्य देव के उगने से पहले उठ जाती हैं। खाना बनाया जाता है अौर उसी समय खा लिया जाता है । इसके बाद सारा दिन चंद्र देव के दर्शनों के बाद ही पति देव की अारती करने के बाद व्रत पूरा किया जाता है। पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।

इससे पहले सायं को  नारियां पूजा करने के लिए मंदिरों में जाती हैं। अब तो कई पति भी अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते हैं। बहने अपने भाईयों की लम्बी अायु के लिए तारे को अर्ग देती हैं। इस त्यौहार से पहले बाजारों में बहुत रौणकें लगी रहती है। सभी दुकानदार अपना सामान बेचते हैं अौर मुनाफा कमाते हैं।
करवा चौथ व्रत की कथा
                 वैसे तो कई पौरािणक कथाए प्रचलित हैं  अौर सभी मान्य हैं। महाभारत काल के दौरान पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए थे। इस बारे में उन्होंने किसी को भी नहीं बताया। जब वह एकदम सेगायब हो गए तो रानी द्रोपदी बहुत परेशान हो गईं। अर्जुन के बारे में कोई समाचार न न मिलने के कारण उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया। उन्होंने भगवान से अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- सखि, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। उन्होंने कथा सुनाई कि प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।
एक बार जब लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने भी व्रत रखा, पूरे दिन निर्जला रही। उसने कुछ भी कुछ खाया-पीया नहीं। कहीं उनकी बहन को कुछ हो न जाए इस कारण उसके चारों भाई परेशान हो उठे। उनसे अपनी बहन को इस हाल में देखा नहीं गया। उन्होंने सोचा कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से अपनी बहन को इस हालत में देख रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन एक नकली चांद बनाकर चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने देखा कि चांद निकल अाया है, उसने पूजा करके भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की कथित तौर पर मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला।
उन्होने उसे प्यार से समझाया कि अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो उसेक योगबल से वह पुनः सौभाग्यवती हो गई।  द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। इस प्रकार नारियों ने व्रत करना शुरु कर दिया।  प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए।

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